इस्मत चुगताई की “चौथी का जोड़ा” के नाट्य रूपांतरण से समाज को जागरूक करने की कोशिश

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 25-12-2023
  ‘Chauthi Ka Joda’
‘Chauthi Ka Joda’

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

नाटक साहित्य का बहुत ही प्रचलित शब्द है जो मुख्य रूप से काव्यों का अंश है. नाटक हमारी सोच को विकसित करता है, हमारा मनोरंजन करता है, हमें किसी भी नई चीजों को जानने में मदद करता है और हमें समाज में किस प्रकार रहना है, उसकी सीख देता है. यही नही, नाटक के माध्यम से कलाकार सामाजिक सरोकार के मुद्दों को पेश करने की कोशिश करता है.

जिसमें हमें यह पता चलता है कि हमें अपनों के साथ कैसे रहना चाहिए. नाटक की इसी तकनीकी के कारण आज उसे कलाओं मेंबड़ा स्थान दिया जाता है. देश व विदेश में नाटक प्रस्तुत के समय लोगों की भीड़ देखने को मिलती है.

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गालिब इंस्टीट्यूट के तत्वावधान में रविवार शाम इस्मत चुगताई की लिखी हुई कहानी “चौथी का जोड़ा” को हम सब ड्रामा ग्रुप के तहत, जिसे अब्बास हैदर नकवी ने ड्रामा की शक्ल दी थी, उनकी निगरानी में पेश किया गया. इसके जरिये समाज में जागरूकता पैदा करने की कोशिश की गई.

गरीब महिला और बेटी पर आधारित

नाटक में ये दिखाने की कोशिश की गई कि कैसे एक गरीब मां अपनी जवान बेटी की शादी के लिए परेशान होती हैं, जब उसके घर में भतीजा राहत एक माह के लिए मेहमान बन कर आता है, तो वह इस उम्मीद में उसकी भरपूर मेहमानवाजी करती हैं कि उसकी बड़ी बेटी कुबरा की शादी उससे कर दी जाए. इस उम्मीद में रात दिन वह दुआएं करती हैं. मौलाना से पानी पढ़वाती है.

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लड़की की छोटी बहन हमीरा भी कोशिश करती हैं, लेकिन वे नाकाम हो जाती हैं. राहत को जब इस बात की खबर होती है कि कुबरा को बीमारी है, तो वह उससे दूरी बना लेता है. इसके उल्टे राहत कुबरा की जगह हमीरा को दिल व जान से चाहने लगता है.

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इसी बीच राहत की गलत नजर हमीरा पर पड़ जाती है और दूसरी तरफ कुबरा की बीमारी से मौत हो जाती है. यानी एक साथ गरीब परिवार पर मुसीबतों के पहाड़ टूट पड़ते हैं.

हिम्मत नहीं हारनी चाहिए

ड्रामा के लेखक अब्बास हैदर नकवी ने इस बार में बताया कि इसके जरिये ये मैसेज दिया गया कि हालात इंसान के उपर किसी तरह का आ जाए, लेकिन हिम्मत नहीं हारनी चाहिए. वह अकेली औरत, एक बेटी की मौत टीबी की बीमारी से हो गई और दूसरे की आबरू खत्म हो गई. अल्लाह से शिकायत करती हैं फिर भी वह हिम्मत नहीं हारती है, जिंदगी से लड़ने के लिए तैयार है. मैसेज भी यह है कि मुसीबत किसी तरह की आए, हिम्मत नहीं हारनी चाहिए.

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गालिब इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर ने कहा कि गालिब इंस्टीट्यूट अपने शुरुआती दिनों से ही ऐसे ड्रामें पेश करता रहा है, जिससे समाज में बदलाव आ सके सके. आगे भी इसी तरह के नाटक पेश किए जाएंगे.

इस नाटक में कुबरा का किरदार साहिबा खान, हमीरा के किरदार में जू फिशां मुर्तजा, राहत के किरदार आशीष, मौलाना के किरदार में शाहनवाज कासिम, मौलाना के आदमी के किरदार में शेख समीर, लड़की की मां के किरदार में सादिया रहमान, पड़ोसन के किरदार में कुसुम स्वतंत्र थीं.