बुझ गया लखनऊ और कश्मीर की आम सभ्यता का आखिरी चिराग, नहीं रहीं ताहिरा रिजवी

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 16-12-2022
उत्तर प्रदेशः बुझ गया लखनऊ और कश्मीर की आम सभ्यता का आखिरी चिराग, नहीं रहीं ताहिरा रिजवी
उत्तर प्रदेशः बुझ गया लखनऊ और कश्मीर की आम सभ्यता का आखिरी चिराग, नहीं रहीं ताहिरा रिजवी

 

एम मिश्रा /लखनऊ

जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता, उपदेशक और कई मदरसों की संचालिका ताहिरा रिजवी लखनऊ की उन अग्रणी महिलाओं में गिनी जाती रही हैं जिन्होंने अपना जीवन लोगों की सेवा और गरीब व वंचित बच्चों की शिक्षा और प्रशिक्षण में समर्पित कर दिया. अब वो इस दुनिया में नहीं रहीं. उनका यहां देहांत हो गया.ताहिरा अपने पीछे एक ऐसा शून्य छोड़ गई हैं जिसे भरना नामुमकिन सा लगता है.
 
अपने दिवंगत पति सगीर रिजवी की तरह ताहिरा रिजवी भी जनता की सेवा को सबसे बड़ी इबादत मानती थीं. उनका व्यक्तित्व कश्मीर और लखनऊ की आम सभ्यता का प्रतिनिधि करती थी.
 
ताहिरा रिजवी ऐसी ही शख्सियत की मालकिन थीं, जिन्होंने गंगा जमुनी तहजीब के प्रचार-प्रसार के लिए बेहद विशिष्ट और प्रमुख सेवाएं निभाईं. उन्होंने अपने प्रवचनों और भाषणों में बार-बार कहा कि लखनऊ की संस्कृति, भाषा, साहित्य और पदवी, लालित्य और शिष्टता, सभ्यता और संस्कृति, आचार-विचार, मर्यादा और मर्यादा नवाबों या लखनऊ के लोगों की देन है, न कि लखनऊ की.
 
इसके साथ ही लखनऊवी तहजीब को कश्मीरी पंडितों और कश्मीरी मुसलमानों का भी असाधारण समर्थन प्राप्त है. पंडित बृज नारायण चकबस्त, पंडित दया शंकर नसीम, ​​पंडित आनंद नारायण मुल्ला और पंडित रत्ननाथ सरशर ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने साहित्य, राजनीति और सांस्कृतिक मूल्यों के मामले में लखनऊ को एक विशिष्ट पहचान दिलाई. 
 
ताहिरा रिजवी कहा करती थीं कि लखनऊ के साहित्यिक इतिहास और सांस्कृतिक विरासत की कहानी कश्मीरियों की भागीदारी के बिना नहीं पूरी  हो सकती.
 
पंडित रत्नाथ सरसर ने अपनी रचनाओं में लखनऊ की सभ्यता, संस्कृति और कारकों, धार्मिक सद्भाव, सहिष्णुता, एकता, भाईचारे, सद्भाव की गतिविधियों को खुलकर प्रस्तुत किया है.
 
कहते हैं, लखनऊ का विद्वतापूर्ण साहित्य और शहरी वातावरण कश्मीरवाद की भावना के बिना अधूरा है. इतिहास गवाह है कि जब नवाब आसिफ-उद-दौला ने फैजाबाद छोड़ दिया और 1774 में लखनऊ को अवध की राजधानी बनाया, तो ज्यादातर कश्मीरी परिवार फैजाबाद को अलविदा कहने के बाद वे लखनऊ चले गए और फिर यहां बस गए.
 
नवाब आसिफ-उद-दौला ने कश्मीरी पंडितों के निवास के लिए नियमित भूमि प्रदान की, सर्वोत्तम मंदिरों और घरों का निर्माण किया और प्रायोजन के लिए जागीर भी दी, जिसके परिणामस्वरूप लखनऊ में एक बहुत ही सुखद और सार्थक वातावरण बना, जिससे शहर का विकास हुआ. हवा में कश्मीरीपन की महक है.
 
 
ताहिरा अक्सर कहा करती थीं कि तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि कश्मीर से आने वाले लोगों में ऐसे लोग भी थे जो ज्ञानी होने के साथ धनवान भी थे और धार्मिक मामलों और उनके रीति-रिवाजों और परंपराओं और धार्मिक मामलों को देखने के लिए बहुत गंभीर थे. 
 
ताहिरा ने जामिया अल नूर इस्लामिया, जामिया अल ताहिरा अंसवान और सगीर उलूम नामक तीन मदरसों की स्थापना की थी. साथ ही सैकड़ों अनाथ और असहाय बच्चों की पालनहार भी थीं. 
 
उनका नजरिया था, गरीब और संकटग्रस्त लोगों के बच्चों को भी ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए जिससे उनका महजब और दुनिया रोशन हो और उनका भविष्य उज्जवल बने.
 
सबसे खास बात यह है कि ताहिरा रिजवी, यास्मीन सिद्दीकी, फरहीन रिजवी, इमरान अहमद रिजवी, इरफान अहमद रिजवी और अस्मा मुमताज के सभी बच्चों में लोगों की सेवा करने का यही जज्बा है. कहा जा सकता है कि ताहिरा रिजवी ने अपना जीवन लोगों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है और नई पीढ़ी को इसके प्रति प्रेरित कर असाधारण काम भी किया है.
 
महत्वपूर्ण पहलू यह है कि उनके द्वारा स्थापित मदरसों में सैकड़ों बच्चे निरूशुल्क हैं. कई शिक्षक ऐसे हैं जो शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और रोजगार भी प्राप्त कर रहे हैं.
 
ताहिरा रिजवी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं का विकास होता रहा तो वे सपने भी पूरे होंगे जो उनके जीवन काल में पूरे नहीं हो सके.
 
इरफान रिजवी और इमरान रिजवी का कहना है कि उनके माता-पिता द्वारा लगाए गए शिक्षा के पौधे को पूरे मन और गंभीरता से सींचा जाएगा और पेड़ों में तब्दील किया जाएगा जिसकी छाया में नई पीढ़ी अपने भविष्य का निर्माण कर शिक्षा प्राप्त कर सकेगी.
 
इरफान रिजवी का यह भी कहना है कि कुछ योजनाएं और रेखाचित्र अधूरे रह गए हैं, लेकिन वह उन्हें पूरा करने की पूरी कोशिश करेंगे.बज्मी महिला सदस्यों का यह भी कहना है कि ताहिरा रिजवी की असमय मृत्यु के कारण कई संगठन और संघ अनाथ हो गए हैं. लेकिन उनकी शिक्षाएं और उनके द्वारा स्थापित संस्थाएं उनकी असाधारण सेवाओं को स्वीकार करती रहेंगी.