एक अच्छी मां सैकड़ों उस्तादों से बेहतर: सैयद अनवर शाह

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 15-11-2023
One good mother is better than hundreds of teachers: Syed Anwar Shah
One good mother is better than hundreds of teachers: Syed Anwar Shah

 

फरहान इसराइली / जयपुर

राजस्थान में वैसे तो कई महान हस्तियों ने अपने इल्म और लगन से दुनिया को अपनी खूबियों से कायल किया है.आज हम ऐसी ही एक हस्ती के बारे में बताने जा रहे हैं जो महिला सामाजिक सुधार आंदोलन चला रहे हैं.वो हैं जनाब सैयद अनवर शाह,जो एक ऐसा इदारा चला रहे हैं जो कि पूरे सूबा ए राजस्थान में अपने आप में एक मिसाल है.सैयद अनवर शाह का यह कदम पूरे राजस्थान के लिए किसी वरदान से कम नहीं.

उनका यह इदारा “अल जामिअ तुल आलिया” मुसलसल खामोश अंदाज में काम कर रहा है.इस इदारे में 1500 बच्चियां तालीम हासिल कर रही हैं.खास बात यह है कि सिर्फ बच्चियों की तालीम के लिए लिए बनाए गए इस इदारे में अरबी जुबान के साथ अंग्रेजी और कंप्यूटर पर भी ख़ास तवज्जो दी जाती है.

19 अप्रैल 1995 बुध के दिन “अल जामिया आलिया के नाम से जयपुर शहर के मुफ्ती सैयद अमजद अली के हाथों केवल पांच बच्चियों से इसकी शुरुआत की गई.आज 1500 बच्चियों की तादाद हो चुकी है. 28सालों के इस इदारे में पढ़ने वाली बच्चियों में जो सलाहियतें पैदा हुई वह काबिले तारीफ है.यहाँ की लड़कियों की काबिलियतों का निरीक्षण करते हैं, तो अवाक रह जाएंगे.वे अरबी और अँग्रेजी रवानी से बोलती और समझती हैं.

आवाज़ द वॉयस से बात करते हुए सैयद अनवर शाह बताते है,उनका ये इदारा हकीकत में उन लोगों के ख्वाबों का साकार है जो दशकों से मज़हबी मदरसों में ख़वातीन की तालीम के सुधार के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं.मदरसे से पहले 3साल प्राइवेट स्कूल चलाने के बाद उन्होंने समाज में मुस्लिम महिलाओं में दीनी तालीम की कमी देखेते हुए इस तरह के पहले इदारे की स्थापना की.

उन्होने महसूस किया कि ख़वातीन में तालीम की कमी की वजह से मुसलमानों में पिछडड़ापन, हीनता, मानसिक, बौद्धिक और माली हालत का पतन हुआ है.सय्यद अनवर शाह ने एक ऐसे संस्थान की कमी महसूस की,जहां लड़कियों को दीनी आलिम बनाने के साथ दुनियावी तालीम में भी तरबियतयाफ़्ता किया जा सके.जिस तरह किसी समाज की तरक्की के लिए तालीम जरूरी है.

इसी तरह यह तालीम मर्द और औरत दोनों के लिए लाजिम है.तालीम जिस तरह मर्द के जहन के को खोलती है उसी तरह औरतों के लिए भी जरूरी है ताकि वह भी तरक्की की मंजिलों को तय कर सके.अनवर शाह बताते है,उन्होंने बहुत संघर्ष किया.

कई सालों के अथक कोशिशों के बाद उन्होंने इस इदारे की स्थापना की ताकि मुसलमान लड़कियां अरबी ज़बान में महारत हासिल कर अपने दीन को समझ कर अपनी नस्लों तक दीन पहुंचा सकें.औरत के दम से यह समाज कायम है,जो अपनी गोद में नस्लों को परवान चढ़ाती है.बच्चा अच्छी या बुरी आदत मां से सीखता है.

एक बड़े विद्वान ने कहा है कि “एक अच्छी मां सैकड़ों उस्तादों से बेहतर है.एक अच्छा घर सैकड़ों मदरसों से अच्छा होता है”.अनवर शाह बताते हैं कि उनकी सबसे छोटी बेटी आलिया 18अप्रैल को पैदा हुई थी.उस समय उनकी पांच बेटियां थी.तब उन्हें ख्याल आया कि बच्चियों की तालीम कितनी जरूरी है,इसलिए उन्होंने मुफ्ती हसन साहब के हाथों इसकी इब्तिदा करवाई.

बड़े दीनी आलिमों का रहा साथ

अनवर शाह बताते हैं,राजस्थान में और खासतौर से जयपुर में मुसलमानों का हाल किसी से छुपा नहीं.इस्लामी तहजीब से लोगों की दूरी बढ़ती जा रही.खासकर कौम की बेटियों का बुरा हाल है.लिहाजा उन्हें इस इदारे की जरूरत महसूस हुई.

उनके इदारे की शुरुआत करने में मुफ्ती अहमद हसन, मुफ्ती मोहम्मद जाकिर नोमानी, मुफ्ती खलील अहमद, मुफ्ती अब्दुल कय्युम, मुफ्ती सैयद वाजिद हसन, मौलाना हिफजुर रहमान आज़मी नदवी, मौलाना मोहम्मद यूसुफ नदवी, मुफ्ती मोहम्मद रिजवान नदवी, मौलाना शेख अब्दुल्लाह बिन अब्दुल अजीज नदवी, अब्दुल हकीम जैसे कौम के जिम्मेदारों का बड़ा रोल रहा.

इन उलेमाओं ने मदरसे का सिलेबस बनवाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.जब यह इदारा शुरू किया गया तो मौलाना मुफ्ती हकीम अहमद हसन ने उनके प्रोत्साहन के लिए एक खत भी लिखा.इस खत में उन्होंने औरतों की तालीम को बहुत जरूरी बताया.अल जामिया तुल आलिया को दुआओं से भी नवाजा.इदारे की होसला अफजाई के लिए मुफ्ती जाकिर ने भी एक पत्र लिखकर दुआओं से नवाजा.

मदरसे को 28 साल 

वर्तमान में मदरसे में 1,500 से ज्यादा बच्चियां दीनी तालीम हासिल कर रही हैं. अल जामीअ तुल आलिया में उर्दू, अरबी, अंग्रेजी, हिंदी, कंप्यूटर से लेकर होम साइंस तक की तालीम दी जाती है.सिलाई, कढ़ाई, बुनाई और विभिन्न तरह के खाने बनाने का प्रशिक्षणभी दिया जाता है.

वर्तमान में मदरसे में 1,5 00 से ज्यादा बच्चियां दीनी और दुनियायवी तालीम हासिल कर रही हैं.मदरसा दो बिल्डिंग में चल रहा है.आलिमाओं का पहला बैच 2005 में पास आउट हुआ था.इदारा राजस्थान शिक्षा विभाग से भी मान्यता प्राप्त है.

जहां क्लास 1 से 8 तक दीनी तालीम के साथ दुनियावी तालीम भी दी जाती है. यहाँ मुख्यत: ख़वातीन के लिए दीनी तालीम के लिए 2 कोर्स करवाए जाते हैं.पहला कोर्स आलीमा का है,जो कि 5 साल का है.दूसरा कोर्स दीनीयत सर्टिफिकेट कोर्स (डीसीसी) है,जो 2 साल का होता है.

इसके लिए कम से कम 8 वी पास होना जरूरी है.जो बच्चियां यहां से 5 साल का आलीमा का कोर्स कंप्लीट कर लेती हैं उनके नाम के आगे आलिया लगता है.जैसे अन्य मदरसों के आलिम नाम के आगे कासमी या नदवी लगाते हैं.दोनों ही कोर्स में उर्दू, अरबी, होम साइंस के साथ अरबी पढ़ना, लिखना सिखाया जाता है.

अनवर शाह बताते हैं,हमें चारों भाषाएं सीखनी चाहिए.हिंदी,इंग्लिश,उर्दू और अरबी.राजस्थान का इस तरह का यह पहला इदारा है.अब तक यहाँ से 358 लड़कियां आलीमा और 159 लड़कियां दीनियात सर्टिफिकेट कोर्स कंप्लीट कर चुकी हैं.

यहां से पढ़ने वाली बच्चियों ने खुद के मकतब भी खुले हैं.यही उनका उद्देश्य था.जब औरतें खुद दीनी और दुनियावी तालीम हासिल करेंगे तो इसको और फेलाएंगी और बच्चियों के लिए एक कमाई का स्त्रोत भी बन सकता है.

इस पौधे की जड़ें पूरे देश में फैल रही हैं.अनवर शाह पिछले 15 सालों से “इस्लाहुल मोमिनात” नामक उर्दू मैगजीन भी लगातार निकाल रहे हैं.उनके इस इदारे से निकली छात्राएं इस मैगजीन के लिए लिखती भी हैं .देश ही नहीं देश से बाहर भी बच्चों को दीनी तालीम दे रही हैं.