हिन्दी , उर्दू की एकता हमारी समावेशी परंपरा का प्रतीक: जानकी प्रसाद शर्मा

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 02-02-2024
Unity of Hindi, Urdu symbol of our inclusive tradition: Janaki Prasad Sharma
Unity of Hindi, Urdu symbol of our inclusive tradition: Janaki Prasad Sharma

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

उर्दू- हिंदी के रिश्ते बहुत पुराने हैं और यह सवाल ही बेबुनियाद है कि उन दोनों के रचनात्मक रिश्तों की तुलना बार बार की जाए और उर्दू को हर बार यह साबित करना पड़े कि वह कहीं और की नहीं इसी सरजमी की भाषा है.

हिन्दी व उर्दू की एकता हमारी समावेशी परंपरा का प्रतीक है. ये बातें प्रख्यात उर्दू-हिंदी आलोचक जानकी प्रसाद शर्मा ने साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित कार्यक्रम 'एक शाम आलोचक के नाम" मे कही.
 
यह सवाल ही नहीं उठता

उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले तक हिंदी और उर्दू लेखन का नज़रिया बड़ा समावेशी था इसलिए यह सवाल ही नहीं उठता था. यह सवाल हाल ही की उपज है और इसकी कोई बुनियाद नहीं है. 
 
उन्होंने अली सरदार जाफरी की 1950 में लिखी हुई एक नज्म और शमशेर की एक कविता "अमन का राम का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय दोनों के लेखक एक दूसरे की भाषाओं का सम्मान करते हुए लेखन कर रहे थे. इस प्रतिद्‌वंद‌विता या इस सवाल का कारण उन्होंने यह बताया कि हम दोनों भाषाओं के लेखकों के काम के बारे में अच्छी तरह से नहीं जानते हैं.
 
उर्दू, फारसी से निकली कोई विदेशी भाषा नहीं

उन्होंने हिंदी में प्रेमचंद, शमशेर त्रिलोचन, हरिवंश राय बच्चन आदि का उदाहरण देते हुए कहा कि ये लोग तो हिंदी और उर्दू दोनों में सिद्धहस्त थे. उर्दू, फारसी से निकली कोई विदेशी भाषा नहीं है. उर्दू में 75 प्रतिशत शब्द संस्कृत, हिंदी और प्राकृत से लिए हैं.
 
हम सब यह जानते हैं कि अगर दोहे हिंदी में उर्दू में गए हैं तो गजल उर्दू से हिंदी में आई है. तुलसीदास के "रामचरितमानस से कई उदाहरण देकर उन्होंने स्पष्ट किया कि वहाँ पर भी उर्दू सम्मान के साथ अवधी भाषा में पिरोई गई है.
 
हिंदी व उर्दू कर लोकाचार मिला-जुला

आधुनिक कवियों में उन्होंने मंगलेश डबराल और केदारनाथ सिंह की कविताओं के उदाहरण से बताया कि वह किस तरह मीर और ग़ालिब की भाषा को सम्मान देते हैं. जिसमें उर्दू में लोक अदब या सामाजिक या सांस्कृतिक लोकाचार की कमी बताई आती है.
 
उन्होंने कहा कि उर्दू का कोई अलग लोकाचार नहीं है. हिंदी व उर्दू कर लोकाचार मिला-जुला ही है. उन्होंने कहा कि मैं हिंदी और उर्दू की एकता का हामी हूँ लेकिन में यह नहीं चाहूंगा कि उर्दू की लिपि के वजूद को खत्म करके इस एकता को बनाए रखा जाए.