आवाज द वॉयस /पुणे
अगर ज़िंदगी में सख़्त संघर्ष हो, तो सपने देखना और उन्हें सच करना आसान नहीं होता। लेकिन, महाराष्ट्र के चंद्रपुर ज़िले के एक छोटे से गांव वडसी की एक मज़दूर की बेटी ने इस बात को ग़लत साबित कर दिया है। पिता ने कबाड़ इकट्ठा करने के लिए मीलों साइकिल चलाई और मां ने खेतों में दिन-रात पसीना बहाया। मां-बाप की इसी मेहनत के दम पर करिश्मा मेश्राम ने महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग यानी MPSC की वन सेवा परीक्षा पास कर ली है। उनका चयन 'सहायक वन संरक्षक' (Assistant Conservator of Forests) के पद पर हुआ है।
हाल ही में आए नतीजों में करिश्मा ने न सिर्फ़ कामयाबी हासिल की है, बल्कि राज्य में अनुसूचित जाति (SC) की महिला उम्मीदवारों में उन्होंने पहला स्थान हासिल किया है।
कबाड़ चुनने से शुरू हुआ सफ़र
करिश्मा के पिता, अनिरुद्ध ने कई सालों तक साइकिल पर गांव-गांव घूमकर कबाड़ इकट्ठा करके परिवार का पेट पाला। इस वक़्त वे और करिश्मा की मां खेतों में मज़दूरी करके घर चलाते हैं।
घर के हालात बेहद ख़राब होने के बावजूद उन्होंने बच्चों की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी से कभी मुंह नहीं मोड़ा। संघर्ष के इस सफ़र में करिश्मा के चाचा भास्कर मेश्राम ने भी उनकी काफी आर्थिक मदद की।
प्रोफ़ेसर बनना चाहती थीं, पर 'डोनेशन' ने रास्ता रोका
अपने हालात को समझते हुए और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के इस विचार को मानकर कि 'शिक्षा ही बदलाव का ज़रिया है', करिश्मा ने शुरू से ही पढ़ाई को सबसे ऊपर रखा। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई वडसी के ज़िला परिषद स्कूल से की और फिर विदर्भ क्षेत्र के बड़े शहर नागपुर से अपनी पोस्ट- ग्रेजुएशन पूरी की।
उन्होंने 'नेट' (NET) की परीक्षा पास करके प्रोफ़ेसर बनने का सपना देखा था। लेकिन, प्राइवेट कॉलेजों में नौकरी के लिए मांगे जाने वाले भारी-भरकम 'डोनेशन' (रिश्वत) की वजह से उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। इसके बाद उन्होंने हार नहीं मानी और ज़िद के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं का रास्ता चुन लिया।
मेस में काम किया और 'बार्टी' का सहारा मिला
नागपुर में एक सामाजिक संस्था की मदद से उन्होंने कुछ वक़्त गुज़ारा। 2017-18में उन्हें 'बार्टी' (पुणे स्थित डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट) से स्कॉलरशिप मिला, जिससे उन्होंने पुणे में अपनी तैयारी शुरू की। लेकिन कोरोना के दौरान उन्हें गांव लौटना पड़ा। जब उन्हें लगा कि शायद अब वे इस दौड़ से बाहर हो जाएंगी, तभी दोबारा 'बार्टी' की तरफ़ से UPSC की तैयारी के लिए वज़ीफ़ा मिला और उन्हें दिल्ली जाने का मौक़ा मिला।
ट्रेनिंग के बाद वह फिर पुणे लौटीं। पुणे में रहने, खाने और पढ़ाई का ख़र्च उठाने के लिए उन्होंने एक मेस (भोजनालय) और लाइब्रेरी में पार्ट-टाइम काम किया। उन्होंने अपनी मेहनत से साबित कर दिया कि कोशिश और लगन का कोई विकल्प नहीं है।
अपनी इस कामयाबी पर करिश्मा कहती हैं, "मुझे कई बार नाकामी मिली, लेकिन हर बार मैंने ख़ुद को संभाला। अगर हालात बदलने हैं, तो पढ़ाई और ख़ुद पर भरोसा ही इसका एकमात्र रास्ता है।"