कोलकाता दक्षिण में टीएमसी और बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रहीं नसीरूद्दीन शाह की भतीजी सायरा शाह हलीम

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 15-05-2024
TMC is boosting BJP in West Bengal: Saira Shah Haleem, niece of Naseeruddin Shah and CPI(M) candidate from Kolkata South
TMC is boosting BJP in West Bengal: Saira Shah Haleem, niece of Naseeruddin Shah and CPI(M) candidate from Kolkata South

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली 

कोलकाता साउथ में भले ही एक जून को मतदान होना है, पर सिने अभिनेता नसीरूद्दीन शाह की भतीजी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) उम्मीदवार सायरा शाह हलीम अभी से पसीना बहा रही हैं. उनके अनुसार, ‘‘ चुनौती बहुत बड़ी है, पर चुनाव में जीत उनकी ही होने वाली है.’’

सायरा शाह हलीम के अपने चुनाव जीतने के ‘कैल्कूलेशन’ भी हैं. आवाज द वाॅयस से फोन पर बातचीत में उन्होंने अपनी जीत का गणित भी समझाया. उन्होंने कहा, ‘‘ 22 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं. उनके लोकसभा क्षेत्र में बुद्धिजीवियों की तादाद भी बहुत बड़ी है. इसके अलावा इलाके का बंगाली समुदाय सांप्रदायिक नहीं है.’’
 
उनसे जब कहा गया कि पिछले विधानसभा चुनाव में वाम दलों ने ही बीजेपी को अप्रत्यक्ष रूप से मदद कर पश्चिम बंगाल में पैर फैलाने का मौका दिया, तो सायरा शाह हलीम की आवाज तेज हो गई. उन्होंने कहा, ‘‘टीएमसी की भाषा मत बोलिए.‘‘ फिर उन्होंने  समझाते हुए कहा, ‘‘ वाम दलों की सरकार में बीजेपी को पश्चिम बंगाल से एक भी सीट नहीं थी, न ही आरएसएस की एक भी शाखा थी. जब से ममता बनर्जी आई हैं, बीजेपी का प्रदेश में विस्तार हो रहा है.’’
 
sara halim
 
उन्होंने कहा, इस बार भी टीएमसी ने शत्रुघ्न सिन्हा, अर्जुन सिंह, बाबुल सुप्रियो जैसे पूर्व बीजेपी नेताओं को टिकट दिए हैं. बाबुल सुप्रियो को कौन नहीं जानता. एक मस्जिद के इमाम की हत्या में वह विवादास्पद हो चुके हैं.
 
उन्होंने कहा कि इस बार 2019 जैसा माहौल नहीं है. इंडिया एलायंस अच्छा कर रही है. मुस्लिम वोट कांग्रेस-वाम-इंडिया एलायंस गठबंधन को मिल रहे हैं. ऐसा नहीं है कि पश्चिम बंगाल का पूरा वोट हमें मिलेगा. टीएमसी को भी जाएगा, पर मैं यह कहना चाहती हूं कि इस बार का चुनावी माहौल पहले जैसा नहीं है.
 
सायरा शाह हलीम 2022 के उप-चुनाव में कोलकाता दक्षिण के बालीगंज विधानसभा सीट से उप-विजेता रही थीं. उन्हांेने सीपीआई एम की टिकट पर चुनाव लड़ा था. इसके अलावा उन्हें और कोई चुनाव लड़ने का अनुभव नहीं है.
 
मगर बातचीत में कहती हैं कि क्षेत्र की जनता को एक जुझारू नेता चाहिए, जो पार्लियामेंट में अपनी बात जोरदार ढंग से रख सके. उन्होंने कहा कि वह कोलकाता दक्षिण की टीएमसी उम्मीदवार तथा मौजूदा सांसद माला रॉय और बीजेपी उम्मीदवार  देबाश्री चौधरी से ज्यादा एनर्जेटिक हैं.
 
उन्हांेने माला राॅय के सांसद में उपस्थिति को लेकर सवाल उठाए. साथ ही यह भी कहा कि देबाश्री चैधरी को पहले कहीं और से टिकट दिया गया था, अब वो कोलकाता दक्षिण से चुनाव लड़ रही हैं.उनसे जब चुनावी मुद्दों को लेकर सवाल पूछा गया तो उनका जवाब था-‘‘ममता सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर है.नारदा,शारदा घोटाले हो रहे हैं. अभी अवैध ढंग से बनी गार्डन रिच बिल्डिंग गिर गई, जिसमें दबकर 11 लोग मर गए. नौकरियों में घोटाले हो रहे हैं. 26,000 नौकरियां खत्म कर दी गईं. बिजली के बिल बढ़ने वाले हैं. ’’
 
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उन्होंने कहा कि केंद्र में इंडिया एलायंस की सरकार आने पर जॉब की गारंटी दी जाएगी. एक परिवार में कम से कम एक नौकरी अवश्य दी जाएगी. हम लोगों को सरकारी अनाज पर नहीं पालेंगे, उन्हें स्वावलंबी बनाएंगे. उन्हें ऊपर उठाने के लिए कई तरह की स्कीम लागू की जाएगी.’’
 
आपकी तरफ से चुनाव में लोकल मुद्दे भी उठाए जा रहे हैं ? इस सवाल के उत्तर में सायरा शाह हलीम ने कहा, ‘‘चुनाव जीतने के बाद शहर के पार्कों की स्थिति बेहतर की जाएगी. सड़कों पर साइकिल लेन का निर्माण कराया जाएगा. प्रदूषण बहुत ज्यादा  है. इसे कम करने के उपाय किए जाएंगे. कोई भी नेता प्रदूषण पर बात नहीं करता, जबकि  कोलकाता की हवा में सांस लेना दुश्वार है.’’
 
मगर मतदाता आपको वोट क्यों दे ? जवाब में कहा- "मैं इलाके में सक्रिय रहती हूं. पिछले 10 सालों से सीएए, एनआरसी के विरोध में लड़ाई लड़ रही हूं. लिटरेचर फेस्ट भी आयोजित किए हैं. बड़े साहित्यकारों को लांच किया है.
 
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लिटरेचर को लेकर देश-दुनिया में सक्रिय रही हूं.सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल रहती हूं. इससे इलाके में मेरी अलग पहचान है. लोग मेरे जुझारूपन से जानते हैं. इसकी वजह से उन्हें 2022 के उप-चुनाव में टिकट दिया था. इस बार भी उन्होंने सीपीआई एम से टिकट की मांग नहीं की थी. उन्होंने खुद दिया.’’
 
उनके ससुर सीपीआई एम के पोलित ब्यूरो के सदस्य रहे हैं. उससे भी चुनाव प्रचार में फर्क पड़ रहा है. पर उनकी अपनी छवि चुनाव प्रचार में अधिक काम आ रही है.सायरा शाह हलीम के पिता लेफ्टिनेंट जनरल जमीर उद्दीन शाह  अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के कुलपति रहे हैं. वे भी बेटी को जीत दिलाने के लिए सक्रिय हैं.
 
उन्होंने हाल में एक प्रेस कान्फ्रेंस किया और लोगों से अपील की कि सायरा शाह हलीम को वोट दें. पार्लियामेंट में उनकी आवाज बुलंद करेंगी.उनसे जब पूछा गया कि क्या चुनाव प्रचार के लिए आपके चाचा नसीरुद्दीन शाह आने वाले हैं ? इसपर सायरा शाह हलीम ने कहा कि उनकी तबीयत आजकल ठीक नहीं, पर उन्होंने और उनकी पत्नी रत्ना पाठक शाह ने दुआ भेजी है. वीडियो संदेश के जरिए लोगों से उन्हें वोट देने की अपील की है.
 
उनसे जब लेफ्टिनेंट जनरल जमीर उद्दीन शाह की कुछ आरएसएस नेताओं से मुलाकात को लेकर सवाल पूछा गया तो सायरा शाह हलीम की आवाज सख्ती आ गई. उन्होंने कहा, ‘‘आप मेरे बारे में सवाल पूछिए, हमारे पिता-दादा के बारे में नहीं.’’
 
फिर उन्होंने संभल कर कहा-‘‘हमारे वालिद और कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों की संघ नेताओं से मुलाकात, इसलिए नहीं हुई थी उन्हें संघ या बीजेपी ज्वाइन करना था. यह मुलाकात इसलिए थी कि माॅब लिंचिंग और मुसलमानों से संबंधित दूसरे मुद्दों पर सरकार कुछ नहीं कर रही थी. संघ नेताओं से मुलाकात कर कहा गया था कि इसे रोकने के लिए कुछ करें.
 
saira halim
 
इसके साथ ही बातचीत में सायरा शाह हलीम ने ‘संविधान खतरे’ में होने की बात उठा दी. जब पूछा गया - ‘कैसे’? तो उन्होंने अपने तर्कों से समझाने की कोशिश की कि बीजेपी नेताओं के भाषण सुनिए. जहरीले भाषण दिए जा रहे हैं.
 
मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ाकर बताई जा रही है. न्यू एजुकेशन पॉलिसी के नाम पर मुगलों को किताबों से बाहर कर दिया गया. हम लोग सेक्युलरिज्म और एकता की बात कर रहे हैं.अच्छी शिक्षा-स्वास्थ्य की बातें कर रहे हैं.
 
उन्होंने अपने बारे में बताया, ‘‘मेरा जन्म कोलकाता में हुआ, लेकिन पूरे देश में मेरा पालन-पोषण हुआ. उनके भाई मेजर मोहम्मद अली शाह और मैं दोनों कोलकाता में जन्मे हैं. मेरे पिता 1978 से 1980 के बीच यहां पूर्वी कमान में तैनात थे.तभी हम दोनों का जन्म यहीं हुआ था.’’
 
मेरे पिता लेफ्टिनेंट जनरल जमीर उद्दीन शाह सेना में थे . हर दो या तीन साल में, वे नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, तवांग घाटी जैसे विभिन्न स्थानों पर जाते थे. ये ऐसे क्षेत्र हैं, जहां सामान्य लोगों की पहुंच नहीं. चूंकि स्कूलों में लगातार बदलाव के कारण मेरी शिक्षा प्रभावित हो रही थी, इसलिए मेरे माता-पिता ने मुझे एक बोर्डिंग स्कूल में डालने का फैसला किया.
 
मैंने ऊटकमुंड में लॉरेंस स्कूल, लवडेल में 10वीं कक्षा तक पढ़ाई की. बाद में, मेरे पिता तीन साल के लिए यमन और कुवैत में सऊदी अरब में भारतीय सैन्य अताशे के रूप में तैनात थे. इसलिए मैंने अपनी 11वीं और 12वीं की पढ़ाई वहां के इंडियन इंटरनेशनल स्कूल से की.
 
उन्होंने बताया, ‘‘ सोफिया कॉलेज, अजमेर से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के लिए भारत वापस आई. इसके बाद मैं इंडिया टुडे के साथ काम करने लगी. मेरी शादी कम उम्र 21 साल में कोलकाता में हो गई. लगातार सड़कों पर रहने के कारण मुझे किसी जगह से जुड़े होने का एहसास नहीं होता, क्योंकि सेना के बच्चों को चुनौतीपूर्ण इलाकों में बड़ा किया जाता है.
 
मेरे पति एक डॉक्टर हैं, डॉ. फुआद हलीम और मेरे ससुर हाशिम अब्दुल हली कम्युनिस्ट पार्टी के पश्चिम बंगाल विधान सभा के पूर्व सदस्य हैं . 1982 से पश्चिम बंगाल विधान सभा के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहे हैं. 
 
सायरा शाह हलीम से जब राजनीति में आने का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘मैंने लगातार चुनाव और उप-चुनाव देखे, जहां मेरे पति लगातार किसी न किसी अभियान में थे. युवा एसएफआई (स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया) और हमेशा बाहर प्रचार कर रहे थे.
 
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तब राजनीति की दुनिया थोड़ी रहस्यमय थी. मैं सामान्य जीवन चाहती थी, जहां आप अपने पति के साथ बाहर जाएं. लेकिन मैं एक बड़े संयुक्त परिवार में थी, जहां खाने की मेज पर राजनीति पर चर्चा होती थी. शादी के बाद अपनी मास्टर डिग्री पूरी की. संचार में वरिष्ठ प्रशिक्षक, इंफोसिस टेक्नोलॉजी के साथ प्रशिक्षण प्रबंधक के रूप में विभिन्न कंपनियों वेबेल, विप्रो के साथ काम किया. पुणे में इंफोसिस के साथ भी काम किया.
 
उन्होंने आगे कहा, ‘‘बाद में सक्रियता आई. मैंने अपने पति के लिए प्रचार किया. राजनीतिक साहित्य पढ़ा. हिजाब प्रतिबंध,सीएए, एनआरसी विरोधी के दौरान जमीनी आंदोलनों में डूब गई. मुझे लगा कि मुझे बोलने की जरूरत है.
 
तभी मैं सोशल मीडिया और जमीनी स्तर पर बोलने के लिए सक्रिय हो गई. राष्ट्रीय मीडिया मुझसे पैनल पर आने और कॉलम लिखने के लिए संपर्क करने लगी. मैं एक राजनीतिक टिप्पणीकार के रूप में विभिन्न राष्ट्रीय चैनलों पर नियमित रही हूं.
 
10 वर्षों तक देश से संबंधित विभिन्न विषयों पर इंडिया टुडे, गल्फ न्यूज, प्रिंट के लिए कॉलम लिखा. लिटरेचर फेस्टिवल के चक्कर लगाने शुरू किए. ऐसा कोई लिटरेचर फेस्टिवल नहीं, जिसने मुझे अभी तक आमंत्रित न किया हो.
 
साहित्य महोत्सव में लोकतंत्र पर बहस में शामिल होती हूं. त्तकालीन विधायक सुब्रत मुखर्जी के निधन के बाद 2022 में बालीगंज से विधानसभा उपचुनाव लड़ा. मेरा यह पहला चुनाव था. टीएमसी के बाबुल सुप्रियो मेरे प्रतिद्वंद्वी थे.
 
राष्ट्रीय मीडिया ने तब नहीं समझा था कि मैं एक मजबूत दावेदार हो सकती हूं. मैंने एक साल के भीतर वाम वोट शेयर को 5 से बढ़ाकर 30 प्रतिशत से अधिक कर दिया.उप-विजेता रही थी. मैंने बीजेपी को प्रचंड बहुमत से हराया. मुझे 32,000 से अधिक वोट मिले, यह आसान नहीं था.
 
मौजूदा चुनाव के संदर्भ में सायरा शाह हलीम ने कहा, ‘‘मैं हारना नहीं चाहती.मैं व्यक्तिगत रूप से कड़ी मेहनत कर रही हंूं. मेरे निर्वाचन क्षेत्र में मेरी व्यक्तिगत पहुंच है. लोग एक गैर-राजनीतिक चेहरा चाहते हैं.
 
पार्टी ने मेरा नाम नामांकित किया. मैं शुरू में झिझक रही थी. फिर चुनौती स्वीकार ली. पार्टी मुझ पर दबाव बना रही थी. मेरे पति और ससुर पश्चिम बंगाल विधानसभा के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वालों से हैं. ज्योति बसु के साथ 30 साल तक काम किया है. इसलिए मैंने चुनाव लड़ने का फैसला किया.’’
 
उन्होंने कहा, ‘‘2022 में, जो काम आया वह मेरी व्यक्तिगत पहुंच थी. मैं बस्ती-दर-बस्ती, घर-घर जाती थी. सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय थी.मेरी व्यक्तिगत कड़ी मेहनत और पहुंच भी किसी तरह से अधिक मायने रखती है.
 
हालांकि पार्टी का प्रतीक स्पष्ट रूप से बहुत महत्वपूर्ण है. लोगों ने मुझसे यहां तक कहा, ‘हमने आपको वोट दिया है, भले ही इस समय, सीपीआई (एम) एक सूर्यास्त पार्टी है.’ मैं इसे एक प्रशंसा के रूप में लेती हूं. दूसरों ने भी बहुत मेहनत की.इससे इनकार नहीं कर सकती.
 
सायरा ने जोर देकर कहा कि उनकी सोच प्रगतिशील है. लोग उन्हें एक प्रगतिशील नेता के रूप में देखते है. उन्होंने आगे कहा, ‘‘लोग मेरी सेना पृष्ठभूमि, कॉर्पोरेट अनुभव के कारण वामपंथी होने की जो कल्पना करते हैं, मैं उससे बहुत अलग दिखती हूं . लोगों की अब बड़ी आकांक्षाएं हैं, क्योंकि वे अपने लिए बेहतर जीवन चाहते हैं. लोगों के पास वामपंथियों का पुराना अनुभव है. हम सिर्फ प्रगति चाहते हैं. धन का समान वितरण चाहते हैं.’’
 
उनसे जब भारत में समग्र चुनावों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, ‘‘लोग धर्म , हिंदू, मुस्लिम, मंदिर, मस्जिद, मंगलसूत्र, घुसपैठिए की राजनीति से परेशान हैं. मुझे लगता है लोग जवाब चाहते हैं. वे विकास और नौकरियां चाहते हैं. धार्मिक राजनीति युवाओं की कैसे मदद कर रही है? मुझे लगता है कि खासकर पहली बार वोट देने वाले मतदाता, जो इससे तंग आ चुके हैं, वे इसके खिलाफ मतदान करेंगे. यह गेम चेंजर होगा. 
 
-साथ में कोलकाता से रीटा फरहत मुकुंद