दुबई
दुबई अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय केंद्र (DIFC) की अदालत ने भारतीय मूल के व्यवसायी बी.आर. शेट्टी को 168.7 मिलियन दिरहम (लगभग ₹380 करोड़) का भुगतान करने का आदेश दिया है। यह आदेश बैंक ऑफ इंडिया की दुबई शाखा द्वारा दर्ज किए गए एक मामले में सुनाया गया।
DIFC कोर्ट के जस्टिस एंड्रयू मोरन ने अपने फैसले में कहा कि शेट्टी की गवाही "झूठ और विरोधाभासी दावों की एक अविश्वसनीय श्रृंखला" पर आधारित थी। अदालत ने पाया कि वर्ष 2018 में 50 मिलियन डॉलर के ऋण के लिए जब बी.आर. शेट्टी ने व्यक्तिगत गारंटी पर हस्ताक्षर किए थे, उस समय उन्होंने जानबूझकर झूठे तथ्य प्रस्तुत किए।
कोर्ट ने इस मामले में प्रस्तुत किए गए दस्तावेज़ों, तस्वीरों और बी.आर. शेट्टी के हस्ताक्षरों की सत्यता की पुष्टि के आधार पर अपना निर्णय सुनाया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि जब तक पूरा भुगतान नहीं होता, तब तक 9% वार्षिक ब्याज लगाया जाएगा। इस हिसाब से शेट्टी को प्रतिदिन लगभग 11,341 डॉलर (लगभग ₹9.4 लाख) का ब्याज चुकाना होगा।
बी.आर. शेट्टी का सफर
बी.आर. शेट्टी ने 1975 में यूएई में एक हेल्थकेयर कंपनी की स्थापना की थी, जो आगे चलकर संयुक्त अरब अमीरात की सबसे बड़ी निजी स्वास्थ्य सेवा कंपनियों में से एक बनी। उन्होंने "एनएमसी हेल्थ" नाम की इस कंपनी को अरबों डॉलर की संस्था में तब्दील किया।
हालांकि, 2019 में एक बड़ा वित्तीय घोटाला उजागर हुआ, जिसमें पता चला कि कंपनी ने 4.4 बिलियन डॉलर का अघोषित ऋण लिया था। इसके बाद कंपनी दिवालिया घोषित हो गई, और बी.आर. शेट्टी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। घोटाले के बाद वे यूएई छोड़कर भारत लौट आए, जहां उनके खिलाफ कई कानूनी प्रक्रियाएं लंबित हैं।
यह फैसला यूएई में विदेशी निवेशकों और वित्तीय अनुशासन को लेकर बढ़ते नियामक कड़े रुख को भी दर्शाता है।