जोहानिसबर्ग
दक्षिण अफ्रीका में संपन्न जी20 शिखर सम्मेलन में शामिल गरीब और विकासशील देशों ने इस मंच का इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन से निपटने और बढ़ते ऋण बोझ जैसे मुद्दों पर विश्व नेताओं पर दबाव बनाने के लिए किया। ये दोनों ही विषय सीधे तौर पर विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे को प्रभावित करते हैं।
सम्मेलन के दौरान कई देशों ने खनन, प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में सहयोग का आह्वान किया और अपने आप को विश्व अर्थव्यवस्था में बराबरी के साझेदार के रूप में स्थापित करने की इच्छा जताई।
दक्षिण अफ्रीका की अध्यक्षता की व्यापक सराहना की गई, जिसने नए जी20 एजेंडे में वैश्विक असमानता और गरीब देशों की वास्तविक जरूरतों को प्राथमिकता दी। दक्षिण अफ्रीका ने यह अध्यक्षता अमेरिका को सौंपी थी। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आरोप लगाते हुए सम्मेलन का बहिष्कार किया कि दक्षिण अफ्रीका अपने देश में श्वेत अल्पसंख्यकों का दमन कर रहा है।
इस वर्ष के जी20 सम्मेलन में सदस्य देशों के साथ-साथ अफ्रीकी संघ, यूरोपीय संघ और जिम्बाब्वे, नामीबिया, जमैका, मलेशिया जैसे कई विकासशील देशों को भी आमंत्रित किया गया।
इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद ने कहा,“हम यहाँ निराशा की नहीं, बल्कि संभावनाओं और साझा जिम्मेदारियों की बात करने आए हैं।”
अहमद ने ऋण राहत को वास्तविक विकासात्मक निवेशों में बदलने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि समावेशिता किसी दान का विषय नहीं बल्कि दक्षता का मॉडल है।
नामीबिया की राष्ट्रपति नेटुम्बो नंदी-नदैतवा ने विकासशील देशों के लिए अधिक न्यायपूर्ण वित्तीय व्यवस्था की मांग उठाई। उन्होंने बताया कि नामीबिया ने हाल ही में अपने 750 मिलियन डॉलर के बॉण्ड का समय पर भुगतान किया, फिर भी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान उसे जोखिम भरा देश मानते हैं।
उन्होंने कहा, “हमें ऐसे वित्तीय ढांचे की जरूरत है जो निष्पक्ष हों।”
जमैका के प्रधानमंत्री एंड्रयू माइकल होलनेस ने जलवायु परिवर्तन से बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं का मुद्दा उठाया और बताया कि तूफान मेलिसा जैसे खतरों ने उनके देश की वर्षों की प्रगति को पल भर में नष्ट कर दिया।उन्होंने कहा, “एक बाहरी झटका वर्षों की कमाई को खत्म कर सकता है।”
विश्व व्यापार संगठन (WTO) की महानिदेशक एन. ओकोन्जो-इवेला ने अफ्रीकी नेताओं को सलाह दी कि वे वैश्विक व्यापार नीतियों को भविष्य की दृष्टि से देखें।
उन्होंने कहा, “अगर हमारे निर्यात का 60 प्रतिशत हिस्सा अभी भी कच्चे माल पर आधारित है, तो विकास का संतुलन नहीं बदल पाएगा।”
विचार संस्था ऑक्सफैम के आर्थिक एवं नस्लीय न्याय निदेशक नबील अहमद ने कहा कि उप-क्षेत्रीय और क्षेत्रीय मूल्य शृंखलाएँ बनाकर विकासशील देश कच्चे माल से आगे बढ़कर तैयार उत्पाद बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस बार जी20 एजेंडा में असमानता को पहली बार केंद्र में रखा गया है।