मुस्लिम महिलाएं राजनीति में न आएं, यह सोच गलत हैः उलेमा और दानिशवर

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 06-12-2022
मुस्लिम महिलाएं राजनीति में न आएं, यह सोच गलत हैः उलेमा और दानिशवर
मुस्लिम महिलाएं राजनीति में न आएं, यह सोच गलत हैः उलेमा और दानिशवर

 

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली

गुजरात में चुनाव के माहौल में अहमदाबाद में जामा मस्जिद के शाही इमाम शब्बीर अहमद सिद्दीकी ने एक विवादास्पद बयान दिया हैं कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुस्लिम महिलाओं को टिकट देना इस्लाम के खिलाफ है. उनकी इस सोच की मुस्लिम आलिमों और महिला कार्यकर्ताओं द्वारा भर्त्सना की जा रही है.

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शाइस्ता अंबर


आल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने शाही इमाम के बयान की निंदा करते हुए कहा कि हम पूरी तरह से धार्मिक और भारतीय संविधान का पालन करते हैं और सामाजिक मुद्दों पर अपनी बात रखते हैं. हमें न तो इस्लामिक खतरा और न सामाजिक खतरा है.

महिलाओं को ऐसी कट्टरपंथी मानसिकता वाले लोगों से खतरा है, जो मेरे लिए खतरा नहीं है, बल्कि मुस्लिम कौम के भोले-भाले लोगों के लिए खतरा बने हुए हैं. शाही इमाम के बारे में उन्होंने कहा कि पहली बात तो यह है कि वो इस बात के काबिल ही नहीं हैं कि वो मुस्लिम महिलाओं की योग्यता को समझ पाएं.

ऐसे लोग अपने घरों में, सामाजिक व धार्मिक बराबरी में महिलाओं से लिंग भेद करते हैं. ऐसे लोग, जो अपने आपको मौलवी कहते हैं, वो इस्लाम के सच्चे और पक्के फॉलोवर नहीं हो सकते हैं.

ये कुरान पाक और अल्लाह के कानून, नीतियों के खिलाफ जा रहे हैं. क्योंकि हमारे इतिहास में सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खुद नवासी बीबी जैनब ने यजीद के भरे दरबार में उसकी, उसकी फौज के जुल्मों के खिलाफ आवाज उठाई थी.

बीबी जैनब राजदूत बनकर ईरान भी गई थीं. उनके जमाने में बुआ बीबी सफिया योद्धा थीं. योद्धा कैसा होता है, घोड़े पर चढ़कर तलवार चलाता है. रसूल के जमाने में जो पार्लियामेंट यानी मजिलिसे-शूरा थीं, उसमें महिलाएं भी थीं. जिसमें महिलाएं अपने हक के लिए आजादी से बोलती थीं.

मसलन शादी का ‘मेहर’पति की माली हैसियत के हिसाब से हो. मजिलिसे-शूरा में एकाउंटेबिलिटी यानी जबवादेही की चेयरमैन थीं सफा बिंत मरवा. इस्लाम के ऐसे सुनहरे इतिहास के पन्नों को जिन्होंने पढ़ा नहीं है, वो हमारी महिलाओं को पीछे धकेलने के दोषी हैं.

मजलूम और असहाय की हिफाजत के लिए बीबी जैनब लाखों के दरबार में दहाड़ रही थीं. इससे बड़ी कोई मिसाल होगी. हम मुसलमानों का तो ईमान ही सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं. ऐसे लोगों को चाहिए कि वो इतिहास के सुनहरे पन्नों को पढ़ें.यह अफगानिस्तान नहीं है, चले जाओ यहां से, वहां अफगानिस्तान में जाकर बैठो.

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यास्मीन अबरार


राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य यास्मीन अबरार का मानना है कि जो भी ऐसे बयान हैं, वो इस्लाम की रोशनी में गलत हैं. इस्लाम में सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने महिलाओं को पीछे नहीं रखा, चाहे वो बीबी फरीदा, बीबी आयशा हों.

राजनीति, शिक्षा, चिकित्सा हर क्षेत्र में महिलाआंें को आगे बढ़ाया जाना चाहिए. हमारे देश में एक बार तो इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री भी रह चुकी हैं. बहुत सी पंच-सरपंच हैं. हमारे देश में लोकतांत्रिक प्रणाली है, उसके हिसाब से हमें रहना चाहिए. लोकतांत्रिक प्रणाली के हिसाब से यह बयान गलत है.

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मौलाना जमालुद्दीन


मौलाना जमालुद्दीन ने कहा जो मौलाना शब्बीर अहमद ने कहा है कि मजहबी हिसाब से कहा है. जबकि समाजी जरूरत है कि महिलाओं को राजनीतिक दलों द्वारा न केवल टिकट दी जानी चाहिए, बल्कि उनका सपोर्ट भी किया जाना चाहिए. ताकि उनका ज्यादा से ज्यादा सशक्तीकरण हो और देश व समाज की सेवा कर सकें. हम हिंदुस्तान में रहते हैं, तो हमें यहां की तहजीब और सिस्टम के हिसाब से चलना चाहिए.

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जहीर खान


पीपुल्स फॉर एनीमल्स के कार्यकर्ता जहीर खान ने कहा कि ये दकियानूसी लोग हैं. मुस्लिम महिलाओं को क्यों न टिकट दी जाए? क्या मुस्लिम महिलाओं को राजनीति में नहीं आना चाहिए?

अगर वे राजनीति में दखल नहीं रखेंगी, तो मुस्लिमों और मुस्लिम महिलाओं के हितों के मुद्दे कौन उठाएगा. आज हमारे बहन-बेटियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, तो वे राजनीति में क्यों पीछे रहें. ऐसे लोगों को जिंदगी के बारे में कुछ पता तो है नहीं, दुनिया कितनी तरक्की कर रही है. ऐसी सोच से तो मुस्लिम समाज पीछे रह जाएगा.

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आईएच खान


सामाजिक कार्यकर्ता आईएच खान ने कहा कि मैं इस बयान के मुख्तलिफ हूं. आज तो चुनाव मुसलमान की भी जिम्मेदारी है. जब पुरुष चुनाव लड़ सकते हैं, तो महिलाएं क्यों न लड़ें चुनाव.

हमारे लोकतांत्रिक सिस्टम में महिलाओं पर कोई पाबंदी लगाना उचित नहीं है. अगर सारे मुसलमान झूठ और मक्कारी छोड़ दें, उसके बाद ही आप महिलाओं से कह सकते हो कि पर्दे में रहो.

आज के माहौल में कोई पाबंदी नहीं है. हमारे बच्चे-बच्चियां आज तरक्की की राह पर बाहर जाते हैं. आज मुस्लिम बेटियां उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं और कामयाब हो रही हैं, तो वे राजनीति में क्यों पीछे रहें.