जून: सहर मीर का एक ऐसा संगठन जो कश्मीर में मानसिक स्वास्थ्य और मासिक धर्म की वर्जनाएं तोड़ रहा है
आवाज द वाॅयस /पुलवामा (जम्मू और कश्मीर)
अंदलेब-ए-फिरदौस, जिसे घाटी में जून (ZOON) के नाम से जाना जाता है, छात्राओं एवं ग्रामीण महिलाआंे के बीच तेजी से उभर रहा है. यह एक गैर-लाभकारी युवा संगठन है, जिसके बीज सहर मीर ने अक्टूबर 2021 में बोए थे, जो अब पेड़ बन चुका है.
पुलवामा के पंपोर की 18 वर्षीय सहर मीर दो वर्जित विषयों, मानसिक स्वास्थ्य और मासिक धर्म के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए घाटी में अभियान चलाती हंै. उनके संकल्पों का असर है कि एक व्यक्ति के दिमाग की उपज के रूप में शुरू हुए इस अभियान में अब 50 समान विचारधारा वाले किशोरों ने पूरी टीम खड़ी कर दी है.
वर्तमान में, सहर और उनकी टीम सरकारी स्कूलों और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के बीच जागरूकता अभियान चलाते हंै. संगठन के लोग उन्हें मासिक धर्म और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करते हंै. इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण लड़कियों और महिलाओं के बीच महिला स्वास्थ्य, मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन और स्वच्छता के मूल्यों को सिखाना है.
कश्मीर की अधिकांश ग्रामीण महिलाएं अभी भी कई कारणों से मासिक धर्म के दौरान गंदे कपड़े के टुकड़ों का उपयोग करती हैं. मासिक धर्म के दौरान किसी भी सैनिटरी उत्पादों का उपयोग न करने के पीछे मुख्य
कारणों में से एक शर्म है. उन्हें सैनिटरी नैपकिन खरीदने में शर्म आती है.
सहर कहती हैं, हमने शुरुआत में चंदहार की युवा लड़कियों को शिक्षित करते हुए सुलभ मासिक धर्म उत्पाद प्रदान के बारे में बताया. समय के साथ, अंदलेब-ए-फिरदौस, जिसे आमतौर पर जून के रूप में जाना जाता है, ने अपने उद्देश्यों को व्यापक बनाया.
वर्तमान में अपने जागरूकता अभियानों के दौरा न केवल मानसिक स्वास्थ्य और मासिक धर्म बल्कि जलवायु परिवर्तन, आर्थिक स्थिरता और प्रौद्योगिकी की शक्ति जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की जाती है. अभियान के दौरान सैनिटरी पैड बांटे जाते हंै. सोशल मीडिया के माध्यम से भी मानसिक विकारों, मासिक धर्म स्वच्छता और यौन शोषण को लेकर भी जागरूकता फैलाई जाती है.
संगठन के स्वयंसेवक विशेष तौर पर पट्टन बारामूला, मिरगुंड बारामूला, चंद्रारा पंपोर, शार शाली पंपोर, लालट्रैग पंपोर, जांत्राग पुलवामा, हाल पुलवामा, अरिपाल त्राल जैसे दूरदराज के इलाकों और कश्मीर के कई अन्य पिछड़े गांवों में अभियान चलाते हैं.
इसमें उन्हें कामयाबी भी मिल रही है. लड़कियां और ग्रामीण अब इस मसले को समझने लगे हैं. संगठन की ओर से बताया गया कि इन इलाकों की 1000 से अधिक छात्राओं के बीच 10,000 से अधिक निःशुल्क सैनिटरी नैपकिन बांटे गए हैं. उनके इस काम को अधिकारी भी न केवल सराहते हैं, समय पड़ने पर सहयोग भी करते हैं.
कश्मीर में ऐसे बहुत कम संगठन हैं जिनका नेतृत्व छात्राएं करती हैं. इसका मुख्य कारण इन दिशाओं में न जाकर केवल पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने का सामाजिक दबाव है.एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 88 प्रतिशत मासिक धर्म वाली महिलाएं पुराने कपड़े जैसे घरेलू विकल्पों का उपयोग करती हैं, जबकि 63 मिलियन किशोरियां शौचालय सुविधाओं के बिना रहती हैं.
अपर्याप्त मासिक धर्म स्वच्छता के मुख्य कारण अज्ञानता, गरीबी और उपेक्षा हैं. आधुनिक समय में भी, मानसिक और मासिक धर्म स्वास्थ्य जैसे विषयों पर बातचीत से अक्सर परहेज किया जाता है. इससे भी अधिक, ग्रामीण क्षेत्रों में जहां आधुनिकीकरण की शुरुआती लहरें अभी तक नहीं आई हैं, इसने विनाशकारी, यद्यपि अपेक्षित, परिणामों को जन्म दिया है. अनजान जनता की अनभिज्ञता बड़ी समस्या बन गई है.
जून अब अपने अभियान में मनोवैज्ञानिकों और डॉक्टरों को जोड़ने के प्रयास में है ताकि लोगों को न केवल सही तरह से समझाया जा सके, उनकी समस्या का निदान और इलाज भी संभव हो. जून ने माता-पिता के साथ परामर्श सत्र आयोजित करने का भी निर्णय लिया है ताकि वे बच्चों के साथ खुलकर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करने की आवश्यकता को समझें.
आज के समय में जून कश्मीर में एक अनोखे संगठन के रूप में उभर रहा है. घाटी में यह दुर्लभ संगठन है जिसे एक 18 वर्षीय लड़की द्वारा न केवल खड़ा किया गया, विभिन्न स्कूलों और क्षेत्रों के समान विचारधारा वाले बच्चों द्वारा चलाया जा रहा है.