जिस गाँव में भारत की आत्मा जीवित है वह नज़ीर का गाँव है: हक्कानी अल-कासिमी

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  onikamaheshwari | Date 02-01-2024
The village where the soul of India is alive is the village of Nazir: Haqqani Al-Qasimi
The village where the soul of India is alive is the village of Nazir: Haqqani Al-Qasimi

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

नज़ीर अकबराबादी का गांव विविधता और अलगाव का नहीं, बल्कि एकता और सद्भाव का प्रतीक है. नज़ीर की शायरी ग्रामीण प्रकृति और सौंदर्यशास्त्र का निगार खाना है. उन्होंने उस मथुरा में अध्यापक की थी जो ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक है. जिस गाँव में भारत की आत्मा रहती है वह नज़ीर का गाँव है. 

नज़ीर अकबराबादी ने गाँव की सभी विशेषताओं को अपनी कविता का हिस्सा बनाया है और गाँव को एक सकारात्मक इकाई के रूप में प्रस्तुत किया है, यहाँ तक कि नज़ीर की शब्दावली में गाँव के शब्दों को नया जीवन दिया है. वे सभी क्षेत्रीय शब्द हैं, शब्दावली का अर्थ शब्दकोशों में भी नहीं मिलता, ऐसे जानवरों, पेड़ों, फूलों, पतंगों और व्यवसायों के नाम उन्होंने अपनी कविता में लिखे हैं कि शब्दकोश विशेषज्ञ भी उनसे परिचित नहीं होंगे. 
 
 
ये बातें मशहूर आलोचक और लेखक हक्कानी अल-कासिमी ने जामिया नगर मौजूद आईओएस सेंटर फॉर आर्ट्स एंड लिटरेचर द्वारा आयोजित संगोष्ठी नज़ीर अकबराबादी का गांव के विषय पर बोलते हुए कही. हक्कानी अल-कासिमी ने आगे कहा कि नजीर की शायरी का खास किरदार आम लोग हैं, गांव के लोग और वो लोग जिनकी तस्वीर नजीर के आदमी नामा में भी दिखती है.
 
नज़ीर अकबराबादी का गांव वस्ल की दुनिया है 
जाने माने आलोचक, संपादक और अनुवादक डॉ जानकी प्रसाद शर्मा ने मौलाना रूमी के वस्ल दर्शन का जिक्र करते हुए कहा कि नजीर अकबराबादी का गांव वस्ल की दुनिया है, फसलों की दुनिया नहीं. 
 
आज साजिशें रची जा रही हैं हमारी सांस्कृतिक स्मृति से उर्दू-फारसी कवियों और लेखकों को हटाकर आकार परंपरा को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो कतई स्वीकार्य नहीं है. उन्होंने कहा कि असहमति की बात बहुत होती है, मिश्रण की बात नहीं होती. नज़ीर मिश्रण के कवि हैं और यथार्थवाद के प्रतिनिधि हैं. आपको शायरों का बदले शायर मिल सकते हैं लेकिन कबीर और नज़ीर जैसे कवि नहीं मिल सकते हैं. 

वे हमारे लिए एक प्रकाशस्तंभ हैं
जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हिन्दी संकाय के शिक्षक डॉ. दिलीप कुमार शाकिया ने कहा कि नजीर की शायरी सामासिक संस्कृति की खुली कला है. उनकी कविता कथात्मक कविता का एक अच्छा उदाहरण है. ऐसे लोग थे जो अपने समय में कह सकते थे कि आशिक हिंदू है या मुसलमान, वे हमारे लिए एक प्रकाशस्तंभ हैं.
 
 
नज़ीर की कविता "महादेव जी का ब्याह"
उन्होंने कहा कि नज़ीर की कविता "महादेव जी का ब्याह" उर्दू शायरी के इतिहास में भी महत्वपूर्ण है और इसे हिंदी कविता के इतिहास में भी माना जाना चाहिए. नजीर को जिनती जगह उर्दू साहित्य में मिलनी चाहिए वह नहीं मिली हैं, मिलनी चाहिए. उनकी शायरी में बसंत, होली के हवाले से कई नज्में मौजूद हैं, मथुरा और वृंदावन पर कही गई उनकी शायरी हमेशा याद रखी जाएगी.
 
जबकि खुर्शीद हयात ने कहा कि नज़ीर अकबराबादी की महानता यह है कि वह किसी दरबारी राग का हिस्सा नहीं हैं. संयोजक अंजुम नईम ने कहा कि नज़ीर की कविताएँ उनके समाज और सामान्य के भौतिक भूगोल पर आधारित हैं वे लोगों के सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवहार की एक तस्वीर बनाते हैं. नजीर ने मुसलमानों, हिंदुओं और सिखों के त्योहारों और उनके दैनिक जीवन को बहुत करीब से शायरी में कैद किया है.
 
संगोष्टी की शुरुआत मौलाना मोहम्मद आसिफ जमाल द्वारा पवित्र कुरान के पाठ से हुई और संयोजन के धन्यवाद शब्दों के साथ समाप्त हुई.