राजस्थान की वो 10 आवाज़ें, जो ख़ामोशी से इतिहास लिख रही हैं

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 14-09-2025
10 changemakers of Rajasthan who brought glory to the society
10 changemakers of Rajasthan who brought glory to the society

 

आवाज़ द वॉयस ब्यूरो, जयपुर

राजस्थान, अपनी रेतीली धरती, ऐतिहासिक किलों और जीवंत संस्कृति के लिए जाना जाता है, लेकिन इसकी असली पहचान यहाँ के उन लोगों से है जो चुपचाप समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं. 'आवाज़ द वॉयस' की चर्चित सीरीज़ 'द चेंज मेकर्स' के तहत हम आपको राजस्थान के दस ऐसी शख्सियतों से रूबरू करा रहे हैं, जिन्होंने अपने असाधारण कामों से न केवल लोगों को प्रेरित किया है, बल्कि अपनी मेहनत और लगन से देश और दुनिया में राजस्थान का नाम रोशन किया है. इन कहानियों में राजस्थान की मिट्टी की खुशबू है, जो आपको भी प्रभावित किए बिना नहीं रह पाएगी.

बतूल बेगम: सुरों की विरासत की जीवित धरोहर

जयपुर की गलियों में गूंजता एक नाम है बतूल बेगम. राजस्थान की माटी से जन्मी यह विलक्षण गायिका भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक जीवित विरासत हैं. नागौर जिले के केराप गांव में एक मुस्लिम परिवार और मीरासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली बतूल ने सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हुए भी अपने बचपन में ही संगीत के प्रति एक गहरा जुनून विकसित कर लिया था. उनकी सुरीली आवाज़ और संगीत के प्रति उनकी लगन ने उन्हें न केवल एक कलाकार के रूप में पहचान दिलाई, बल्कि यह भी साबित किया कि प्रतिभा किसी भी बाधा की मोहताज नहीं होती. उनकी कला उनके समुदाय और पूरे राजस्थान के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

अब्दुल सलाम जौहर: लाख की चूड़ियों से वैश्विक पहचान तक

जयपुर की गुलाबी दीवारों और रंगीन गलियों में फैली खुशबू सिर्फ इत्र की नहीं होती, बल्कि उसमें उस पारंपरिक हस्तशिल्प की आत्मा बसी होती है जो इस शहर की पहचान है. इन्हीं गलियों में लाखों की चूड़ियाँ बनती हैं, जो पारंपरिक सुंदरता का प्रतीक और हजारों हाथों की मेहनत का नतीजा हैं. इसी दुनिया से निकलकर एक ऐसा नाम सामने आया जिसने इस कला को एक नया आयाम दिया और समाज सुधार की दिशा में गहरी छाप छोड़ी—अब्दुल सलाम जौहर.

मनिहार बिरादरी से आने वाले जौहर का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उनके सपने असाधारण थे. उनके दादा हाफिज मोहम्मद इस्माइल और माता-पिता हाजी अब्दुल अजीज व हज्जन कमर जहाँ के संघर्षों को देखकर उन्होंने मेहनत, लगन और समाज सेवा को जीवन का मूल मंत्र बना लिया. जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में स्थित उनकी पुश्तैनी दुकान 'इंडियन कंगन एंड कलर स्टोर' से शुरू हुआ उनका सफर आज वैश्विक बाजारों में 'जौहर डिज़ाइन', 'जौहर किंग' और 'इंडियन क्राफ्ट्स' जैसे ब्रांड्स तक पहुँच चुका है. वे न केवल एक सफल उद्यमी हैं, बल्कि एक समाज सुधारक भी हैं जिन्होंने अपनी बिरादरी और पारंपरिक कला को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया.

अब्दुल लतीफ़ 'आरको': व्यापार और समाजसेवा का संगम

गुलाबी नगरी जयपुर अपनी संस्कृति के साथ-साथ उन लोगों के लिए भी जाना जाता है जो समाज में बदलाव लाते हैं. राजधानी जयपुर के चीनी की बुर्ज में रहने वाले अब्दुल लतीफ साहब, जिन्हें पूरे राजस्थान में लोग 'आरको' के नाम से पहचानते हैं, ऐसी ही एक खास शख्सियत हैं. 1946 में चोमू के एक छोटे से गाँव में जन्मे अब्दुल लतीफ की कहानी एक साधारण परिवार से शुरू होती है. उनके पिता रहमतुल्लाह और माँ हफीजन ने उन्हें मेहनत, ईमानदारी और लोगों की मदद करने का जज़्बा सिखाया, जो उनकी ज़िंदगी का आधार बना.

उनकी कंपनी, अब्दुल रज्जाक एंड कंपनी (आरको), आज इलेक्ट्रिक मोटर, पंखे और कूलर के साथ-साथ समाजसेवा के लिए भी एक बड़ा नाम है. इसके अलावा, उनका होटल आरको पैलेस उनकी मेहनत और दूरदर्शिता का प्रतीक है. अब्दुल लतीफ की कहानी सिर्फ एक व्यापारी की नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स की है जिसने अपने व्यापार और सामाजिक जिम्मेदारियों को मिलाकर समाज को बेहतर बनाने का रास्ता चुना.

महिला क़ाज़ी निशात हुसैन: रूढ़ियों को तोड़ती एक नई आवाज़

राजस्थान की राजधानी जयपुर के जौहरी बाजार की तंग गलियों में स्थित एक छोटे से ऑफिस से उठती आवाज आज पूरे समाज को बदलने की प्रेरणा दे रही है. यह आवाज है निशात हुसैन की—राजस्थान की पहली मुस्लिम महिला काजी, सामाजिक कार्यकर्ता और मुस्लिम महिलाओं के हक की प्रखर पैरोकार. 

उनके जीवन का सफर साहस, संघर्ष और बदलाव की मिसाल है, जिसने हजारों महिलाओं को न सिर्फ जागरूक किया बल्कि उन्हें जीने की एक नई दिशा भी दी.

करौली जिले के सीताबाड़ी मोहल्ले में जन्मी निशात का बचपन सांप्रदायिक सौहार्द के बीच बीता, जहाँ उनका परिवार अकेला मुस्लिम परिवार था और उनके घर के सामने तीन मंदिर थे. वे बताती हैं, "हमें नहीं पता था कि हिंदू कौन है और मुसलमान कौन है."

करौली जैसे पिछड़े इलाके में जहाँ लड़कियों की शिक्षा को तवज्जो नहीं दी जाती थी, वहाँ निशात ने इतिहास रच दिया. वे पूरे जिले की पहली मुस्लिम लड़की बनीं जिसने दसवीं पास की, वह भी 1200 लड़कियों में अकेली मुस्लिम छात्रा के रूप में. आज, उनकी आवाज मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए एक मशाल बन चुकी है.

कैप्टन मिर्जा मोहताशिम बैग और रूबी खान: समाज सेवा की प्रेरणादायक जोड़ी

जयपुर, जिसे गुलाबी नगरी कहा जाता है, उन लोगों के लिए भी जाना जाता है जो समाज को बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं. ऐसी ही एक प्रेरणादायक जोड़ी है कैप्टन मिर्जा मोहताशिम बैग और उनकी पत्नी रूबी खान की. कैप्टन मिर्जा राजस्थान के पहले मुस्लिम पायलट हैं और पिछले 25 वर्षों से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का संचालन कर रहे हैं. वहीं, उनकी पत्नी रूबी एक सक्रिय समाजसेवी और राजनेता हैं.

दोनों का मानना है कि अगर समाज में बदलाव लाना है तो पहल खुद से करनी होगी. दोनों ने मिलकर मेडिकल कैंप, दस्तावेज़ीकरण शिविर, निशुल्क राशन वितरण और लड़कियों की शादी में सहायता जैसे कई सामाजिक प्रयास शुरू किए हैं. उनकी जोड़ी यह साबित करती है कि अगर एक साथ मिलकर काम किया जाए तो समाज में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है.

डॉ. आरिफ खान: गाँव का वैज्ञानिक जिसने रचा इतिहास

राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के छोटे से गाँव मसानी में 34 साल पहले एक सितारा चमका—डॉ. आरिफ खान. जहाँ दिन खेतों में मेहनत और रातें सितारों तले बीतती थीं, आरिफ का जन्म हुआ. उनके पिता, एडवोकेट फरीद खान, चाहते थे कि उनका बेटा डॉक्टर बने. 

उनकी माँ और दादा का भी यही सपना था. लेकिन मसानी में स्कूल कम थे और सपनों को सच करने के रास्ते मुश्किल थे. फिर भी, आरिफ के दिल में कुछ कर गुजरने का जुनून था.

उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बल पर जैव वैज्ञानिक बनकर अपने परिवार और गाँव का नाम रोशन किया. दूध और खाद्य पदार्थों पर उनके शोध ने बदलाव की लहर लाई. उनकी कहानी यह साबित करती है कि अगर इरादे मजबूत हों तो छोटे से गाँव का एक लड़का भी वैज्ञानिक बनकर देश को गर्व महसूस करा सकता है.

मैनूना नर्गिस: कला संरक्षण में पहली शिया मुस्लिम महिला

भारत जैसे विशाल देश में, कला संरक्षण एक ऐसा क्षेत्र है जो न केवल इतिहास को संजोता है, बल्कि भावी पीढ़ियों को हमारी विरासत से भी जोड़ता है. इसी क्षेत्र में एक अनोखा नाम है— मैनूना नर्गिस, जो देश की पहली और अब तक की एकमात्र शिया मुस्लिम महिला आर्ट कंज़र्वेटर हैं. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के छोटे से कस्बे बहजोई में जन्मी मैमुना का बचपन साधारण था, लेकिन उनके ख्वाब असाधारण थे. मैनूना का अब दूसरा घर राजस्थान ही बन गया है.

उनके पिता यूपी पुलिस में थे और उन्होंने हमेशा उन्हें प्रोत्साहित किया. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) से फाइन आर्ट्स में पढ़ाई करने के बाद, उन्होंने म्यूजियोलॉजी में डिप्लोमा किया, जो उनके जीवन का सबसे निर्णायक मोड़ बन गया. मैमुना की कहानी सिर्फ पेशेवर सफलता की नहीं, बल्कि एक ऐसे जुनून, संघर्ष और आत्मबल की कहानी है, जिसने इतिहास के टूटे हुए टुकड़ों को फिर से जिंदा किया.

योग गुरु नईम खान: संगीत से योग तक का वैश्विक सफर

रेतीले राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी जोधपुर की गलियों से उठकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी आध्यात्मिक आभा बिखेरने वाले योग गुरु नईम खान की जीवन यात्रा एक विलक्षण उदाहरण है. एक आम इंसान से एक वैश्विक योग गुरु बनने का उनका सफर, जिसने योग को धर्म, संस्कृति और सीमाओं से परे एक सार्वभौमिक ऊर्जा के रूप में प्रस्तुत किया.

नईम खान का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जहाँ हर साँस में संगीत था। उनके दादा उस्ताद उमरदीन खान जोधपुर राजघराने के दरबारी संगीतकार थे, तो उनके मामा पद्म भूषण से सम्मानित सरोद वादक उस्ताद सुल्तान खान थे. लेकिन बदलते समय के साथ संगीत की वह पारंपरिक लौ धीमी होने लगी। नईम और उनके भाई व्यवसाय में लग गए, लेकिन नईम को योग ने एक नई दिशा दी और उन्होंने इसे एक वैश्विक मंच पर पहुँचाया.

पद्मश्री शाकिर अली: मिनिएचर पेंटिंग के संरक्षक

जयपुर की हवाओं में कला की खुशबू हमेशा से बसी रही है. जब बात मिनिएचर पेंटिंग यानी लघुचित्र कला की आती है, तो सैयद शाकिर अली का नाम अनायास ही सामने आता है. पद्मश्री से सम्मानित सैयद शाकिर अली न सिर्फ इस कला के बेहतरीन साधक हैं, बल्कि वे उस विरासत के संरक्षक भी हैं, जो राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है. 1956 में उत्तर प्रदेश के जलेसर गाँव में जन्मे शाकिर अली का परिवार जल्द ही जयपुर आ बसा, जहाँ उनकी कला को एक नई दिशा मिली. वे आज न सिर्फ भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी राजस्थान की इस पारंपरिक कला को पहचान दिला चुके हैं.

सैयद अनवर शाह: शिक्षा की मशाल, हजारों बेटियों के लिए

जयपुर के एक छोटे से कमरे में 30 साल पहले एक ख्वाब ने जन्म लिया—ऐसा ख्वाब जो आज हजारों बेटियों के लिए तालीम की रोशनी बन चुका है. यह कहानी है सैयद अनवर शाह की, जिन्हें लोग मोहब्बत से मास्टर अनवर शाह कहते हैं. उन्होंने न सिर्फ अपनी बेटी की तालीम का सपना देखा, बल्कि उसे पूरे समाज की बेटियों की तरक्की का जरिया बना दिया.

आज उनका तालीमी इदारा अल-जामिया-तुल आलिया जयपुर में ही नहीं, बल्कि पूरे हिंदुस्तान और विदेशों में भी इल्म और इस्लामी अख़लाक का पैगाम फैला रहा है. 1980 में राजस्थान यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में एम.ए. करने के बाद, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज की भलाई और शिक्षा की सेवा के लिए समर्पित कर दिया. 

1995 में जब उनकी बेटी आलिया पैदा हुई, तो उन्होंने फैसला किया कि अब बेटियों की तालीम के लिए एक ऐसा इदारा बनाना है जो इस्लामी माहौल में दुनिया और दीनी तालीम दोनों का मजबूत संगम हो. उनका यह प्रयास आज हजारों परिवारों के लिए एक वरदान बन चुका है.