शाहताज खान / पुणे
पुणे में डांस एकेडमी चलाने वाले कश्मीरी युवक मंजूर बशीर 3 अक्टूबर 1998 की घटना नहीं भूले हैं. उक्त घटना ने इनकी जिंदगी को ऐसी कलाबाजी खिलाई कि आज वह कश्मीर की हंसीन वादियां छोड़कर महाराष्ट्र के पुणे में अपनी जीविका चलाने के लिए संघर्षरत हैं.
अपनी डांस एकेडमी के उद्घाटन के दौरान उन्होंने जिंदगी के उस पहलू से पर्दा उठाया था, जो आज भी उनका पीछा कर रहा है. उसने ही उनकी जिंदगी को कुछ समय के लिए अंधकार में डुबो दिया था.
वह बताते हैं कि 3 अक्टूबर 1998 की रात को जब पूरा परिवार खाना खा रहा था. तभी अचानक दो-तीन आतंकवादी उनके घर घुस आए. उसके बाद उसके पिता पर गोलियों की बौछार कर उन्हें मार गिराया. मंजूर बशीर तब अपने पिता की गोद में बैठे हुए थे. तब उनकी उम्र केवल ढाई वर्ष थी. वह कहती हैं कि वह घटना उनकी जेहन में छप गई है. याद करते हैं तो कांप जाते हैं.
आवाज द वॉयस से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘ अगर मेरे पिता ने उस समय मुझे झुकाया नहीं होता, तो शायद मैं आज मैं आपसे बातें नहीं कर रहा होता. मंजूर बशीर के पिता जम्मू-कश्मीर पुलिस बल में थे. 1983 से पुलिस की नौकरी कर रहे थे, जो आतंकियों की आंखों में खटक रही थी.
मंजूर बशीर बताते हैं कि पिता की छाया सिर से उठने के बाद वह कुछ समय अपने दादा-दादी के पास रहे. वहीं उन्होंने दूसरी कक्षा तक पढ़ाई की. उनकी मां पांच बच्चों की परवरिश करने में असमर्थ थीं. ऐसे में जून 2005 में सरहद फाउंडेशन उसे अपने साथ पुणे ले आया.
कश्मीर की वादियों से पुणे तक के सफर में 150 अन्य बच्चे साथ थे. नूराबाद बांदीपुरा जम्मू कश्मीर में पैदा होने वाले मंजूर को पुणे पहुंचने परकई मामलों में चुनौतियांें का सामना करना पड़ा. मौसम में बदलाव भी परेशानी की एक वजह रही. इससे होने वाली समस्याओं से वह इससे पहले दो-चार नहीं हुए थे. मंजूर बशी ने सभी कठिनाइयों का डटकर सामना किया. इसके साथ संगीत में भी डूबते गए.
वह 2007 में नाज डांस एकेडमी में शामिल हुए. तब वह सिर्फ 12 साल के थे. सातवीं कक्षा में पढ़ते थे. नृत्य से उन्हें बहुत प्रोत्साहन मिला, जिससे उनकी इसके प्रति रुचि प्रति बढ़ती गई. इनकी लगन से प्रभावित होकर ही उन्हें नाज डांस एकेडमी में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था. उन्होंने बॉलीवुड डांस में महारत हासिल की है. इसके अलावा सालसा, हिप हॉप, फ्रीस्टाइल आदि भी बखूबी करते और कराते हैं.
मंजूर बशीर, जो कभी एक टूटा बिखरा हुआ बच्चा था. अपने घर और परिवार से मीलों दूर रहकर जीवन को समझने और खुद को एक बेहतर इंसान बनाने के लिए संघर्षरत था. आज एक मुकाम पर पहुंच गया है. उनका कहना है कि इस दौरान वह कई बार निराशा का शिकार हुए. मगर हर बार सरहद फाउंडेशन ने उन्हें प्रोत्साहित किया. आगे बढ़ने में हर संभव मदद की.
फाउंडेशन ने पुणे में मंजूर बशीर को घर बनने में भी मदद की. उनके जन्मस्थान ने उन्हें चोट दी, लेकिन पुणे ने उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया है. मंजूर आज भी कुछ नहीं भूले हैं. नहीं भूलना चाहते हैं. उनका कहना है कि अतीत की सभी कठिन परिस्थितियां उन्हें प्रोत्साहन और साहस देती हैं.
वह आभारी हैं कि उन्होंने उस युग को पीछे छोड़ दिया. किसी गलत रास्ते पर नहीं गए. आज वह जिस स्थान पर हैं. इतना तो कहा ही जा सकता है कि यह बहुत खास है.
वैसे कोरोना के कारण देशव्यापी लॉकडाउन ने उन्हें मुश्किल में डाल रखा है. हालांकि डांस एकेडमी की ऑनलाइन क्लास चल रही हैं. मंजूर बशीर ने 18 नवंबर 2019 में कोमल शिंदे से शादी कर अपना घर बसा लिया है.
वह सरहद फाउंडेशन के अध्यक्ष संजय नाहर और उनकी पत्नी सुषमा नाहर से बेहद खुश हैं. उन्हें धन्यवाद देते नहीं थकते. उनके मार्गदर्शन, प्यार और ईमानदारी ने उन्हें एक बेहतर इंसान बनने में मदद की. उनका उल्लेख करते हुए वे कहते हैं. ‘कान्हाजी को दो माताएं थी. एक ने जन्म दिया. दूसरे ने पाला. सुषमा नाहर मेरी ‘यशोदा मां‘ है.
कश्मीर का यह युवक उन हजारों लोगों के लिए उदाहरण है जो कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों में सही रास्ता छोड़ कर गलत राह पकड लेते हैं.