शाहनवाज आलम / नूंह, मेवात
पीरियड्स... एक ऐसा शब्द, जिस पर पुरुष क्या, महिलाएं भी बात करने से हिचकिचाती हैं. यह शब्द सुनते ही सभी असहज होने लगते हैं. यहां तक कि अपनी शारीरिक प्रक्रिया के बारे में खुद लड़कियां और महिलाएं भी खुलकर बात नहीं करती हैं. देश के पिछड़े इलाके में शुमार और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र मेवात में इसे लेकर अनोखी पहल शुरू कर दी गई है. किशोरियों और महिलाओं को माहवारी के दौरान होने वाली समस्याओं व उस समय उनकी विशेष देखभाल की जरूरत को लेकर सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन ने ‘माहवारी चार्ट’ अभियान की शुरुआत की है. इसके तहत माहवारी का चार्ट हर घर की दीवार पर लगाया जा रहा है.
हरियाणा को छोड़कर देश में शायद ही कोई ऐसा राज्य हो, जहां इस विषय पर इतनी खुली मानसिकता के साथ अभियान शुरू किया गया होगा.
इसके तहत घर के मर्दों को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि उन्हें इन नैचुरल प्रोसेस और उस दौरान वाले दर्द को समझ सकें और अपने घर की बहु-बेटियों का इस दौरान विशेष ख्याल रखें.
बीते एक महीने में 1000 से अधिक घरों तक इस अभियान से जोड़ा गया है और निरंतर यह प्रक्रिया जारी है.
सेल्फी विद डाटर फाउंडेशन के संस्थापक सुनील जागलान ने आवाज - द वॉयस को बताया कि मैरी कर्नर नाम की महिला ने पहली बार पीरियड्स के लिए सेनेटरी बेल्ट की खोज की थी. उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि स्वरूप 13 जनवरी को प्रदेश भर के 150 परिवारों में पीरियड्स चार्ट अभियान को एक साथ शुरू किया गया था.
उन्होंने बताया कि पीरियड्स के विषय में जागरूकता का अभाव है. इसकी वजह से महिलाओं में कई प्रकार की बीमारियां होती है, लेकिन फिर भी कोई बोलने को तैयार नहीं होता है. लोगों में जागरूकता लाने के लिए यह अभियान शुरू किया गया है.
उन्होंने बताया कि पीरियड चार्ट में घर की सभी महिला सदस्यों के नाम के साथ हर महीने की पीरियड्स की तारीख लिखी जाती है. ताकि घर के पुरुष सदस्य भी वाकिफ हों.
जगलान कहते हैं कि अभियान के शुरुआत में लोग बात करने से हिचकिचाते थे, लेकिन निरंतर प्रयास से सकारात्मक परिणाम दिख रहे है. इसमें स्कूल, कॉलेज जाने वाली छात्रा से लेकर घरेलू महिलाएं भी जुड़ने लगी है.
नूंह की रहने वाले गुलफशा कहती हैं कि पीरियड चार्ट में मेरा व मम्मी दोनों उसमें पीरियड्स डेट लिखते हैं. पहले ऑकवर्ड लगता था, लेकिन अब कंफर्ट फील करती हूं. हमारे भाइयों ने भी इस चार्ट को देखा है, वो हमारी तकलीफ समझते हैं.
फिरोजपुर झिरका की रहने वाली लॉ स्टूडेंट निशात रून कहती हैं कि मेवात जैसे क्षेत्र में सेनेटरी पैड का नाममात्र प्रयोग होता है. हमें सचमुच इन दिनों में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है. यह शुरुआत हर घर के लिए जरूरी है. वहां सेल्फी विद डाटर फाउंडेशन के पीरियड चार्ट से जरूर बदलाव आएगा.
सेल्फी विद डाटर सिग्नेचर अभियान की ब्रांड एंबेसडर अनवी अग्रवाल का कहना है कि काफी महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन भी नहीं मिल पाते. गांव की महिलाएं हों या फिर शहर की, सैनिटरी नैपकिन मंगवाने में झिझक महसूस करती हैं. यह अभियान नई सामाजिक क्रांति लेकर आएगा.
महिला रोग विशेषज्ञ और गुरुग्राम की पूर्व मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. पुष्पा बिश्नोई कहती हैं कि औरतों में पीरियड्स एक बुनियादी अमल है. यही कुदरती अमल उसे समाज में औरत का दर्जा दिलाता है. इंसानी कायनात का दारोमदार इसी पर टिका है. पीरियड्स के समय तीन-चार दिन ब्लीडिंग होती है. कई महिलाओं को इस समय हाथ-पैरों में सूजन, पेट-पैर में दर्द, कमर दर्द, बुखार, भूख न लगना, कब्ज जैसी अन्य समस्याएं भी होती हैं. इस समय महिलाओं को विशेष देखभाल और आराम की जरूरत होती है. महिलाओं के इस प्राकृतिक नियम को कई लोग उनकी कमजोरी मानते हैं, जो उनकी सोच की विकृति है.