मुस्तफाः एक मजदूर का बेटा करोड़पति बिजनेसमैन कैसे बना?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 20-09-2021
मेहनत और लगन की ऊंची उड़ान
मेहनत और लगन की ऊंची उड़ान

 

मंसूरुद्दीन फरीदी/आवाज-द वॉयस

पीसी मुस्तफा- यह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक आंदोलन का नाम है. यह एक ऐसे शख्स का नाम है, जिसने दुनिया को बताया कि दुनिया में सफलता की एक ही शर्त है ‘कड़ी मेहनत.’ यह आवश्यक नहीं है कि यदि किसी व्यवसायी का पुत्र व्यवसायी बनता है, तो श्रमिक का पुत्र भी श्रमिक बनेगा. यह आवश्यक नहीं है कि यदि आप अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत नौकरी से करते हैं, तो आप जीवन भर ‘कर्मचारी’ बने रहेंगे. यह आपकी प्रेरणा और कड़ी मेहनत पर निर्भर करता है कि आपकी मंजिल क्या होगी.

यह केरल के एक खेतिहर मजदूर के बेटे की कहानी है. वह एक बार छठी कक्षा में फेल हो गया और अपने पिता के साथ खेतों में काम करने लगा, लेकिन स्कूल के एक शिक्षक के दबाव में उन्होंने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी. उन्होंने तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा.

बाद में उन्होंने अपनी पहली नौकरी 14000 रुपए से शुरू की. जब उन्होंने वेतन अपने पिता के हाथों में रखा, तो उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में इतना पैसा नहीं कमाया या नहीं देखा. लेकिन वह सिर्फ शुरुआत थी. वह दुबई से भारत लौटा और उसने एक ऐसा व्यवसाय शुरू किया, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी. अब उनके पास करोड़ों डॉलर की एक कंपनी है. नाम ‘आईडी फ्रेश’ यानि निर्मित इडली और डोसा का व्यवसाय, जो दिन दोगुनी और रात में चौगुनी तरक्की कर रहा है.

पीसी मुस्तफा ने 100 मिलियन कंपनी की स्थापना करके एक उदाहरण स्थापित किया है. यह साबित करते हुए कि 100 मिलियन की कंपनी स्थापित करने के लिए किसी व्यापारिक परिवार से संबंधित होना और वंशानुगत संपत्ति के माध्यम से 100 मिलियन की कंपनी स्थापित करना आवश्यक नहीं है. मुस्तफा की नौकरी से लेकर कंपनी के सीईओ तक के सफर की कहानी सभी के लिए आदर्श है.

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कभी हार नहीं मानी

मुस्तफा का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. लेकिन कभी हार नहीं मानी और कभी भी नकारात्मक विचारों को हावी नहीं होने दिया. इसलिए उन्होंने हर मुश्किल को दूर किया और हर बाधा को पार किया. कभी नहीं सोचा था कि यह संभव नहीं है. हमेशा आश्वस्त रहें कि सब कुछ संभव है.

बचपन की यादें

मुस्तफा का जन्म केरल के कल्पाटा के पास चेनावाल्ड नामक गाँव में हुआ था. इस गाँव में सिर्फ एक प्राथमिक विद्यालय था. गांव में न बिजली थी और न ही सड़क. हाई स्कूल तक चलने में कम से कम चार किलोमीटर का समय लगता था. इसलिए बहुत से बच्चे प्राथमिक स्कूल से बाहर हो गए. मेरे पिता अहमद ने चौथी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया और एक कॉफी फार्म पर काम करना शुरू कर दिया और मेरी माँ फातिमा कभी स्कूल नहीं गईं.

स्कूल से भाग गए

वे कहते हैं, “मुझे स्कूल में कोई दिलचस्पी नहीं थी.” हर दिन स्कूल के बाद और सप्ताहांत में मैंने होमवर्क करने के बजाय अपने पिता की मदद करना पसंद किया. हालाँकि सभी विषयों में उनके ग्रेड बाकी कक्षा के औसत से कम थे, लेकिन उन्होंने हमेशा गणित में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया.

स्वर्गदूत आया

हैरानी की बात यह है कि मुस्तफा शुरुआत में शिक्षा के क्षेत्र में असफल रहे. उन्होंने छठी कक्षा में फेल होने के बाद पढ़ाई करते हुए अपने पिता के साथ खेतों में काम करना शुरू कर दिया. जीवन अंधकारमय था. ऐसा लग रहा था कि वह अपने पिता की तरह मजदूरी पर गुजारा करेगा, लेकिन तभी एक स्वर्गदूत उसके पास आया.

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पीसी मुस्तफा अपने माता-पिता के साथ


एक शिक्षक जो बने मसीहा

जब मुस्तफा ने स्कूल छोड़ दिया और खेतों में काम करना शुरू कर दिया, तो उनके पास एक शिक्षक आया, जो उनकी क्षमताओं को जानता था. जो मानते थे कि मुस्तफा कुछ ऐसा करेगा, जो एक उदाहरण स्थापित करेगा. उन्होंने मुफ्त शिक्षा देकर उसे शिक्षा से जोड़े रखा.

मुस्तफा के अनुसार, “शिक्षक मैथ्यू मुझे स्कूल से निकालने के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए उन्होंने मुझे एक और मौका देने के लिए मेरे पिता से बात की. जब मैं स्कूल वापस आया, तो मुझे छोटे बच्चों के साथ फिर से अध्ययन करना पड़ा, जबकि मेरे सभी दोस्त उच्च कक्षा में थे और यह मेरे लिए इतना अपमानजनक था कि मैंने कक्षा में अधिक सक्रिय होने की कोशिश की. मैथ्यू सर की मदद ने काम किया और मैं सभी शिक्षकों को आश्चर्यचकित करने वाला पहला सातवां ग्रेडर बन गया. उसके बाद, मैं कभी वापस नहीं गया और दसवीं कक्षा तक मैं पहला छात्र था. उन दिनों मेरा एक ही सपना था, मिस्टर मैथ्यू जैसा गणित का टीचर बनने का. वे मेरे आदर्श बन गए.”

गांव से शहर तक

यहां तक कि जब बात स्कूल के बाद कॉलेज में दाखिले की आती है, तो उनके शिक्षक ने उनकी कॉलेज फीस का भुगतान किया और उन्हें कॉलेज में भर्ती कराया, और उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी. और उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और अपनी पहली नौकरी प्राप्त की. 14,000 रुपये की आय के बाद उन्होंने अपने पिता को पैसे सौंप दिए और बाद में दो साल के भीतर अपने पिता से प्राप्त 200,000 रुपये के ऋण को चुका दिया.

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बिल गेट्स के साथ पीसी मुस्तफा


दरअसल, मुस्तफा ने दसवीं कक्षा तक कभी गांव नहीं छोड़ा. मुस्तफा को प्री-यूनिवर्सिटी में जाने के लिए कलकत्ता जाना पड़ा. पिताजी को इससे कोई समस्या नहीं थी, लेकिन उनके पास शिक्षा में निवेश करने के लिए पैसे नहीं थे. उस समय, उनके पिता के मित्र ने उनकी शिक्षा जारी रखने में मदद की. उन्होंने कॉलेज चैरिटी में मुफ्त रहने और खाने की व्यवस्था की.

छात्रों ने उसे नीचा दिखाया

मुस्तफा के कॉलेज में चार छात्रावास थे और दूसरे छात्रावास में मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया जाता था. इस दौरान अन्य छात्रों ने उसकी ओर देखा. जिससे वह परेशान थे, क्योंकि ऐसा लग रहा था कि वह किसी और का हिस्सा खा रहे हैं. कुछ ने मजाक किया. मुस्तफा के मुताबिक यह अच्छा अनुभव नहीं था, लेकिन इन हालातों को पढ़ने के लिए हमें सहना पड़ा.

पहली सफलता और फिर

मुस्तफा ने कहा कि उनकी अंग्रेजी खराब थी, सभी कोर्स अंग्रेजी में करना मुश्किल था. उसके एक दोस्त ने प्रत्येक पेपर का अनुवाद किया, जिससे उन्हें दोहरी मार झेलनी पड़ी. दरअसल, इंजीनियरिंग संकाय की प्रवेश परीक्षा में उन्हें देश में 63वां स्थान मिला था और स्थानीय इंजीनियरिंग संकाय में प्रवेश लिया था. फिर उन्होंने पीछे मुड़कर देखा और तीन कारकों को देखा, जिन्होंने मुझे सफल बनाया. अल्लाह की मर्जी में गणित, मेहनत और प्रतिभा.

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मुस्तफा की शैक्षिक उड़ान

मुस्तफा के अनुसार इंजीनियरिंग में किसी ने भी मार्गदर्शन नहीं किया, कंप्यूटर का सबसे अच्छा क्षेत्र चुना. मुस्तफा विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय से छात्रवृत्ति और ऋण प्राप्त करने में सफल रहे. उन्होंने ट्यूशन का भुगतान नहीं किया और केवल आवास के लिए भुगतान करना पड़ा.

अमेरिका की ओर

मुस्तफा ने कभी बिजनेसमैन बनने का सपना नहीं देखा था. वह एक प्रसिद्ध इंजीनियर बनना चाहते थे. जब उन्होंने 1995 में विश्वविद्यालय से स्नातक किया, तो इसे मैनहट्टन अमेरिकन इंडियन एंटरप्रेन्योरशिप एसोसिएशन द्वारा काम पर रखा गया. बैंगलोर में स्टार्टअप्स पर कुछ दिनों तक काम करने के बाद उन्हें मोटोरोला की ओर से एक ऑफर मिला. यह एक सपना था, जो एक सुदूर गांव से आया और फिर आयरलैंड चले गए. 

पहला वेतन 

आयरलैंड में जीवन सुंदर, लेकिन कठिन था. मुस्तफा को भारतीय खाने का स्वाद याद आ गया और वहां कोई भारतीय रेस्टोरेंट नहीं था. आयरलैंड के बाद, उन्हें सिटीबैंक से नौकरी का प्रस्ताव मिला और वे दुबई चले गए. 1996 में कई हजार डॉलर का वेतन प्राप्त करना उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण था. उन्होंने पहले अपना कर्ज चुकाया. सबसे पहले उसने अपने पिता के पास दो लाख रुपये भेजे. मुस्तफा कहते हैं, “मैंने अपने पिता को पैसे लेते हुए रोते हुए सुना.” पापा ने सारे कर्ज चुका दिए, मेरी बहन से शादी कर ली. उनकी दो बहनों ने भी अपनी पढ़ाई जारी रखी. उसकी शादी वर्ष 2000 में हुई थी. उन्होंने जल्द ही गांव में अपने परिवार के लिए एक घर बनाया. उन्हें बचपन में देखने वालों को इस बदलाव पर विश्वास नहीं था.

भारत लौटने का फैसला

मुस्तफा ने कहा, “2003 में कई सालों तक दुबई में रहने के बाद, मैंने तीन कारणों से भारत लौटने का फैसला किया. पहले तो मैं वापस आना चाहता था और अपने परिवार के साथ अधिक समय बिताना चाहता था. मैं अपनी शिक्षा जारी रखना चाहता था और अर्थशास्त्र में डिग्री प्राप्त करना चाहता था और तीसरा कारण यह था कि मुझे लगा कि मुझे अपने समुदाय में कुछ वापस करना होगा. हमारे गांव के स्मार्ट युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की जरूरत है.”

नौकरी को अलविदा 

मुस्तफा के अनुसार, उच्च वेतन वाली नौकरी छोड़ना मेरे जीवन का सबसे कठिन निर्णय था. मेरे पिता डरे हुए थे और मेरी पत्नी का परिवार परेशान था, लेकिन एक व्यक्ति ने मेरा पूरा साथ दिया और वो थे मेरे चचेरे भाई नासिर. नासिर घर से भागकर बेंगलुरु में दुकान चला रहे थे.

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हम साथ हैं


इसलिए उन्होंने 25,000 डॉलर की बचत के साथ अपनी नौकरी छोड़ दी और भारत लौट आए. भारत में मैं टेक्नोलॉजी की जगह एमबीए करने गया और केट की परीक्षा दी और आईआईएम बैंगलोर पहुँच गए.

यह कैसे शुरू हुआ

दरअसल, नौकरी के दौरान उनके चचेरे भाई ने सुझाव दिया कि इडली और डोसा का आटा बनाकर बाजार में लाया जाए, क्योंकि जिस कंपनी का माल बाजार में था, उसकी गुणवत्ता को लेकर काफी शिकायतें थीं. मुस्तफा का कहना है कि उन्होंने तब क्षेत्र में संभावनाओं का पता लगाया और महसूस किया कि सफलता की संभावना है.

जब समूह ने शुरू में अपना सामान बाजार में उतारा, तो 100 में से 90 पैकेट हर दिन वापस आ गए, लेकिन वे मार्केटिंग पर कड़ी मेहनत करते रहे, क्योंकि उन्हें पता था कि लोग इसे धीरे-धीरे इस्तेमाल करेंगे, क्योंकि उन्हें गुणवत्ता पसंद आएगी. शुरुआती मेहनत रंग लाई और आज कंपनी केवल 60,000 पैकेट की आपूर्ति कर रही है.

पहली दुकान, पहला व्यवसाय

मुस्तफा का कहना है कि उन्होंनेएक छोटी सी फैक्ट्री शुरू की. पांच चचेरे भाई नासिर, शम्सुद्दीन, जफर, नौशाद और मैंने इस निवेश में भाग लिया और निवेश का 50 प्रतिशत मेरा था. कंपनी ने ‘आईडी’ (इडली, डोसा) ब्रांड नाम के तहत बैंगलोर में 20 स्टोरों को बैटर के एक पैकेट या मक्खन के दस पैकेट की आपूर्ति शुरू कर दी थी.

जैसे ही उनके उत्पादों की मांग बढ़ी, मुस्तफा ने 2008 में अतिरिक्त 4 मिलियन रुपये का निवेश किया और बैंगलोर के होस्कॉट औद्योगिक क्षेत्र में 2,500 वर्ग फुट का शेड खरीदा. 2009 में, उन्होंने केरल में अपनी संपत्ति बेच दी, जिसे उन्होंने दुबई में काम करते हुए खरीदा था और व्यवसाय में अतिरिक्त 30 लाख रुपये लगाए.

मुस्तफा के मुताबिक, तब तक मैं दूर से काम कर रहा था, अपना ज्यादातर समय यूनिवर्सिटी में बिता रहा था, लेकिन 2007 में मैंने एमबीए किया और फिर अपनी कंपनी का रेगुलर सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर बन गया. दो साल में हमारे साथ सहयोग करने वाली दुकानों की संख्या 300 से बढ़कर 400 हो गई और हमारे पास 30 कर्मचारी थे, जिनके साथ ही कामयाबी का सफर शुरू हो गया था.

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एक जुनून का नाम मुस्तफा है


आईडी फ्रेश फैक्ट्री

2008 में हमने अपनी राजधानी में 2500 वर्ग मीटर का कारखाना खरीदा और अमेरिका से पांच औद्योगिक श्रेडर आयात किए. अब हमारे उत्पादों की संख्या बढ़ गई थी, लेकिन हमने मात्रा के लिए गुणवत्ता का कभी त्याग नहीं किया. 2012 में, हमने चेन्नई, मैंगलोर, मुंबई, पुणे और हैदराबाद में अपने ग्राहक आधार का विस्तार किया. इसलिए हमने विभिन्न शहरों में कारखाने की शाखाएँ स्थापित कीं.

हमारा ऑपरेशन 2013 में दुबई में शुरू हुआ था. ऐसे में इडली-डोसा की डिमांड अचानक बढ़ गई थी. बड़ी सफलता 2014 में आई जब आईडी फ्रेश फूड्स ने हैलोवीन वेंचर पार्टनर्स से निवेश हासिल किया. पहले पीरियड में 35 करोड़ रुपए मिले थे. अगली बड़ी सफलता तब मिली, जब उन्हें महान प्रेमजी समूह से निवेश प्राप्त हुआ. जिसने आईडी फ्रेश को सौ मिलियन डॉलर की कंपनी बना दिया.

2,000 करोड़ रुपये की कंपनी

पहले आईडी फ्रेश फूड पर 5,000 किलो चावल से इडली का उत्पादन होता था और आज कंपनी सैकड़ों फूड स्टोर्स और मेट्रो शहरों में चार गुना अधिक मिश्रण बेच रही है.

मुस्तफा को देश में नाश्ते के राजा के रूप में जाना जाता है, 2015-2016 में लगभग 100 करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबार हुआ. 2017-10 में यह बढ़कर 182 करोड़ रुपये हो गया. आईडी फ्रेश फूड ने वित्त वर्ष 2011 को 294 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त किया.

कंपनी अब 2,000 करोड़ रुपये की है. बिजनेस टाइकून को इस बात का पछतावा है कि उसके बचपन के शिक्षक उसकी सफलता को देखने के लिए जीवित नहीं हैं. जब मैं घर लौटा, तो पता चला कि उनकी मौत हो चुकी है. मेरा दिल टूट गया था और काश मैं देख पाता कि एक मजदूर को उनकी वजह से क्या मिला!

(यह लेख इंटरनेट सूचना और आईडी फ्रेश फूड वेबसाइट की मदद से तैयार किया गया.)