अर्शी सलीमः उत्तर भारत की मलयालम शिक्षक

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
अर्शी सलीम
अर्शी सलीम

 

आवाज-द वॉयस/कोच्चि

ज्ञान का हस्तांतरण शिक्षा का नाम है, जबकि शिक्षा एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें सीखना और पढ़ाना जारी रहता है. शिक्षा का एक महत्वपूर्ण घटक भाषा है. भाषा के माध्यम से हम विभिन्न विज्ञानों और कलाओं को सीखते हैं. यदि आपके पास एक भाषा तक पहुंच है, तो दूसरी भाषा सीखना और समझना आसान हो जाता है. ऐसी ही एक महिला हैं उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की अर्शी सलीम. हालाँकि वह उत्तर भारत की रहने वाली है, लेकिन वह दक्षिण भारत में बच्चों को मलयालम पढ़ा रही है.

अर्शी सलीम फिलहाल केरल के कोच्चि में रहती हैं. वह वहां के एक गैर सरकारी संगठन, ब्लॉक रिसोर्स सेंटर (कोठामंगलम) से संबद्ध है, जो सागर शिक्षा केरल के तत्वावधान में अपना काम जारी रखे हुए है. ब्लॉक रिसोर्स सेंटर को कोरोना वायरस और लॉकडाउन के पहले चरण के दौरान लॉन्च किया गया था.

अर्शी सलीम प्रवासी श्रमिकों के बच्चों को मलयालम पढ़ाने के लिए स्वेच्छा से काम कर रही हैं. वर्तमान में, लगभग तीन दर्जन बच्चे (30) उनसे मलयालम सीख रहे हैं.

यह देखते हुए कि जिले में 41 ऐसे विशेष प्रशिक्षण केंद्र चल रहे हैं, उनका एकमात्र उद्देश्य उन स्कूलों के बच्चों को शिक्षित करना है जिनके लिए ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करना संभव नहीं है.

इस संबंध में, समरशाक्ष केरल (एसएसके) की जिला प्रभारी सुश्री ओशा मंत ने एक साक्षात्कार में कहा कि गरीब स्कूली बच्चों के अलावा, बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों के बच्चे और आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों ने भी उनके केंद्रों का दौरा किया. क्लास अटेंड करने आ रहे हैं.

अर्शी अपने माता-पिता के साथ केरल आई थी जब वह चौथी कक्षा में थी. उसने वहां मलयालम सीखी और नेलिकोजी के सरकारी हाई स्कूल से 10 वीं कक्षा ए प्लस (़ ए) ग्रेड पास की.

अर्शी सलीम कहती हैं, “मैं स्थानीय लोगों की तरह मलयालम बोलना चाहती थी, इसलिए मैंने अपने स्कूल के शिक्षकों से संपर्क किया. उन्होंने स्थानीय लोगों की तरह मलयालम सिखाने में मेरी बहुत मदद की.”

उन्होंने कहा, “मैं एक गैर-मलयालम छात्रा थ्ीा, इसलिए मुझे मलयालम सीखने में अधिक कठिनाई हुई. जब मैंने प्रवासी श्रमिकों के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, तो मैं उनकी समस्याओं को पहले से ही जानती थी, इसलिए मैंने उन्हें बेहतर तरीके से पढ़ाना शुरू किया.”

वर्तमान में कोठामंगलम के दो केंद्रों पर प्रवासी श्रमिकों के बच्चों को मलयालम पढ़ाया जा रहा है. ये बच्चे भारत के अलग-अलग राज्यों से ताल्लुक रखते हैं. कुछ बच्चे उत्तर प्रदेश के हैं, कुछ बिहार के और कुछ सीमावर्ती राज्य असम के हैं.

अर्शी सलीम ने भी 12वीं पास की है. वह इन दिनों बच्चों को कंप्यूटर के साथ-साथ मलयालम सिखाने में व्यस्त हैं.

अर्शी खान अपने जीवन के अगले चरण में शिक्षिका बनना चाहती हैं.