नेपाल में गहराया राजनीतिक संकट: संसद की बहाली की मांग, हिंसक प्रदर्शन अंतरिम सरकार की चुनौती

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 14-09-2025
Political crisis deepens in Nepal: Demand for restoration of Parliament, violent protests challenge the interim government
Political crisis deepens in Nepal: Demand for restoration of Parliament, violent protests challenge the interim government

 

काठमांडू

नेपाल इस समय एक गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है। हाल ही में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों के बीच भड़की हिंसा और विरोध के चलते राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल द्वारा संसद को भंग कर दिया गया, जिससे स्थिति और भी अस्थिर हो गई है। अब देश के प्रमुख राजनीतिक दल इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए संसद की बहाली की ज़ोरदार मांग कर रहे हैं।

ब्रिटिश मीडिया संगठन बीबीसी के मुताबिक, नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-यूएमएल, माओवादी सेंटर सहित आठ प्रमुख दलों ने शनिवार (13 सितंबर) को एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें राष्ट्रपति के इस कदम को संविधान और न्यायिक परंपरा के खिलाफ बताया गया। राष्ट्रपति ने यह निर्णय हाल ही में नियुक्त अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की की सलाह पर लिया था।

गौरतलब है कि यह निर्णय ऐसे समय में आया जब सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण पूरे देश में उग्र विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। विरोध के दौरान प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं, जिनमें अब तक कम से कम 50 लोगों की मौत हो चुकी है। इस आंदोलन ने धीरे-धीरे राजनीतिक अभिजात वर्ग के खिलाफ नाराज़गी और भ्रष्टाचार के मुद्दे को भी केंद्र में ला दिया।

सोमवार को सरकार ने सोशल मीडिया प्रतिबंध हटा तो लिया, लेकिन तब तक आंदोलन व्यापक रूप ले चुका था। गुस्साई भीड़ ने मंगलवार को काठमांडू स्थित संसद भवन और कई सरकारी कार्यालयों में आग लगा दी, जिससे तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा।

इस पृष्ठभूमि में, 73 वर्षीय पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की ने नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है। उनके नेतृत्व में सरकार को अब कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना है—जैसे कानून-व्यवस्था बहाल करना, संसद और सरकारी भवनों का पुनर्निर्माण, और आंदोलनरत युवाओं का विश्वास दोबारा हासिल करना। साथ ही, हिंसा के दोषियों को न्याय के दायरे में लाना भी अनिवार्य होगा।

हालाँकि "जनरल जी" नामक आंदोलन, जिसने संसद को भंग करने की भी माँग की थी, फिलहाल कार्की के नेतृत्व को समर्थन दे रहा है। कार्की की छवि एक ईमानदार और भ्रष्टाचार-विरोधी नेता के रूप में देखी जा रही है, जिससे लोगों को बदलाव की उम्मीद है।

राष्ट्रपति पौडेल ने भी सभी दलों से संयम बरतने की अपील करते हुए कहा है कि आने वाले छह महीनों में चुनाव आयोजित कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पुनर्स्थापित किया जाएगा। उन्होंने यह भी आश्वस्त किया कि नेपाल का संविधान, संघीय व्यवस्था और संसदीय प्रणाली पूरी तरह सुरक्षित हैं।

इस संकट की शुरुआत सोशल मीडिया पर प्रतिबंधों से हुई थी, जब सरकार ने व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और फेसबुक समेत 26 डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर रोक लगा दी थी। इसके विरोध में शुरू हुए प्रदर्शन जल्द ही व्यापक जनआंदोलन में बदल गए, जिनमें "नेपो किड्स" जैसे अभियानों ने भी राजनीतिक नेताओं के परिजनों की विलासितापूर्ण जीवनशैली और कथित भ्रष्टाचार को उजागर किया।

अब नेपाल के सामने एक मुश्किल राह है—जहाँ उसे लोकतंत्र की रक्षा करनी है, जनविश्वास दोबारा अर्जित करना है और एक शांतिपूर्ण राजनीतिक संक्रमण को सुनिश्चित करना है। सुशीला कार्की के नेतृत्व में अंतरिम सरकार इन उम्मीदों पर कितनी खरी उतरती है, यह आने वाला समय बताएगा।