यूपीएससी : बुलंदी पर पहुंची आरफा उस्मानी बनेंगी मुस्लिम लड़कियों के लिए रोल मॉडल

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 17-04-2024
बुलंदी पर पहुंची आरफा उस्मानी बनेंगी मुस्लिम लड़कियों के लिए रोल मॉडल
बुलंदी पर पहुंची आरफा उस्मानी बनेंगी मुस्लिम लड़कियों के लिए रोल मॉडल

 

डॉ. संजीव मिश्र / वाराणसी

आरफा यानी बुलंदी और बनारस की रहने वाली आरफा उस्मानी ने अपने नाम के मायने सार्थक कर दिए हैं. आरफा ने सिविल सेवा परीक्षा में 111वीं रैंक के साथ कामयाबी की वह इबारत लिखी है, जो किसी भी निम्नमध्यम वर्गीय परिवार के लिए सपनों सरीखी होती है. अब आरफा देश की मुस्लिम लड़कियों के लिए रोल मॉडल बनकर कानून के राज में अपनी जिम्मेदारी निभाना चाहती हैं.

पिछले दस साल से बनारस अपने ऐतिहासिक स्वरूप और बाबा विश्वनाथ की नगरी के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के रूप में भी चर्चित है. उसी बनारस के मुकीमगंज मोहल्ले की ढाई कंगूरा मस्जिद के पास रहने रहने वाले क्राकरी दुकानदार असलम खान और उनकी पत्नी मेहनाज उस्मानी के लिए दुर्गा अष्टमी की सुबह खुशियों की सौगात लेकर आई.

उनकी बेटी आरफा उस्मानी ने जब फोन कर अपनी मां को बताया, अम्मी मैंने यूपीएससी क्रैक कर लिया है... तो मानो, उनकी गोद में दुनिया की सारी खुशियां आ गिरी हों. उन्हें अचानक याद आने लगा, जब आरफा का नामकरण हुआ था और उन्हें बताया गया था कि आरफा का मतलब है बुलंदी... और आज आरफा ने अपने नाम का मतलब सही साबित कर दिया था.

खुशियों और फोन पर बधाइयों के सिलसिले के बीच मेहनाज अपनी लाड़ली के बचपन में पहुंच गई थीं. जब उसने मेहरौली के सेंट जॉन्स स्कूल में पढ़ने जाना शुरू किया, तो साल-दर-साल अपनी क्लास में अव्वल ही आती रही थीं आरफा.

पति असलम की क्राकरी के सामान की दुकान थी और वे स्वयं मनोविज्ञान विषय में एमए करने के बाद भी गृहिणी बनी हुई थीं. उन्होंने अपने बच्चों को सिखाया था, कि पढ़ाई के जरिए ही जीवन का रास्ता खोजा जा सकता है. बेटा शादान पहले आईआईटी रुड़की, फिर आईआईएम कोलकाता और बाद में अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय तक पढ़ने गया, तो आरफा को भी राह मिलती गयी.

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आरफा ने दसवीं में जिला टॉप किया. बारहवीं के बाद ही 2013 में आरफा आईआईटी, बीएचयू में पांच वर्षीय बीटेक-एमटेक पाठ्यक्रम में प्रवेश मिल गया. इंजीनियरिंग फिजिक्स ब्रांच में प्रवेश लेने वाली आरफा ने पहली साल अपनी ब्रांच में टॉप किया और उन्हें मैथेमेटिक्स एंड कंप्यूटिंग ब्रांच मिल गयी.

अपने विभाग में शीर्ष तीन विद्यार्थियों में शामिल होकर आरफा ने 2018 में एमटेक किया और कैम्पस प्लेसमेंट से ही नौकरी पाई. इंटेल जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने के दौरान आरफा को लगा कि यहां पैसे तो खूब कमाए जा सकते हैं, किंतु देश और समाज के लिए करने का रास्ता तो सिविल सर्विसेज से ही होकर गुजरता है.

तब आरफा ने तैयारी शुरू की और दूसरे प्रयास में ही सिविल सर्विसेज परीक्षा के मेन्स तक और तीसरे प्रयास में इंटरव्यू तक पहुंच गई. चौथे प्रयास में 111वीं रैंक लाकर सफलता के झंडे गाड़ दिए. इस सफलता के लिए आरफा अपनी मां को ही प्रेरणास्रोत मानती हैं, जिन्होंने सदैव अपने बच्चों की पढ़ाई को सबसे ऊपर रखा.

नहीं ली कोचिंग

आरफा को सफलता भले ही चौथे प्रयास में मिली हो, पर यह सफलता अनवरत परिश्रम और दृढ़ निश्चय का परिणाम है. आरफा ने सिविल सर्विसेज की तैयारी किसी कोचिंग संस्थान में प्रवेश लिए बिना करने का संकल्प लिया था. जब दूसरे ही प्रयास में आरफा मेन्स तक पहुंच गईं, तो दोस्तों ने कोचिंग ज्वाइन करने की सलाह दी, पर वह नहीं मानी.

आरफा का साफ कहना था कि भारी संख्या में ऐसे लोग भी सिविल सर्विसेज की तैयारी करते हैं, जो महंगी कोचिंग का भार नहीं उठा सकते. जब वे सफल होने का आत्मविश्वास लेकर जुटते हैं, तो वह क्यों नहीं सफल हो सकती. पूरी शिद्दत से जुटी आरफा और सफलता के बीच बस कुछ अंकों का फासला था, जिसे इस साल पूरा किया गया और परिणाम 111 रैंक के साथ है.

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मेरे साथ चलेगी गंगा-जमुनी तहजीब

आरफा को बधाई देने का सिलसिला थम नहीं रहा था. लोग उससे कह रहे थे, कि तुम्हारी सफलता कई मायने में विशेष है. एक तो तुम लड़की, ऊपर से मुसलमान और उसमें भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्षेत्र से आती हो. आरफा ने तपाक से कहा, मैं बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब में पली-बढ़ी हूं. यह हमारे समाज की खूबी है कि हम सबको साथ लेकर चलते हैं. मैं सौभाग्यशाली हूं कि सिविल सेवा में जाकर मैं इसे आगे बढ़ा पाऊंगी.

बनूंगी लड़कियों के लिए रोल मॉडल

आरफा को यह सवाल कुछ अच्छा नहीं लगता कि वह मुसलमान हैं और टॉपर भी, इस मसले पर वे क्या सोचती हैं. आरफा साफ कहती हैं कि भारत की प्रगति के साथ सभी लोग आगे बढ़ रहे हैं. उनमें मुसलमान बच्चे भी हैं. भारत विकसित देश बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है और सब मिलकर देश की तरक्की का हिस्सा बन रहे हैं. जो पीछे हैं, उन्हें लंबा सफर तय करना है और वे कर रहे हैं. अपनी भूमिका के बारे में वे कहती हैं, मैं लड़कियों के लिए रोल मॉडल बनूंगी, ताकि आगे बढ़ने की उनकी हिचक समाप्त हो और वे तरक्की का परचम लहराएं.

समझना होगा लोगों का मनोविज्ञान

सिविल सर्विसेज में सफलता के बाद एक अधिकारी के रूप में काम करने से जुड़े सवाल परआरफा कहती हैं कि कानून तो बहुत हैं, पर कानून थोपने से पहले जमीन पर उतरकर लोगों की वास्तविक दिक्कतें समझना जरूरी है.

कानून बहुत हैं, पर पहले जमीनी स्तर पर बदलाव लाना चाहिए. लोगों के मनोविज्ञान को समझना होगा, फिर कानून आपकी मदद के लिए है ही. ऐसा करके कानून-व्यस्था में सुधार के साथ जनता का प्रशासन, जनता के लिए, जनता के द्वारा सुगम किया जा सकता है.

सोशल मीडिया से बनाई दूरी

सिविल सर्विसेज की पढ़ाई के लिए आरफा ने सोशल मीडिया से पूरी दूरी बना ली थी. ट्विटर-फेसबुक-इंस्टाग्राम तो दूर, व्हाट्सएप तक डिलीट कर दिया था. वैसे वे कहती हैं कि उन्होंने अपने लिए सोशल मीडिया से दूरी बनाना जरूरी समझा था, हो सकता है कि किसी को ऐसा जरूरी न लगता हो. हां इतना जरूर है कि इंटरनेट ने तमाम छोटे-छोटे शहरों से स्टार्ट अप जैसे सकारात्मक परिणाम दिए हैं. युवाओं को चाहिए कि वे अपनी रचनात्मकता को सकारात्मक तरीसे चौनलाइज करें, तभी इसका फायदा है, वरना नुकसान तो बहुत से हैं ही.