गौस सिवानी / नई दिल्ली
कला ईश्वर की देन है. यह तोहफा कश्मीरी युवक सूफियान रऊफ को भी ऊपर वाले ने ही दिया. उन्होंने किसी भी शिक्षक से बीट बॉक्सिंग की कला नहीं सीखी है. यह कला उनमें पैदा हुई है. हालांकि यू ट्यूब वीडियो ने उन्हें बेहतर बनाने में मदद की है.
वाद्ययंत्रों की सहायता के बिना संगीत बनाने की कला को बीट बॉक्सिंग कहा जाता है. यह एक ऐसी कला है, जिसमें मुंह, नाक, नासिका और गले से संगीत की धुन निकालना शामिल है और कभी-कभी इस उद्देश्य के लिए हाथ, पैर और अन्य अंगों का भी उपयोग किया जाता है.
दुनिया में बहुत कम लोग हैं, जो बिना वाद्य यंत्र के संगीत बना सकते हैं. सूफियान एक ऐसे व्यक्ति हैं. सूफियान का कहना है कि उन्होंने यूट्यूब के जरिए बीट बॉक्सिंग सीखी है, लेकिन लगातार अभ्यास से उनकी धुनें बेहतर होती जा रही हैं.
सूफियान 20 साल के हैं. उनके माता-पिता बीट बॉक्सिंग के बारे में कुछ नहीं जानते हैं, फिर भी वे हर कदम पर उनका साथ देते हैं. कुछ सालों से लोगों के सामने इस कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. .
सूफियान रऊफ का कहना है कि वह अपने पहले शो के दौरान काफी नर्वस हुआ करते थे, लेकिन आज वह काफी बेहतर महसूस कर रहे हैं. इसलिए अब वह बहुत अच्छी बीट बॉक्सिंग भी करते हैं. उन्होंने कहा कि इस संगीत के ज्यादातर हिस्से पर जोर पड़ता है.
सूफियान ने आगे कहा कि घाटी में युवाओं का रुझान भी बढ़ रहा है. उन्होंने अपने स्टेज का नाम ‘एबडॉक्स’ रखा है. वह कश्मीर में पहले बीट बॉक्सर हैं, जिन्होंने एक समुदाय भी स्थापित किया है और नए लड़कों के लिए यह एक आंदोलन है. दर्जनों युवा वर्तमान में उनसे सीख रहे हैं.
सुफियान कहते हैं, “मुझे बचपन से ही हिप-हॉप संगीत में दिलचस्पी रही है और जब से मैं प्राथमिक विद्यालय में था, तब से मुझे रैप संगीत की लत लग गई है. मैंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गोवा में प्राप्त की, जहाँ मैंने अपने स्कूल में संगीत प्रतियोगिताओं में भाग लिया.”
बीट बॉक्सिंग एक अज्ञात कला है और आम जनता को अच्छी तरह से नहीं पता है, सुफियान को भी पहले यह नहीं पता था कि वह इसे जारी रख पाएंगे या नहीं, लेकिन फिर उन्होंने न केवल जारी रखने का फैसला किया, बल्कि अपना समूह भी बनाया और आज बीट बॉक्सिंग कश्मीर में उसकी पहचान बन गई है.