अमेरिकी व्यापार कार्रवाइयों से फार्मा सेक्टर पर मंडराया संकट: रिपोर्ट

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 19-08-2025
Pharma sector in trouble due to US trade actions: Report
Pharma sector in trouble due to US trade actions: Report

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

 
भारत का फार्मा सेक्टर, जो देश के सबसे बड़े निर्यात स्त्रोतों में से एक है, अमेरिकी व्यापार नीतियों के नए कदमों की वजह से दबाव में आ सकता है। रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने अपनी नवीनतम फिच वायर रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि यदि अमेरिका भारतीय दवाओं पर अतिरिक्त टैरिफ लगाता है तो इसका गंभीर असर हो सकता है.
 
रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय कॉरपोरेट्स पर फिलहाल अमेरिकी टैरिफ का सीधा असर बहुत सीमित है, लेकिन फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री इसके अपवाद के रूप में सामने आई है. अमेरिका भारतीय दवा कंपनियों के लिए सबसे बड़ा बाज़ार है, और ऐसे में टैरिफ बढ़ने पर पूरा सेक्टर झटका खा सकता है.
 
बायोकॉन बायोलॉजिक्स लिमिटेड, जो बायोसिमिलर्स पर केंद्रित है, सबसे ज्यादा जोखिम में है। कंपनी की लगभग 40 प्रतिशत कमाई अमेरिकी बाजार से होती है, जबकि इसके ज़्यादातर प्रोडक्ट भारत और मलेशिया में बनाए जाते हैं. फिच का कहना है कि अगर अमेरिका दवा निर्यात पर भारी टैरिफ लगाता है तो बायोकॉन को झटका लग सकता है. चूंकि दवा बाजार अत्यधिक प्रतिस्पर्धी है, ऐसे में बढ़ी हुई लागत को सीधे उपभोक्ताओं पर डालना आसान नहीं होगा.
 
यह चेतावनी उस समय आई है जब अमेरिका ने हाल ही में 7 अगस्त से भारतीय सामान पर 25 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ लागू कर दिया है और 27 अगस्त से रूसी तेल से जुड़े आयात पर भी 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाने का फैसला किया है। इन कदमों से पहले ही कई भारतीय उद्योगों के भविष्य पर अनिश्चितता छा गई है.
 
फार्मा के अलावा, ऑटोमोबाइल और केमिकल सेक्टर भी आंशिक जोखिम में बताए गए हैं। समवार्धना मदरसन इंटरनेशनल लिमिटेड, जो अमेरिकी बाजार से लगभग 20 प्रतिशत बिक्री करती है, पर असर सीमित हो सकता है क्योंकि इसकी ज़्यादातर मैन्युफैक्चरिंग अमेरिका और मैक्सिको में है. हालांकि, फिच ने इस साल की शुरुआत में ही ग्लोबल ऑटो सेक्टर में अस्थिरता को देखते हुए कंपनी की आउटलुक “पॉज़िटिव” से “स्टेबल” कर दी थी.
 
इसी तरह यूपीएल लिमिटेड, जिसका 10-12 प्रतिशत कारोबार अमेरिका से आता है, पर भी दबाव आ सकता है क्योंकि भारत से निर्यात किए गए क्रॉप-प्रोटेक्शन प्रोडक्ट्स पर वही टैरिफ लगने की आशंका है जो चीन पर लागू हैं.
 
टैरिफ संकट का असर केवल मैन्युफैक्चरिंग तक सीमित नहीं रहेगा। भारत की तेल कंपनियों की लाभप्रदता भी प्रभावित हो सकती है, क्योंकि देश की 30-40 प्रतिशत कच्चे तेल की आपूर्ति रूस से होती है। फिच का अनुमान है कि अगर रूसी तेल की खरीद पूरी तरह रुक जाए तो सरकारी तेल विपणन कंपनियों की कमाई पर 10 प्रतिशत तक का असर पड़ सकता है। हालांकि सरकारी सहयोग से उनकी क्रेडिट रेटिंग स्थिर बनी रहेगी.
 
फिच ने साफ किया है कि आईटी सेवाएं, सीमेंट, टेलीकॉम और यूटिलिटीज जैसे क्षेत्रों पर फिलहाल सीधा असर नहीं दिख रहा, लेकिन अगर भारत पर टैरिफ का स्तर बाकी एशियाई देशों से ज्यादा रहता है तो 2025-26 के लिए अनुमानित 6.5 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर दबाव में आ सकती है.