बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ने वाली महिला गुजारा भत्ता पाने की हकदार: अदालत

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 14-05-2025
Woman who quits job to take care of child is entitled to alimony: Court
Woman who quits job to take care of child is entitled to alimony: Court

 

आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली 
 
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि एक महिला का अपने बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ना ‘स्वैच्छिक परित्याग’ नहीं होता है, इसलिए वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार है. न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने 13 मई को जारी एक आदेश में कहा कि इस स्थिति को बच्चे की देखभाल करने के परम कर्तव्य के परिणाम के तौर पर देखा जा सकता है.
 
इसके साथ ही अदालत ने एक महिला और उसके नाबालिग बेटे को अंतरिम भरण-पोषण देने संबंधी निचली अदालत के आदेश को खारिज करने से मना कर दिया.
 
पति ने निचली अदालत के अक्टूबर 2023 के उस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, जिसमें उसे (पति को) अलग रह रही अपनी पत्नी और बच्चे को 7,500 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने के लिए कहा गया था.
 
उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता पति को निर्देश दिया कि वह महिला को निचली अदालत द्वारा निर्धारित मासिक राशि देना जारी रखे, साथ ही अपने बच्चे के लिए अलग से प्रतिमाह 4,500 रुपये दे. अदालत ने कहा, ‘‘यह पूरी तरह से स्थापित तथ्य है कि नाबालिग बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी माता या पिता पर असमान रूप से पड़ती है, जो अक्सर पूर्णकालिक रोजगार की उनकी क्षमता को सीमित कर देती है, खासकर उन मामलों में जहां मां के नौकरी पर होने के दौरान उसके बच्चे की देखभाल में परिवार का कोई सहयोग नहीं मिलता है.’’
 
फैसले में कहा गया है कि महिला द्वारा रोजगार छोड़ने को ‘‘काम का स्वैच्छिक परित्याग’’ नहीं माना जा सकता, बल्कि इसे बच्चे की देखभाल के परम कर्तव्य के परिणामस्वरूप आवश्यक माना जाता है.
 
व्यक्ति ने निचली अदालत के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि महिला उच्च शिक्षा प्राप्त थी और पहले दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में अतिथि शिक्षिका के रूप में काम करती थी, जिससे वह प्रतिमाह ट्यूशन फीस सहित 40,000 से 50,000 रुपये अर्जित करती थी.
 
पति ने दावा किया था कि महिला कमाने और खुद का तथा बच्चे का भरण-पोषण करने में सक्षम थी, लेकिन उसे (पति को) परेशान करने के इरादे से याचिका दायर की गयी.
अपीलकर्ता ने दलील दी थी कि परिवार अदालत ने इस तथ्य पर विचार न करके त्रुटि की है कि महिला अपनी मर्जी से ससुराल से चली गई थी और अदालत के आदेश के बावजूद उसने अपने पति के साथ अपने वैवाहिक संबंध फिर से शुरू नहीं किए.
पति ने दावा किया कि वह अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे के साथ रहने को तैयार है.
 
उस व्यक्ति ने यह भी कहा कि वह हरियाणा में एक वकील के रूप में प्रैक्टिस कर रहा है और प्रतिमाह केवल 10,000 से 15,000 रुपये ही कमाता है, इसलिए वह अंतरिम भरण-पोषण संबंधी निचली अदालत के आदेश का पालन करने में असमर्थ है.
दूसरी ओर, महिला ने दलील दी कि वह बच्चे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के कारण काम करने में असमर्थ थी.
 
उसने कहा कि उसका पिछला रोजगार उसे उचित भरण-पोषण से वंचित करने का वैध आधार नहीं है. उसने दलील दी कि चूंकि उसे आने-जाने में बहुत समय लगता था और उसे घर के पास काम नहीं मिल पा रहा था, इसलिए उसने अपना शिक्षण करियर छोड़ दिया.
 
अदालत ने महिला की दलील स्वीकार कर ली और उसके स्पष्टीकरण को ‘‘तार्किक और न्यायोचित’’ पाया. पीठ ने कहा कि व्यक्ति का आय प्रमाण-पत्र रिकॉर्ड में नहीं है. उच्च न्यायालय ने परिवार अदालत को निर्देश दिया कि वह अंतरिम भरण-पोषण की अर्जी तथा अंतरिम अवधि में व्यवस्था जारी रखने के लिए नये सिरे से निर्णय ले.