आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
केंद्रीय आम बजट से पहले खनन निकाय एफआईएमआई (फिमी) ने सरकार से प्राथमिक एल्युमिनियम और विपणन योग्य उत्पादों पर बुनियादी सीमा शुल्क बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने की मांग की है ताकि बढ़ते आयात को रोका जा सके और घरेलू विनिर्माताओं को सुरक्षित किया जा सके।
आम बजट 2026-27 से पहले वित्त मंत्रालय को अपनी खास सिफारिशों में, फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्रीज (फिमी) ने कहा कि देश का एल्युमिनियम विनिर्माण आधार, एल्युमिनियम की बहुतायत वाले देशों से आयात में बढ़ोतरी के कारण गंभीर दबाव का सामना कर रहा है, जो दूसरे बड़े बाजारों में शुल्क और गैर-शुल्क बाधाओं को लगाने के बाद अपना निर्यात भारत की ओर कर रहे हैं।
फिमी ने चेतावनी दी कि कम शुल्क पर लगातार आयात होने से घरेलू क्षमता का इस्तेमाल कम हो सकता है और इस क्षेत्र में निवेश में रुकावट आ सकती है। इसने विदेश में संरक्षणवादी उपायों से फायदा उठाने वाले वैश्विक प्रतिस्पर्धिर्यों के मुकाबले भारतीय विनिर्माताओं के लिए बराबरी का मौका बनाने को नीति में दखल देने की मांग की।
फिमी ने एल्युमीनियम आयात में तेजी, खासकर चीन, रूस, आसियान देशों और पश्चिम एशिया से बढ़ोतरी पर चिंता जताई। इसने कहा कि काफी घरेलू क्षमता होने के बावजूद, वित्त वर्ष 2025-26 में भारत की 55 प्रतिशत से ज़्यादा एल्युमीनियम की मांग आयात से पूरी होने की संभावना है।
इसने एल्युमीनियम कबाड़ के बढ़ते आयात पर भी ध्यान दिलाया, जिससे स्क्रैप और पुनचक्रण के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के नियमों की कमी के कारण भारत दुनिया का सबसे बड़ा आयातक बन गया है। इसने सरकार से एल्युमीनियम दृष्टिकोण दस्तावेज में बताए गए वैश्विक मानक के हिसाब से एल्युमीनियम स्क्रैप के लिए गुणवत्ता मानक लाने की अपील की।
अधिक उत्पादन लागत को कम करने के लिए, फिमी ने एल्युमीनियम विनिर्माण में इस्तेमाल होने वाले जरूरी कच्चे माल पर शुल्क कम करने की सिफारिश की। इसने कहा कि भारतीय उत्पादकों को उलट शुल्क ढांचे, कई कर और उपकर, बिजली शुल्क और ज़्यादा लॉजिस्टिक्स लागत से दबाव का सामना करना पड़ता है।
फेडरेशन ने कहा कि हालांकि भारत के पास बॉक्साइट और कोयले का बहुत ज़्यादा भंडार है, लेकिन घरेलू एल्युमीनियम उत्पादन लागत दुनिया भर में सबसे ज़्यादा है, जिसमें अकेले कर और शुल्क कुल उत्पादन लागत का लगभग 17 प्रतिशत हिस्सा हैं।