जहां लोग डूबे, वहीं नज़रुल हक ने तैराई उम्मीद की नाव

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 10-06-2025
Nazrul Haque's outstanding contribution in fish farming, awarded Assam Gaurav Award
Nazrul Haque's outstanding contribution in fish farming, awarded Assam Gaurav Award

 

मुन्नी बेगम/  गुवाहाटी

असम में मानसून की बाढ़ कई लोगों के लिए अभिशाप है, लेकिन आपदा में अवसर खोजने वाले को ही दुनिया ने सलाम किया है जिसका उदाहरण बनें असम के नज़रुल हक जिन्होनें बाढ़ के पानी में मछली पालन कर उत्कृष्ट योगदान दिया और बन गए चेंजमेकर.गौरतलब है कि असम में हर साल बाढ़ के कारण कई लोग अपने घर और पशुधन खो देते हैं. लेकिन, कुछ लोगों के लिए यह उम्मीद और अवसर लेकर आती है. ऐसी ही एक जगह है दक्षिणी असम का श्रीभूमि (करीमगंज) जिला, जहां लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि है. हालांकि, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जिले के अधिकांश हिस्से लगभग पूरे साल पानी में डूबे रहते हैं. बारहमासी बाढ़ जिले के कई निवासियों के जीवन को तबाह कर देती है.

नज़रुल हक़ अपने खेत में उत्पादित बड़ी मछलियाँ दिखाते हुए 

लेकिन श्रीभूमि जिले के बदरपुर शहर से लगभग 5 किलोमीटर दूर अलेखरगुल के निवासी नज़रुल हक ने मछली पालन के माध्यम से क्षेत्र में आजीविका में क्रांति ला दी है. मछली पालन के माध्यम से आत्मनिर्भर बनने के अलावा, नज़रुल हक अपने गाँव के हर घर को आत्मनिर्भर बनाने में सक्षम हैं.

नज़रुल हक़ ने आवाज द वॉयस को बताया कि  "मैं जिस जगह रहता हूँ, वहाँ के लोगों के लिए ज़्यादा अवसर नहीं हैं. इसलिए यहाँ के सभी लोग आम तौर पर खेती करके अपना जीवन यापन करते हैं. शुरू में मैं भी खेती करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता था.

नज़रुल हक़ अपने मछली फार्म में 

दुर्भाग्य से, यहाँ खेती से भी मनचाहा परिणाम नहीं मिलता क्योंकि ज़्यादातर खेत साल भर पानी में डूबे रहते हैं. इसलिए, मैंने सोचा कि अपनी खेती की ज़मीन का इस्तेमाल किसी और काम में किया जाए जिससे बेहतर पैदावार हो सके. सबसे पहले मेरे दिमाग में मछली पालन का विचार आया क्योंकि यहाँ पहले से ही मछली बाज़ार तैयार था". 

नज़रुल हक़ के पिता किसान थे. उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि आर्थिक रूप से बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन बचपन से ही उनमें कुछ अलग करने की तीव्र इच्छा थी.

शुरू में, उन्होंने मछली का व्यवसाय शुरू करने के लिए ₹10,000का ऋण लिया और उसका सदुपयोग करके समय पर बैंक को चुका दिया. इससे उनके जीवन में नई राह खुल गई.

हक ने बताया, "मैं वर्ष 2000 में मछली पालन से जुड़ा था, यह सोचकर कि अगर मैं ईमानदारी से व्यवसाय शुरू करूंगा तो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकता हूं.

वर्ष 2003 में मुझे राज्य सरकार की ओर से ARIASP नामक परियोजना के तहत बैंक से लोन मिला. शुरुआत में मैं अपनी एक हेक्टेयर जमीन पर खेती करके सिर्फ 5 से 7 क्विंटल मछली ही पैदा कर पाता था.

लेकिन अब मैं अपनी खुद की करीब 100 हेक्टेयर जमीन और कुछ अन्य जमीन जो मैंने लीज पर ली है, पर कुल 6-7 टन मछली पैदा कर रहा हूं." नजरुल ने सरकारी नौकरी का इंतजार करने में समय बर्बाद नहीं किया और स्नातक होते ही मछली उत्पादन शुरू कर दिया. मछली पालन के जरिए वह आत्मनिर्भरबने और बेरोजगार युवाओं को मछली पालन के प्रति जागरूक किया.

नई दिल्ली में पुरस्कार प्राप्त करते हुए नजरुल हक 

 

नतीजतन, उनके गांव के कुल 300 परिवार मछली पालन के व्यवसाय से जुड़ गए. नजरुल ने मछली पालन के लिए वित्तीय सहायता के लिए भारतीय स्टेट बैंक बदरपुर शाखा से संपर्क किया और बैंक से उन्हें काफी सुविधाएं मिलीं. बाद में बैंक ने नज़रुल की अनुकरणीय पहल का सम्मान करते हुए उनके गांव का नाम 'एसबीआई मत्स्य पालन गांव' रखा.

"मुझे लगता है कि असम में मछली पालन की बहुत संभावनाएँ हैं. मैं खुद मछली पालन करता रहा हूँ और मेरे साथ कई युवा जुड़े हुए हैं. मत्स्य पालन एक बहुत ही लाभदायक व्यवसाय है. हमें बस कड़ी मेहनत करनी होगी. असम में कई जगहें ऐसी हैं जहाँ ज़मीन लगभग पूरे साल जलमग्न रहती है, जिससे वे अन्य खेती के लिए अनुपयुक्त हो जाती हैं.

ऊपरी असम से लेकर निचले असम तक ऐसी कई ज़मीनें हैं जो सदियों से बेकार पड़ी हैं. अगर स्थानीय युवा उन ज़मीनों का इस्तेमाल मछली पालन के लिए करें तो वे बहुत ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं. हमारा राज्य बाहर से बहुत सारी मछलियाँ आयात करता है. अगर हमारे स्थानीय मछली पालक अपने उत्पाद राज्य के लोगों को दे सकें, तो हमारे स्थानीय युवाओं को भी फ़ायदा होगा और राज्य मछली पालन और मत्स्य व्यापार में आगे बढ़ेगा," हक ने कहा.

नज़रुल ने कहा कि वह हर साल मछली पालन के ज़रिए अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं. वह रोहू, कतला, स्टिंगिंग कैटफ़िश (सिंघी), वॉकिंग कैटफ़िश (मगुर), कॉमन कार्प, कछुआ, पाबड़ा, क्लाइम्बिंग पर्च (कोई), चाइनीज़ सिल्वरी पॉमफ़्रेट (रूपचंदा) आदि मछलियों का उत्पादन पूरी तरह से जैविक तरीके से बिना किसी रसायन का उपयोग किए कर रहे हैं और अपने उत्पाद को राज्य के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में निर्यात करते हैं.

नज़रुल हक़ को असम गौरव पुरस्कार मिला 

हक ने कहा "मछली पालन बहुत ही लाभदायक व्यवसाय है. मैं भी मछली पालन से जुड़ा हुआ हूँ और मेरे गाँव के सभी लोग भी. कुछ साल पहले यहाँ के लोग मछली पालन में रुचि नहीं लेते थे.

लेकिन अब बहुत से पढ़े-लिखे युवा इस पेशे से जुड़ रहे हैं. यह हमारे राज्य के लिए बहुत अच्छा संकेत है. मैं एक बात कहना चाहता हूँ कि मछली पालन करके लोग आत्मनिर्भर बन सकते हैं. हमें बस अपनी सोच को थोड़ा बदलने की ज़रूरत है.

हमें अपने आस-पास की ज़मीन का सदुपयोग करने की ज़रूरत है. मैं युवाओं को वैज्ञानिक तरीकों से मछली पालन करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा हूँ. मैंने मछली उत्पादन के लिए बैंक से लोन भी लिया है और कुछ आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल भी कर रहा हूँ. मैंने एक रीसर्कुलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम, ऑक्सीजन एरेटर और मछलियों की बीमारियों के लिए विशेष दवा की व्यवस्था की है."

नज़रुल इस्लाम अपने फार्म में उत्पादित मछलियों की किस्में दिखाते हुए 

मछली पालन में आत्मनिर्भर बने करीमगंज के नजरुल हक अब कई लोगों के लिए मिसाल बन गए हैं. हक को मत्स्य पालन के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कई राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं. हाल ही में उन्हें मार्च 2025 में राज्य का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान असम गौरव पुरस्कार मिला है. उन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, हैदराबाद के तहत राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी) से पुरस्कार मिला है.

हाल ही में गुजरात के अहमदाबाद के साइंस सिटी में केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने विश्व मछली दिवस समारोह के दौरान नजरुल को यह पुरस्कार प्रदान किया. इससे पहले उन्हें जिला स्तर पर प्रगतिशील मत्स्य व्यवसायी के रूप में भी मान्यता मिल चुकी है. भविष्य में नजरुल मत्स्य व्यवसाय का विस्तार कर मछली बीज उत्पादन का कारखाना लगाने की योजना बना रहे हैं.