आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली
देश की आज़ादी और बंटवारे के बाद भारतीय खेलों में मुस्लिम चेहरों की सफलता की एक दिलचस्प कहानी रही है, जिसने यह संदेश भी दिया कि धार्मिक आधार पर देश के विभाजन के बावजूद भारत में मुसलमानों के लिए हर क्षेत्र में रास्ते खुले रहे. देश ने प्रतिभा को सलाम किया, मज़हब को नहीं. खेल की दुनिया में मुसलमानों की भागीदारी पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है. बहरहाल, हम इस लेख में विभिन्न खेलों के सफल और लोकप्रिय चेहरों का ज़िक्र कर रहे हैं.
अगर बात भारत के सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट से करें, तो यहां मुस्लिम क्रिकेटरों की एक लंबी सूची मिलती है—गुलाम अहमद, सलीम दुर्रानी, अब्बास अली बेग, मंसूर अली खान पटौदी, फारूक इंजीनियर, सैयद आबिद अली, सैयद मुस्तफा हुसैन, सैयद किरमानी, गुलाम अहमद हसन, मोहम्मद अजहरुद्दीन, अरशद अयूब, ज़हीर खान, सैयद सबा करीम, मोहम्मद कैफ, इरफान पठान, मुनाफ पटेल, वसीम जाफर, यूसुफ पठान, मोहम्मद शमी, मोहम्मद सिराज और सरफराज खान जैसे नाम शामिल हैं.
नवाब मंसूर अली खान पटौदी
भारतीय क्रिकेट में एक सदाबहार नाम है नवाब मंसूर अली खान पटौदी, जिन्हें “टाइगर पटौदी” के नाम से जाना जाता है. वे टेस्ट क्रिकेट के सबसे युवा कप्तान बने थे. उन्होंने भारत के लिए 46 टेस्ट खेले जिनमें 2793 रन बनाए. मार्च 1962 में वेस्टइंडीज़ के खिलाफ मात्र 21 साल और 77 दिन की उम्र में वे कप्तान बने. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 1968 में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ विदेशी धरती पर भारत की पहली टेस्ट जीत थी. 1961 में इंग्लैंड में एक सड़क हादसे में उनकी दाहिनी आंख की रोशनी चली गई थी, लेकिन उसके बावजूद उन्होंने क्रिकेट के मैदान में एक आंख से खेलते हुए अपना लोहा मनवाया.
मोहम्मद अजहरुद्दीन
क्रिकेट में ही एक और बड़ा नाम है “क्रिकेट का वंडर बॉय” मोहम्मद अजहरुद्दीन का, जिन्हें यह उपाधि टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण के समय मिली थी, जब उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ अपने पहले तीन टेस्ट में तीन शतक लगाए थे. यह 1984 का साल था और मैदान था कोलकाता का ईडन गार्डन्स. अजहर ने भारत के लिए 99 टेस्ट और 334 वनडे मैच खेले. उन्होंने तीन विश्व कप (1992, 1996, 1999) में भारत की कप्तानी की. 1990-91 और 1995 के एशिया कप में टीम को जीत दिलाई और 1996 के वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल तक पहुंचाया.
फुटबॉल की बात करें तो आज भारत की स्थिति भले ही अच्छी न हो, लेकिन कभी यह देश ओलंपिक और विश्व कप में दस्तक देता था. आज़ादी से पहले और बाद में कई मुस्लिम फुटबॉलर्स ने देश का नाम रोशन किया, जैसे—बाबा-ए-फुटबॉल सैयद अब्दुल रहीम, ताज मोहम्मद, अहमद खान, यूसुफ खान, बी पी सालेह, सैयद नईमुद्दीन, नूर मोहम्मद, रहमत, टी अब्दुर्रहमान, मोहम्मद हबीब, मोहम्मद अकबर और लतीफुद्दीन.
सैयद शाहिद हकीम
अगर आज़ाद भारत में सबसे बड़े फुटबॉल नामों की बात करें तो उसमें से एक नाम है सैयद शाहिद हकीम का, जो सैयद अब्दुल रहीम के बेटे थे. वे भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर भी रहे. 1960 रोम ओलंपिक में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया. बाद में वे कोच बने और भारतीय टीम के सहायक कोच भी रहे. वे फीफा के रेफरी भी बने और 1988 के एएफसी एशियन कप में कतर में रेफरी के तौर पर सेवा दी.
मोहम्मद शाहिद
हॉकी की बात करें तो वह खेल जिसमें कभी भारत का डंका बजता था. भारतीय मुस्लिम खिलाड़ियों में अख्तर हुसैन, असलम शेर खान, मोहम्मद शाहिद और ज़फर इकबाल प्रमुख रहे हैं. इनमें सबसे प्रसिद्ध नाम मोहम्मद शाहिद का है, जो बनारस के थे. 70 और 80 के दशक में उनकी ड्रिबलिंग और गति ने सबका दिल जीत लिया था. वे 1980 मास्को ओलंपिक में गोल्ड, 1982 एशियन गेम्स में सिल्वर और 1986 में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली टीम का हिस्सा रहे. उन्होंने 1989 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास लिया.
टेनिस में मुस्लिम चेहरों में अख्तर अली, ज़ीशान अली और सानिया मिर्ज़ा का नाम प्रमुखता से आता है. अख्तर अली 1958 से 1964 तक डेविस कप टीम के सदस्य रहे और बाद में कोच भी बने. ज़ीशान अली भी सफल खिलाड़ी और कोच रहे, लेकिन भारतीय टेनिस को पहचान दिलाने का श्रेय सानिया मिर्ज़ा को जाता है.
सानिया मिर्ज़ा
सानिया मिर्ज़ा सिंगल्स में टॉप 100 में शामिल होने वाली इकलौती भारतीय महिला रहीं. वे डबल्स में वर्ल्ड नंबर 1 बनीं और छह ग्रैंड स्लैम खिताब (तीन विमेंस डबल्स और तीन मिक्स्ड डबल्स) जीते. 2003 से 2013 तक उन्होंने 43 खिताब जीते और 91 हफ्ते तक वर्ल्ड नंबर 1 रहीं. वे 2007 में WTA सिंगल्स रैंकिंग में 27वें स्थान पर पहुंची थीं—जो किसी भारतीय महिला की अब तक की सबसे अच्छी रैंकिंग है.
सैयद मोदी
बैडमिंटन में सबसे प्रसिद्ध और सफल नाम सैयद मोदी का है. उन्होंने 1980 से 1987 तक लगातार आठ बार राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती. 1982 के ब्रिसबेन कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया. उन्होंने ऑस्ट्रिया इंटरनेशनल (1983, 1984) और यूएसएसआर इंटरनेशनल (1985) में भी जीत दर्ज की. लेकिन 1988 में लखनऊ में उनकी गोली मार कर हत्या कर दी गई.
निकहत ज़रीन
बॉक्सिंग के क्षेत्र में निकहत ज़रीन का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो चुका है. उन्होंने 2011 में जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीता. 2019 में एशियन चैंपियनशिप में सिल्वर, 2022 में इस्तांबुल में वर्ल्ड चैंपियनशिप और कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड, 2023 में दिल्ली में वर्ल्ड चैंपियनशिप में फिर गोल्ड जीतकर वे दो बार यह कारनामा करने वाली दूसरी भारतीय महिला बनीं. 2023 के हांगझो एशियाई खेलों में ब्रॉन्ज जीता और 2024 पेरिस ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया.
शमा परवीन
कबड्डी में भारत की हमेशा से ही बादशाहत रही है. महिलाओं में अगर मुस्लिम चेहरों की बात करें तो पहला नाम शमा परवीन का आता है, जो बिहार से थीं. उन्होंने 2008 से कबड्डी खेलना शुरू किया और 2017 में एशियन चैंपियनशिप की गोल्ड मेडल विजेता टीम का हिस्सा रहीं.
नसरीन शेख
नसरीन शेख भारतीय खो-खो टीम की कप्तान रहीं. वे दिल्ली से थीं और अर्जुन अवॉर्ड जीतने वाली दूसरी खो-खो खिलाड़ी थीं. उन्होंने दक्षिण एशियाई खेलों में भारत का नेतृत्व किया, जहां भारत ने गोल्ड मेडल जीता. वे 2025 में दिल्ली में हुए पहले खो-खो वर्ल्ड कप में विजेता टीम का हिस्सा थीं. भारत ने वहां नेपाल को फाइनल में 78-40 से हराया. इस प्रदर्शन के कारण नसरीन को 2025 की बीबीसी “स्पोर्ट्स वुमन ऑफ द ईयर” का खिताब मिला.
अलीशा अब्दुल्ला
अगर भारत में मोटर स्पोर्ट्स की बात करें तो महिलाओं में अलीशा अब्दुल्ला का नाम सबसे पहले आता है. वे देश की सबसे तेज़ कार रेसर और पहली महिला बाइक रेसिंग चैंपियन मानी जाती हैं. अलीशा अब्दुल्ला का जन्म 1989 में चेन्नई में हुआ था और उन्हें बचपन से ही रेसिंग का शौक था. 2004 में उन्होंने जेके टायर नेशनल रेसिंग चैंपियनशिप में टॉप 5 में जगह बनाई. फिर उनके पिता ने उन्हें बाइक रेसिंग की ओर प्रेरित किया, लेकिन 2010 में एक गंभीर दुर्घटना के बाद उन्होंने वापस कार रेसिंग की ओर रुख किया. वे देश की पहली महिला मोटर स्पोर्ट्स स्टार हैं जिन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.