इमरान खान के भांजे शेरशाह खान को 9 मई दंगों के मामले में मिली जमानत

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 04-09-2025
Imran Khan's nephew Sher Shah Khan gets bail in 9 May riots case
Imran Khan's nephew Sher Shah Khan gets bail in 9 May riots case

 

लाहौर

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के भांजे शेरशाह खान को 9 मई 2023 को लाहौर में हुई हिंसा से जुड़े एक मामले में आतंकवाद निरोधी अदालत (एटीसी) ने जमानत दे दी है। यह मामला लाहौर स्थित वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के आवास (कोर कमांडर हाउस/जिन्ना हाउस) पर हुए हमले से संबंधित है।

इससे एक दिन पहले ही शेरशाह के भाई शाहरेज खान को भी इसी मामले में एटीसी से जमानत मिल चुकी है। दोनों भाई इमरान खान की बहन अलीमा खान के बेटे हैं।

लाहौर पुलिस ने इन दोनों को 21 अगस्त को गिरफ्तार किया था। हिरासत अवधि समाप्त होने के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया था। अलीमा खान ने इन मामलों को फर्जी बताते हुए कहा था कि उनके बेटों को सिर्फ इमरान खान से पारिवारिक रिश्ता होने की वजह से निशाना बनाया जा रहा है।

मामले की सुनवाई के दौरान शेरशाह के वकील ने अदालत में दलील दी कि अभियोजन पक्ष अब तक कोई ठोस सबूत या रिकॉर्ड पेश नहीं कर पाया है जो यह सिद्ध करे कि उनका मुवक्किल 9 मई की हिंसा में शामिल था।

वकील ने कहा कि,"शेरशाह की गिरफ्तारी हिंसा की घटना के 27 महीने बाद की गई, जिससे स्पष्ट होता है कि यह कार्रवाई पुलिस की राजनीतिक दुर्भावना के तहत की गई है। उन्हें केवल इसलिए जेल में डाला गया है क्योंकि वह इमरान खान का भांजा है।"

दलीलें सुनने के बाद, आतंकवाद निरोधी अदालत के न्यायाधीश मंजर अली गिल ने शेरशाह को 100,000 पाकिस्तानी रुपये की जमानत राशि जमा करने की शर्त पर रिहा करने का आदेश दिया।

इस मामले को लेकर एमनेस्टी इंटरनेशनल और पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने भी चिंता जाहिर की थी और इन गिरफ्तारियों को राजनीतिक प्रतिशोध बताया था।

गौरतलब है कि इमरान खान की 9 मई 2023 को गिरफ्तारी के बाद पूरे पाकिस्तान में उनके समर्थकों ने सैन्य और सरकारी इमारतों पर हमले किए थे। इसके चलते पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ताओं और नेताओं को कड़ी सज़ाएं सुनाई जा चुकी हैं।

इमरान खान के एक और भांजे हसन नियाज़ी को सैन्य अदालत द्वारा दोषी करार देते हुए 10 साल की सजा सुनाई गई है।इस पूरी घटना को पाकिस्तान की राजनीति में राजनीतिक बदले की कार्रवाई और मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है।