सेराज अनवर / पटना
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लेकर सहमति-असहमति हो सकती है, पर उनकी प्रेरणा से इनकार नहीं किया जा सकता.खास कर युवाओं को प्रेरित करने में मोदी का कोई जोड़ नहीं. मुस्लिम समाज भी प्रधानमंत्री से प्रेरित हो रहा है.उनसे प्रेरित होकर कटिहार जिले के एक छोटे से गांव के रहने वाले गुलफराज ने बिहार के मखाना को अंतरराष्ट्रीय ब्रांड बना दिया.नाम रखा मोदी मखाना.
आज इस मखाना की मांग न सिर्फ भारत में, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान,नेपाल,बांग्लादेश तक में है.बीटेक डिग्रीधारी युवा उद्यमी ने प्रधानमंत्री मोदी की आत्मनिर्भर भारत के आह्वान से प्रेरणा लेकर सुदूर गांव में मखाना प्रोसेसिंग की एक ऑटोमेटिक यूनिट लगाई और आज रोजगार की सफलता का आयाम गढ़ रहा है.
मखाने को दिलाई नई पहचान
मखाना का उत्पादन सबसे अधिक बिहार में होता है.बावजूद इसके अब तक वह पहचान नहीं मिल पाई,जिसकी यह हकदार है.लेकिन गुल्फराज ने इस दिशा में नए प्रयोग कर इसे नई पहचान दिलाने में सफलता पाई है.
गुलफराज की मानें तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मखाना को लेकर कुछ अलग करने के भाषण से बेहद प्रभावित हुए.इसके बाद उन्होंने मखाना के इस कारोबार को शुरू करने की योजना बनाई.
जब इसकी ब्रांडिंग की बात आई तो उसके दिमाग में सिर्फ एक ही नाम गूंजा- ‘मोदी मखाना’. गुल्फराज मखाना के जरिए उत्तर प्रदेश, गुजरात, बंगाल और कई राज्यों में लाखों का व्यापार कर रहे हैं.
अब इसकी अंतरराष्ट्रीय मांग बढ़ी है.बिहार के कटिहार के एक छोटे से गांव कोढ़ा प्रखंड के चरखी मस्जिद टोला के रहने वाले गुल्फराज नरेन्द्र मोदी के मुरीद हैं.
बता दें कि बिहार में सबसे ज्यादा 90 प्रतिशत मखाना होता है.केन्द्र सरकार ने मिथिला के मखाना को जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग दिया है.
23 वर्ष की उम्र में शुरू किया स्टार्टअप
गुलफराज ने कटिहार के सुदूर गांव चरखी में मखाना प्रोसेसिंग की एक ऑटोमेटिक यूनिट लगाई. उन्होंने मात्र 23 वर्ष की उम्र में अपना स्टार्टअप शुरू किया. तीन साल पहले शुरू की गई इस यूनिट में प्रोसेस्ड हुआ मखाना न सिर्फ भारत के कई राज्यों में भेजा रहा है, गुलफराज के द्वारा प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग किए गए “मोदी मखाना” ब्रांड को पाकिस्तान,नेपाल और बांग्लादेश के साथ कई अन्य देशों में एक्सपोर्ट किया जा रहा है.
पाकिस्तान भेजने के लिए उन्हंे दूसरे देशों का सहारा लेना पड़ता है.उनकी यूनिट में काम करने वाले अफजल, दानिश, हैदर, नोमान और रिजवान कहते हैं कि इससे पहले वह लोग अन्य प्रदेशों में मजदूरी करते थे.
अब गुलफराज द्वारा दी गई ट्रेनिंग से इस हाईटेक फैक्ट्री में ही काम मिल गया है. घर पर रहकर रोजगार मिलने से वे लोग बेहद खुश हैं.गुल्फराज के मुताबिक “वह आने वाले दिनों में मखाना से बनने वाले 10 प्रोडक्ट बनाने के लिए हाईटेक मशीन और एक फैक्ट्री स्थापित करने वाले हैं.
मोदी से कैसे हुए प्रेरित ?
सीमांचल के कटिहार जिला अल्पसंख्यक बहुल इलाका है.मुस्लिम इलाके में अपने मखाना का ब्रांड मोदी के नाम पर रखने के बारे में गुलफराज बताते हैं कि जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके जीवन को बदलने के लिए आत्मनिर्भरता के मंत्र से प्रेरित किया.
इसको वह कभी नहीं भूल सकते. वो कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी से मिली प्रेरणा के बाद ही मखाना प्रोसेसिंग की ऑटोमेटिक यूनिट लगाने पर विचार किया.वह बताते हैं कि कई नामों पर विचार करने के साथ उन्होंने सबसे पहला प्रोडक्ट “मोदी मखाना” के रूप में ही शुरू किया,जो आज पूरे देश में धूम मचा रहा है.
अल्पसंख्यक समाज में क्या इसे लेकर उन्हें कोई परेशानी झेलनी पड़ती है?’ उन्होंने कहा कि राजनीतिक विषय अलग है, लेकिन ब्रांड मोदी के जलवा को अब हर कोई समझ चुका है .
युवा उद्यमी गुलफराज कहते हैं कि उनको इस बात को लेकर ज्यादा संतुष्टि है कि उनके इस कारोबार से उनके गांव के ही कई लोगों को रोजगार मिला है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना आदर्श पुरुष मानने वाले गुलफराज की तमन्ना है कि उनके द्वारा प्रोसेसिंग और पैकेजिंग किए गए ब्रांड ‘मोदी मखाना’ के लिए अगर प्रधानमंत्री मोदी कभी दो शब्द कह दें तो उनका जीवन सफल हो जाएगा.
वो एक बार उनके मुंह से सिर्फ दो शब्द सुनना चाहता हैं. इससे मेरी मेहनत और जीवन दोनों सफल हो जाएंगे. गुलफराज की माने तो उनकी यूनिट से प्रोसेसिंग और पैकेजिंग किए गए ब्रांड ‘मोदी मखाना’ को वे प्रधानमंत्री तक पहुंचाना चाहते हैं.
कैसे बनता है मखाना ?
जब भी बात स्नैक्स की आती है तो मखाने को एक बहुत ही अच्छा ऑप्शन माना जाता है.मखाने को इतना पवित्र माना जाता है कि व्रत-उपवास के खाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है. रोस्टेड मखाना हो या मखाने की खीर इसका स्वाद भी लाजवाब होता है.
जानकर हैरानी होगी कि फॉक्स नट कहे जाने वाले मखाने को उगाने और इसे खाने लायक बनाने के लिए उसी तरह से मेहनत लगती है जिस तरह से समुद्र से मोती निकालने में लगती है.
मखाना असल में एक बहुत ही महत्वपूर्ण फूल से निकलता है. ये कमल के पौधे का हिस्सा होता है. इसे वाटर लिलि से भी निकाला जा सकता है. ये असल में कमल के फूल का बीज होता है जिसे प्रोसेस किया जाता है जिससे ये मखाना बनता है.
मखाना भारत में अधिकतर बिहार में उगाया जाता है. इसके अलावा कोरिया, जापान और रशिया के कुछ हिस्सों में भी ये मिलता है.
कैसे बीज से बनता है मखाना?
इसे निकालने में बहुत मेहनत लगती है. ये पूरा प्रोसेस बहुत ही सावधानी से करना होता है. इसे निकालने के लिए किसानों को पानी के अंदर गोता लगाना होता है.
मखाना हार्वेस्ट करने के लिए सिर्फ कुछ ही लोगों को लगाया जाता है, ये वो लोग होते हैं जिन्हें इस काम का अनुभव होता है. इसे तालाब से निकालने का काम सुबह लगभग 10 बजे शुरू होता है और 3 बजे तक चलता रहता है. इसमें 4-5 घंटे आराम से लग जाते हैं.
इकट्ठे किए बीजों को किया जाता है स्टोर
इन्हें इकट्ठा करना एक मुश्किल कामहै. इसकी सफाई और इसे स्टोर करने का काम किया जाता है. इन्हें बड़े-बड़े भगोने में रखा जाता है .उसके बाद लगातार हिलाया जाता है.
ऐसा करने से मखाने के ऊपर लगी गंदगी साफ होती है. फिर इसे पानी से बार-बार धोया जाता है जिससे इनमें लगी गंदगी पूरी तरह से साफ हो सके. साफ बीज छोटे-छोटे बैग्स में भरे जाते हैं.
उसके बाद एक सिलेंड्रिकल कंटेनर में इन्हें भरा जाता है. इस कंटेनर को काफी देर तक जमीन पर रोल किया जाता है जिससे बीज स्मूथ बन जाएं. इसके बाद इन बीजों को अगले दिन के लिए तैयार किया जाता है.
बीज सुखाना है बड़ा काम
दूसरे दिन इन बीजों को चटाई पर फैलाकर 2-3 घंटे के लिए सुखाया जाता है. इन्हें सुखाना बहुत जरूरी काम होता है, क्योंकि आगे के स्टेप के लिए इनसे मॉइश्चर निकाल देना जरूरी है.
अब मखानों को किया जाता है अलग
सूखे हुए बीजों को लगभग 10 बड़ी-बड़ी लोहे की छलनियों से गुजरना होता है. इस प्रोसेस में अलग-अलग साइज के बीज अलग हो जाते हैं.सभी बीजों को अलग-अलग स्टोर किया जाता है.
बीज से निकलता है फूल मखाना
जब मखाने सूख जाते हैं तो उन्हें फ्राई किया जाता है. वर्कर्स को एक सीमित समय के अंदर ही ये सारा प्रोसेस पूरा करना होता है. वर्ना ये खराब हो जाते हैं. इन्हें एक बार फ्राई करने के बाद बांस के कंटेनर में स्टोर किया जाता है.