दिल्ली के सबसे पुराने ‘ घर’ में संवर रहा है ‘बच्चों का भविष्य

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 16-09-2022
दिल्ली के सबसे पुराने ‘ घर’ में संवर रहा है ‘बच्चों का भविष्य
दिल्ली के सबसे पुराने ‘ घर’ में संवर रहा है ‘बच्चों का भविष्य

 

डॉ शुजात अली कादरी/ नई दिल्ली

छोटी बच्ची जोबी को उसकी मां ने एक साल पहले शहर के मटिया महल इलाके में दिल्ली के सबसे पुराने अनाथालय ‘बच्चों का घर’ में छोड़ दिया था. वह अब अपने नए घर में, बाजी (वार्डन), सहिलियों (दोस्तों) और आपी (बड़ी बहनें) में व्यस्त और मस्त समय बिता रही है. उसे अब कभी-कभार ही अपना घर, दिवंगत पिता याद आते हैं. ‘बच्चों के घर’ में शीला, आसिया, रूबी और अन्य बच्चे भी उसके साथ बड़े आराम से रहते हैं. उन्होंने भी अपने पिता को खो दिया है.

जोबी और अनाथायल में साथ रहने वालों की कहानियां बताती हैं कि उनकी मां या रिश्तेदार उन्हें छोड़ गए. इसकी वजह यह रही कि वे इनकी परवरिश और शिक्षा का बंदोस्त करने में अक्षम थे.
 
‘बच्चों का घर’ मंे 18 साल तक बच्चे रह सकते हैं. फिर उन्हें उनके अभिभावकों के वापस सौंप दिया जाता है. इसमें7 से 18 साल की करीब 50 लड़कियां रह रही हैं.
 
दरियागंज में अनाथ बच्चों के लिए यह आश्रय 1891 में शिक्षाविद्, स्वतंत्रता सेनानी और प्रसिद्ध यूनी-मेडिसिन व्यवसायी हकीम अजमल खान ने स्थापित किया था. बाद में ऐतिहासिक जामा मस्जिद के पास मटिया महल स्ट्रीट में एक पुरानी विश्व शैली की हवेली में इसकी शाखा खुली गई.
 
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वार्डन आयशा खान महिलाओं के साथ हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का हवाला देते हुए यहां की समस्या बताती हैं. कहती हैं- हम 50 लड़कियां और पांच स्टाफ सदस्य हैं, जो छह कमरों में रह रहे हैं.
 
हमारी गली इतनी संकरी है कि एक समय में एक ही आदमी चल सकता है.यह इतने घने इलाके में स्थित है कि लड़कियों के स्कूल से वापस आने के बाद हम बाहर जाने से डरते हैं.
 
मगर इसके साथ ही
वार्डन जैशा, रोशन जहान और गार्ड सदूद मियां इस बात से खुश हैं कि वे घनी आबादी वाले इलाके में 50 लड़कियों का परिवार सफलतापूर्वक चला रहे हैं. यहां रहने वाली लड़कियां खुद को कभी अजनबी महसूस नहीं करातीं. इनमें बहुत प्यार है.
 
जब भी कहीं आसपास किसी की शादी होती है, लड़कियां इसमें शामिल होने के लिए उत्सुक हो जाती हैं. एक लड़की बताती है कि उन्हें अपने रिश्तेदारों से दूर रहने का दर्द महसूस होता है.
 
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लेकिन आनाथायल के विनम्र पड़ोसी हमेशा यह सुनिश्चित करते हैं कि यहां रहने वाले बच्चे समारोहों में न केवल शामिल हों, खाएं-पीएं और आनंद उठाएं.
 
लड़कियां अथालय में रिश्तेदारों से मिल सकती हैं. जिन बच्चों के पिता की मृत्यु हो जाती है उन्हें अनाथ कहा जाता है. अभिभाव जब लड़की के पिता का मृत्यु प्रमाण पत्र देते हैं तो उन्हें अनाथायल में प्रवेश दे दिया जाता है.
 
घर चलाने वाले ट्रस्ट के चेयरमैन मसरूर अहमद ने कहा कि यहां बच्चियों के रहने, पढ़ाई सहित सारा खर्चा वहन किया जाता है.बच्चों को पास के प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में भेजा जाता है. इसके अलावा उन्हें पेशेवर कौशल जैसे कंप्यूटर प्रोग्रामिंग, संगीत, सिलाई और अन्य पाठ्यक्रम भी सिखाए जाते हैं.
 
बच्चों में से एक, अशरफ, जो आठवीं कक्षा में है, ने बताया कि उसे आधुनिक संगीत नोट्स के लिए उर्दू कविता गाना पसंद है. वह डिटार बजाता है. उसके सहपाठी सुभान का कहना है कि वह हाफिज बनने के लिए कुरान पढ़ना सीख रहा है.
 
मसरूर ने कहा कि अफसोस की बात है कि अनाथालय को आवश्यक धन और सरकार का ध्यान नहीं मिल रहा है. हमने मदद के लिए सरकार या किसी राजनीतिक संगठन तक पहुंचने की कोशिश नहीं की.
 
हम अनाथयल को चलाने के लिए शुभचिंतकों और सामाजिक रूप से जागरूक दिल्लीवासियों से धन जुटाते हैं. इसके अलावा ट्रस्ट के सदस्यों जैसे तेजपाल भारती के साथ शहर भर में धन इकट्ठा करने के लिए यात्रा करते हैं.
 
फैयाज ने कहा कि जहां ज्यादातर समय हम पैसे लेने के लिए अलग-अलग जगहों पर जाते हैं, लोग खुद भी जकात और सदका यहां जमा करा जाते हैं. तमाम समस्याओं के बीच बच्चों की परवरिश और उन्हें 12वीं कक्षा तक शिक्ष दी जा रही है.
 
मजे की बात है कि अरविंद केजरीवाल के मंत्रिमंडल के एक सदस्य इस इलाके से हैं. बावजूद इसके अनाथालय को मदद पहुंचाने की उनकी कोई योजना नहीं है.
 
संवाददाता ने जब मटिया महल के विधायक आसिम अहमद खान जो दिल्ली सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री है, से अनाथालय पर तत्काल ध्यान देने के बारे में पूछा तो उनका जवाब था, “उन्होंने हमसे संपर्क नहीं किया.
 
उत्तरी दिल्ली में, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) प्रति माह प्रति बच्चा 250 रुपये की घरेलू सहायता प्रदान करता है. ट्रस्ट कार्यालय के एक क्लर्क ने कहा, यहां तक कि एमसीडी कार्यालय के कई चक्कर लगाने के बाद भी यहां के बच्चांे को यह सहायता नहीं मिल रही है.
 
संवाददाता ने यह पता लगाने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कार्यालय से संपर्क किया कि क्या उनकी सरकार की अनाथालय को सहायता पहुंचाने की कोई योजना है.
 रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला.
 
अनाथालय के कार्यवाहक ने हमें बताया कि सीमित धन के साथ, हम इन बच्चों को आगे के जीवन का सामना करने के लिए तैयार कर रहे हैं. यहां तक कि असाधारण रूप से प्रतिभाशाली लोगों को बेहतर अध्ययन का मौका उपलब्ध कराया जा रहा है.
 
अनाथालय के मैनेजर फैज अहमद ने बताया कि कॉलेजों में पढ़कर कुछ बच्चे इंजीनियर बन चुके हैं .एक लड़की ने इंजीनियरिंग करने के बाद कंपनी सेक्रेटरी कोर्स के लिए क्वालिफाई किया है.
 
हमें उम्मीद है कि सरकार अनाथालय के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझेगी और इन बच्चों के लिए एक उचित छात्रावास बनाने में मदद करेगी. अगर सरकार सामने नहीं आती तो मुस्लिम समुदाय को आगे आना चाहिए.