81 प्रतिशत छात्र असफल, लेकिन नूंह की सनोवर ने पास की कठिनतम एफएमजीई परीक्षा

Story by  यूनुस अल्वी | Published by  [email protected] | Date 18-08-2025
81 percent students failed, but Sanowar of Nuh passed the toughest FMGE exam
81 percent students failed, but Sanowar of Nuh passed the toughest FMGE exam

 

यूनुस अल्वी/ नूंह ( हरियाणा)

भारत में डॉक्टर बनने का सफर केवल डिग्री लेने तक सीमित नहीं, बल्कि यह तप, संघर्ष और आत्मविश्वास की लंबी यात्रा है. बहुत-से युवा रूस, यूक्रेन, फिलीपींस या अन्य देशों से एमबीबीएस करके लौटते हैं और सोचते हैं कि अब डॉक्टर बनना आसान होगा, लेकिन असलियत यह है कि भारत में प्रैक्टिस करने के लिए उन्हें राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान परीक्षा बोर्ड (NBEMS) द्वारा आयोजित कठिनतम परीक्षाओं में से एक Foreign Medical Graduate Examination (FMGE) पास करनी पड़ती है.

aइसकी कठिनाई का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि हर साल इसमें शामिल हजारों छात्र असफल हो जाते हैं.इसी चुनौतीपूर्ण माहौल में हरियाणा के नूंह जिले की सनोवर हुसैन ने हौसले और लगन से करिश्मा कर दिखाया है.

नूंह, जिसे नीति आयोग ने देश के सबसे पिछड़े जिलों में गिना है, वहाँ से आई यह सफलता की कहानी साबित करती है कि हालात चाहे कितने ही कठिन हों, अगर इरादे मजबूत हों तो मंज़िल जरूर मिलती है.

गांव मुरादबास की बेटी और मोहम्मद हुसैन की पुत्री सनोवर ने जून 2025 में आयोजित एफएमजीई परीक्षा में 300 में से 206 अंक हासिल कर जिले और प्रदेश का नाम रोशन किया.

यह सिर्फ पासिंग स्कोर नहीं बल्कि उनकी मेहनत और तैयारी का प्रमाण है. जब परीक्षा का पास प्रतिशत 20% से भी कम रहा हो, तब इतना बेहतरीन प्रदर्शन अपने आप में बड़ी उपलब्धि है.

नूंह जैसे जिले से, जहाँ शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों ही क्षेत्रों की स्थिति चुनौतीपूर्ण है, वहाँ से किसी बेटी का डॉक्टर बनना सिर्फ व्यक्तिगत जीत नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव का प्रतीक है.

एफएमजीई परीक्षा की कठोरता का अंदाज़ा इसके नतीजों से लगाया जा सकता है. जून 2025 में 37,207 उम्मीदवारों ने आवेदन किया, 36,034 ने परीक्षा दी, लेकिन केवल 6,707 ही पास हो सके और 29,327 असफल रहे.

यानी पास प्रतिशत सिर्फ 18.61% रहा और 81% से अधिक छात्र नाकाम हो गए. यह परीक्षा कठिन इसलिए मानी जाती है क्योंकि भारतीय मेडिकल शिक्षा उच्च मानकों पर आधारित है.

dयहाँ चिकित्सा शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि गहन समझ, क्लिनिकल प्रैक्टिस और वास्तविक अनुभव पर निर्भर करती है. विदेश से लौटे कई छात्र भारतीय सिलेबस और पैटर्न से सामंजस्य बिठाने में कठिनाई महसूस करते हैं.

विस्तृत सिलेबस, कॉन्सेप्ट-आधारित प्रश्न और एनबीई द्वारा बढ़ाई गई सख्ती इसे और चुनौतीपूर्ण बना देते हैं. यही कारण है कि पिछले वर्षों में भी पास प्रतिशत बेहद कम रहा है,दिसंबर 2024 में 29.62%, जून 2024 में 21.6% और जून 2023 में तो सिर्फ 13%.

ऐसे हालात में सनोवर हुसैन की सफलता का महत्व और भी बढ़ जाता है. नूंह जैसे जिले में, जहाँ शिक्षा का स्तर कमज़ोर है और लड़कियों की पढ़ाई अक्सर अधूरी रह जाती है, वहाँ से किसी बेटी का डॉक्टर बनना आने वाली पीढ़ियों के लिए उम्मीद की किरण है.

यह कहानी हर उस छात्र को प्रेरित करती है जो सोचता है कि हालात उसके खिलाफ हैं. सनोवर ने साबित किया है कि मेहनत और आत्मविश्वास से हर बाधा पार की जा सकती है.

उनकी सफलता यह संदेश भी देती है कि यदि पिछड़े जिलों को बेहतर शैक्षिक और डिजिटल सुविधाएँ, संसाधन और लड़कियों को विशेष प्रोत्साहन मिले तो वहाँ के बच्चे भी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कर सकते हैं.

सनोवर की उपलब्धि केवल एक परीक्षा पास करने की कहानी नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, साहस और उम्मीद की जीत है. जब 81% से अधिक छात्र असफल हों और नूंह जैसे पिछड़े जिले की बेटी डॉक्टर बनने की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाए, तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं.

 सनोवर हुसैन को ढेरों बधाई और शुभकामनाएँ, जिन्होंने दिखा दिया कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर जज्बा बुलंद हो तो कोई भी राह मुश्किल नहीं रहती.