मानव सेवा से बड़ा कोई मजहब नहीं: मो. असीम

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 16-11-2022
मानव सेवा से बड़ा कोई मजहब नहीं: मो. असीम
मानव सेवा से बड़ा कोई मजहब नहीं: मो. असीम

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली / देहरादून

अगर आप जाति-मजहब से ऊपर उठकर समाज के लिए कुछ बेहतर करना चाहते हैं, तो आपकी मदद के लिए दूसरे भी आगे आ जाते हैं . कुछ ऐसा ही मामला देहरादून के मोहम्मद असीम का है. गरीब परिवारों को नाम मात्र के शुल्क पर क्वालिटी एजुकेशन और स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने की योजना बनाई तो धीरे-धीरे लोग इनकी सहायता के लिए आने लगे. इसी क्रम में जल्द ही मुंबई की एक टीचर देहरादून आने वाली हैं.

दरअसल, मोहम्मद असीम मुक्कम पहाड़ी हैं और अपनी जमीन और यहां बसे लोगों के लिए कुछ बेहतर करना चाहते हैं.पिछले 30साल से विदेश में रहते हुए भी मौका मिलते ही देहरादून आ जाते हैं. एनआरआई होते ही भी ठेठ पहाड़ी हैं.

मोहम्मद असीम ने सफलता के षिखर को छुआ है, लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं. यह उनके संस्कार हैं कि किसी भी मजहब का हो, यदि मुसीबत में हो वो तुरंत उसकी मदद के लिए आगे आ जाते हैं. असीम के मुताबिक, मानवता सबसे बड़ा धर्म है.

आवाज द वॉयस से फोन पर बात करते हुए कहते हैं, सभी धर्मों में कुछ ऐसे लोग हैं जो मजहब के नाम पर रोड़ा अटकाने की कोषिष करते हैं, पर मैंने हमेषा मानवता को तरजीह दी है. मजहब मेरा व्यक्तिगत मामला है और इसपर मैं बहुत शिद्दत से अमल करता हूं.

मोहम्मद असीम का परिवार सहस्त्रधारा रोड स्थित मयूर विहार में रहता है. उनके पिता मरहूम मोहम्मद ताहिर एवं मां मकसूदा हैं. वह चार भाई हैं. असीम बताते हैं कि पिता उन्हें सीख दिया करते थे कि मुसीबत में दूसरे का साथ दें. यदि आप सक्षम हो तो समाज को कंट्रीब्यूट करो.

मोहम्मद असीम ने 2007में चंदन विहार में एक प्ले स्कूल खोला था जिसमें डेढ़ दषक से बहुत ही मामूली फीस पर बच्चों को क्वालिटी एजुकेषन दी जा रही है. वह अब ऐसी पद्धति पर एक मिडिल स्कूल संचालित करने की तैयारी में हैं ताकि ईमानदारी से बच्चों को संस्कारवान बनाया जा सके.

इसके लिए प्रयास जारी है. उनका कहना है कि इस प्रयास में उन्हें जल्द सफलता मिलने की उम्मीद है. वह कहते हैं, स्कूल की जमीन खुद उनकी है, इसलिए इस योजना को सिरे चढ़ाने में अब ज्यादा दिन नहीं लगेगा.

मोहम्मद असीम मौजूदा समय में सऊदी अरब में सऊदी आराम को नामक कंपनी में मैटेरियल मैनेजमेंट देखते हैं. खुद उन्हांेने मषीन मैनेजमेंट की पढ़ाई की है ऑयल एंड गैस से जुड़ा है. इस नौकरी में वह 28दिनों तक नौकरी पर रहते हैं और अगले 28 दिनों तक छुट्टी पर, इसलिए वह हर कुछ दिनों के बाद देहरादून आ जाते हैं.

उनका कहना है कि बचपन में उन्होंने पिता का संघर्ष देखा है. उनसे ईमानदारी भी सीखी है.

गरीबों के लिए अस्पताल खोलने का इरादा

मोहम्मद असीम का देहरादून में गरीबों के लिए अस्पताल खोलने का इरादा है. वह कहते हैं देश में शिक्षा और स्वास्थ्य काफी महंगा है. ऐसे में आम आदमी को बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा हांसिल करने में पसीने छूट जाते हैं. कई के लिए तो यह नामुमकिन ही है, क्योंकि दोनों ही बहुत महंगे हैं.

ऐसे में प्रयास कर रहे हैं कि स्कूल के साथ ही एक अस्पताल भी खोला जाए, जहां गरीबों को निशुल्क इलाज मिल सके. इस दिशा में जमीन और लाइसेंस से संबंधित तेजी से काम चल रहा है. उम्मीद है कि योजना को सिर चढ़ाने के लिए कुछ लोग मदरगार साबित हों.

कोरोनाकाल में की सैकड़ों की मदद

सोशल एक्टिविस्ट मोहम्मद असीम जमीन से जुड़े हैं. दुनिया के कई देशों में नौकरी कर चुके हैं. हाल में भारी बारिश से मालदेवता में तबाही हुई थी तो वह दून में ही थे. तब आपदा प्रभावित लोगों की मदद के लिए आगे आए थे. इस दौरान गांधी पार्क में प्रभावितों की सहायता के लिए चौबी घंटे लगे रहे थे. इसी तरह कोरोना काल में जब सरकार में दवा नहीं जुटा पा रही थीं तब असीम ने प्रभावितों की हर संभव मदद करने की कोशिश की थी.