निशातुन्निसा : स्वतंत्रता संग्राम में निभाई थी अग्रणी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 10-08-2022
निशातुन्निसा : स्वतंत्रता संग्राम में निभाई थी अग्रणी
निशातुन्निसा : स्वतंत्रता संग्राम में निभाई थी अग्रणी

 

निसार अहमद सिद्दीकी

मौलाना हसरत मोहानी ने जंग-ए-आजादी का सबसे जुनूनी और जज्बाती नारा दिया था- ‘इंकलाब जिंदाबाद’. मौलाना हसरत मोहानी ने जब यह नारा दिया, पूरा हिंदुस्तान इस नारे से गूंज उठा. जंग-ए-आजादी के मतवालों में यह नारा जोश और जज्बा पैदा करता था.

धरना प्रदर्शनों और रैलियों में यह नारा हर किसी की जुबान पर रहता. मौलाना मोहानी अंग्रेज हुकूमत के इतने सख्त मुखालिफ थे कि उन्होंने अंग्रेजों से देश के मुकम्मल आजादी की मांग कर डाली थी. मौलाना हसरत मोहानी को वैसे तो पूरा देश जानता है, लेकिन उनकी धर्मपत्नी निशातुन्निसा बेगम भी अपनी दिलेरी और साहस के लिए जानी जाती हैं.

1916 में जब मौलाना मोहानी जेल में थे, निशातुन्निशा ने न सिर्फ अंग्रेज अफसरों का डटकर मुकाबला किया, उनको कोर्ट के अंदर चुनौती भी दी थी.निशातुन्निसा बेगम का जन्म सन् 1885में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के मोहान के एक साधारण परिवार में हुआ था.

पिता सैयद शबीब हसन मोहानी हैदराबाद हाईकोर्ट में वकील थे. निशातुन्निसा ने उर्दू, अरबी और फारसी जुबानों की शिक्षा हासिल की थी. वर्ष 1901में उनका निकाह हसरत मोहानी से हुआ. मौलाना से जब उनकी शादी हुई, तब वह राजनीति से अंजान थीं.

मगर वक्त ने ऐसा करवट लिया कि जो महिला घर की जिम्मेदारियों में मशगूल रहती थी, वह कोर्ट-कचहरियों से लेकर वजीर-ए-हिंद तक अपनी निडरता और बेबाकी के लिए मशहूर हो गईं.दरअसल, पहली बार जब हसरत मोहानी जेल भेजे गए, तब निशातुन्निसा अपनी बेटी के साथ घर पर अकेली थीं. जिस वक्त हसरत मोहानी को अंग्रेज खींचते हुए जेल ले जा रहे थे,

उनकी बेटी बुखार की तपिश में जल रही थी. यह सब कुछ निशातुन्निसा के लिए बिल्कुल नया था. वह पहली बार ऐसा देख रही थी. लेकिन उन्होंने इन मुसीबतों का डटकर मुकाबला किया. शौहर को लिखे अपने पहले खत में जज्बात, साहस और दिलेरी को दिखा दिया था.

निशातुन्निसा ने हसरत मोहानी को लिखा- ‘तुम पर जो मुसीबत पड़ी है उसे मर्दानावार बर्दाश्त करो. मेरा या घर का बिल्कुल ख्याल मत करना. खबरदार, तुम्हें किसी किस्म की कमजोरी का एहसास न हो.’ अपनी पत्नी के इस जज्बे और साहस को देखकर हसरत मोहानी खत पढ़ते-पढ़ते रोने लगे.

13 अप्रैल 1916 को जब मौलाना हसरत मोहानी को दूसरी बार गिरफ्तार किया गया तब निशातुन्निसा ने घर की चहारदीवारी से निकलकर खुद मुकदमे की पैरवी की जिम्मेदारी संभाल ली. वो खुद कचहरी जातीं और दिलेरी के साथ अंग्रेजी हुकूमत के सामने खड़ी रहतीं.

एक बार मुकदमे की पैरवी के दौरान एक अंग्रेज अफसर ने उन्हें गिरफ्तारी का डर दिखाकर धमकाने की कोशिश की. निशातुन्निसा उस अंग्रेज अफसर से बिल्कुल नहीं डरीं. उसको करारा जवाब दिए. कहा- तुम मुझे गिरफ्तार कर सकते हो, रोक नहीं सकते. इसके बाद किसी की भी हिम्मत ना हुई, जो उनको धमका सके या फिर उनके साथ इस तरह से पेश आ सके.

निशातुन्निसा के बारे में एक किस्सा और मशहूर है.जब वह भारत की नामचीन महिलाओं के एक डेलिगेशन के साथ वजीर-ए-हिंद से मुलाकात करने पहुंची. इस दौरान उन्होंने मजबूती से देश की महिलाओं की बात रखी.

देहाती माहौल में पली-बढ़ी होने के बावजूद निशातुन्निसा हमेशा मजबूती के साथ हसरत मोहानी के साथ खड़ी रहतीं.यही वजह है कि हरसत मोहानी को उन पर बड़ा फख्र होता था. निशातुन्निसा के बारे में बीअम्मा अबादी बानो बेगम की चिट्ठियों में भी उनका जिक्र मिलता है.

उमा नेहरू को लिखी एक चिट्ठी में बीअम्मा ने लिखा कि ‘मुझे खुशी है कि आपके और उस बहादुर बेटी निशातुन्निसा बेगम के साथ मुझे भी महिलाओं के उस डेलीगेशन में शामिल किया गया है, जो तमाम भारत की महिलाओं की तरफ से वजीर-ए-हिंद से मिलने जाना है.’

मौलाना हसरत मोहानी को आजादी की लड़ाई के लिए हौंसला देते-देते निशातुन्निसा खुद जंग-ए--आजादी की शानदार किरदार बनकर उभरीं. गृहणी की भूमिका निभाने वाली निशातुन्निसा स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका में रहीं.

आजादी के अमृत उत्सव में देश को जंग-ए-आजादी के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद किया जा रहा है. इसमें बेशक निशातुन्निसा बेगम जैसी महिलाओं का दर्जा बुलंद होगा, जिन्होंने हिम्मत और दिलेरी के साथ अंग्रेजी हुकूमत का सामना किया.

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में रिसर्च स्कॉलर हैं.)