वंदे मातरम् : एक गीत जो बना भारत की आत्मा की आवाज़

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 06-08-2025
National Song Vande Mataram: A Song That Sparked Revolution
National Song Vande Mataram: A Song That Sparked Revolution

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 
 
'वन्दे मातरम्' भारतीय राष्ट्रीय गीत है, जिसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लिखा था और रवींद्रनाथ ठाकुर (रवींद्रनाथ ठाकुर, जिन्हें हम रवींद्रनाथ ठाकुर के नाम से जानते हैं) ने संगीतबद्ध किया था. यह गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक प्रेरणा बनकर उभरा था और आज भी भारतीयों के दिलों में गूंजता है.
 
कविता का जन्म: बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का योगदान
 

'वन्दे मातरम्' की शुरुआत बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के द्वारा रचित कविता से हुई. यह कविता उनकी काव्य रचना आनंदमठ (1882) में शामिल थी, जो एक ऐतिहासिक उपन्यास था. यह उपन्यास बंगाल के नवजागरण के समय की एक महाकाव्यात्मक कहानी है, जिसमें भारत की स्वतंत्रता की आकांक्षा और देशभक्ति के भाव प्रकट होते हैं.

वह कविता भारत के प्राकृतिक सौंदर्य, संस्कृति, शक्ति और मातृभूमि की पूजा करती है. विशेष रूप से यह कविता भारतीयों के लिए एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय प्रेरणा का प्रतीक बन गई.

संगीतबद्धता

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की लिखी कविता को संगीतबद्ध करने का श्रेय रवींद्रनाथ ठाकुर को जाता है. उन्होंने इस गीत को भारतीय रागों के अनुसार संगीतबद्ध किया. "वन्दे मातरम्" के संगीत में भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रभाव था, जिसने इस गीत को और भी दिलकश और प्रेरणादायक बना दिया.

'वंदे मातरम्' का वह पल जिसने जलाया स्वतंत्रता की चिंगारी 

'वन्दे मातरम्' ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक विशेष स्थान बना लिया था. यह गीत भारतीयों के दिलों में स्वदेशी आंदोलन और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक बन गया. 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में इस गीत का प्रमुख रूप से उपयोग हुआ. यह राष्ट्रीय एकता और भारतीयता की भावना को प्रबल करने में सहायक साबित हुआ.

साल 1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया, तो पूरे भारत में आक्रोश की लहर दौड़ गई. यह विभाजन "फूट डालो और राज करो" नीति का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम एकता को तोड़ना था. उस दौर में भारत को एक ऐसे प्रतीक की ज़रूरत थी, जो जनभावनाओं को एकजुट कर सके, और तभी उभरा "वंदे मातरम्" — एक ऐसा गीत जो सिर्फ शब्द नहीं था, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम का उद्घोष बन गया. यह गीत बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखे गए उपन्यास "आनंदमठ" से लिया गया था, लेकिन जल्द ही यह साहित्य की सीमाओं से निकलकर क्रांतिकारी नारा बन गया.

कोलकाता की सड़कों पर जब छात्र-छात्राएं हाथों में झंडे लेकर "वंदे मातरम्" का उद्घोष करते हुए निकले, तो अंग्रेज हुकूमत हिल गई. पुलिस ने उन पर लाठियां बरसाईं, स्कूलों को धमकाया गया, छात्रों को निकालने की चेतावनी दी गई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. एक घटना में 14-15 साल के छात्रों ने स्कूल प्रांगण में "वंदे मातरम्" गाना शुरू किया. अंग्रेज अधिकारी नाराज़ हो गए और हेडमास्टर पर दबाव डाला गया, लेकिन छात्रों का जवाब था – “हम स्कूल छोड़ देंगे, लेकिन ‘वंदे मातरम्’ कहना नहीं छोड़ेंगे.” यह साहस, यह प्रतिबद्धता पूरे भारत में एक नई चेतना बनकर फैली.

"वंदे मातरम्" जल्द ही लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल, अरविंदो घोष और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे राष्ट्रीय नेताओं के ज़रिए पूरे देश में गूंजने लगा. 1911 के कांग्रेस अधिवेशन में रविंद्रनाथ टैगोर ने इसे सुरों में पिरोकर गाया, और यह गीत भारतीयों की आत्मा बन गया. यह केवल राष्ट्रभक्ति का गीत नहीं था, बल्कि वह ऊर्जा थी, जिसने भारत के हर कोने में आज़ादी की चिंगारी को हवा दी.

"वंदे मातरम्" की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किस तरह एक गीत, एक विचार, एक स्वर – पूरे राष्ट्र को जागृत कर सकता है. यह गीत भारतवासियों के दिलों में आज़ादी की वह लौ बन गया, जो तब तक नहीं बुझी, जब तक देश स्वतंत्र नहीं हो गया.

गीत का  विकास और लोकप्रियता

सुर और शब्दों के तालमेल ने "वन्दे मातरम्" को भारतीय समाज में एक सार्वभौमिक स्वीकृति दिलाई. यह गीत किसी भी राजनीतिक या धार्मिक विचारधारा से ऊपर उठकर भारतीयता का प्रतीक बन गया. सशस्त्र संघर्षों और सत्याग्रह आंदोलनों में इसका उपयोग हुआ था.

इसके साथ ही यह गीत भारतीय फिल्म उद्योग में भी लोकप्रिय हुआ. विशेष रूप से 1950 में, जब इस गीत को भारतीय संगीत के क्षेत्र में अधिक जगह मिली, तब इसे देशभक्ति गीत के रूप में फिल्म "अनंदमठ" में प्रस्तुत किया गया.

संविधान में जगह

1962 में, भारतीय संसद ने इसे आधिकारिक राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी थी. हालांकि इसे राष्ट्रीय गीत के तौर पर अपनाए जाने से पहले, यह एक साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका था.

यह गीत पूरे भारत में स्कूलों, सरकारी समारोहों और राष्ट्रीय उत्सवों पर गाया जाता है. इसके संगीत और शब्दों में वही शक्ति है, जो भारतीय जनमानस को प्रेरित करती है.

विवाद और आलोचना: क्या "वन्दे मातरम्" सभी के लिए है?

कुछ आलोचकों और समुदायों ने 'वन्दे मातरम्' के कुछ शब्दों को विवादास्पद माना है. विशेष रूप से कुछ मुसलमानों ने इसे धार्मिक संदर्भ में चुनौती दी है, क्योंकि गीत में 'मातर' (माँ) के संदर्भ में एक दिव्य शक्ति का उल्लेख है. हालांकि, राष्ट्रीय गीत के रूप में इसे भारतीय सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक के रूप में लिया गया है.

"वन्दे मातरम्" की वर्तमान स्थिति

आज भी 'वन्दे मातरम्' न केवल भारत में, बल्कि भारतीय समुदायों में विदेशों में भी गाया और सुना जाता है. यह देशभक्ति और एकता का प्रतीक बना हुआ है. भारत की मातृभूमि के प्रति प्रेम और सम्मान का यह गीत समय के साथ और भी महत्वपूर्ण हो गया है.

"वन्दे मातरम्" का इतिहास भारतीयों के संघर्ष, साहस और मातृभूमि के प्रति समर्पण की अनगिनत कहानियों से भरा हुआ है. यह एक अनमोल धरोहर है, जो आज भी हमारे दिलों में जीवित है.

गायन की अवधि

"वन्दे मातरम्" का गायन आमतौर पर लगभग 2 से 3 मिनट के बीच होता है. इसका संगीत सरल है, लेकिन अत्यधिक भावनात्मक और प्रेरणादायक है.

यह गीत मूल रूप से बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के द्वारा रचित और रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा संगीतबद्ध किया गया था, और इसका पहला संस्करण भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय में गाया गया था. हालांकि, यदि पूरा गीत गाया जाए तो यह लगभग 5 मिनट तक बढ़ सकता है, लेकिन अधिकांश समय केवल पहले दो शेर या छंदों को ही गाया जाता है.

कहाँ और कहाँ नहीं गाना चाहिए "वन्दे मातरम्"?

राष्ट्रीय और सरकारी कार्यक्रमों में: 'वन्दे मातरम्' का गायन राष्ट्रीय पर्वों जैसे स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर अनिवार्य रूप से किया जाता है. ये भारत के सम्मान और भारतीय संस्कृति का प्रतीक है. यह गीत सरकारी समारोहों, स्कूलों में ध्वजारोहण, और अन्य सार्वजनिक आयोजनों में गाया जाता है.

स्कूलों और कॉलेजों में: अधिकांश स्कूलों और कॉलेजों में प्रतिवर्ष एक निर्धारित दिन पर 'वन्दे मातरम्' गाया जाता है, ताकि विद्यार्थियों में देशभक्ति की भावना जागृत हो. इससे छात्रों में मातृभूमि के प्रति सम्मान और प्यार बढ़ता है.

राष्ट्रीय उत्सवों और समारोहों में: राष्ट्रीय त्योहारों और अन्य बड़े सार्वजनिक समारोहों में 'वन्दे मातरम्' गाना आम बात है, जैसे राष्ट्रीय एकता दिवस या गणतंत्र दिवस पर.

स्वतंत्रता संग्राम की शहीदों की याद में: स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाले शहीदों की श्रद्धांजलि अर्पित करते समय यह गीत गाया जाता है. यह उन बलिदानियों के प्रति सम्मान व्यक्त करता है.

'वंदे मातरम्' गीत का हिंदी में अर्थ नीचे दिया गया है:

वंदे मातरम्।
माता को वंदन (नमन) करता हूँ।
 
सुजलां सुफलां, मलयजशीतलाम्,
जल से समृद्ध, फल-फूलों से भरी, मलय पर्वत की शीतल हवा से शीतल।
 
शस्यश्यामलां मातरम्॥
हरियाली से ढकी, लहलहाते खेतों वाली हे माँ!

शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकित यामिनीं,
चांदनी रातों में पुलकित करने वाली।
 
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीं,
खिले हुए फूलों और वृक्षों की सुंदर शोभा वाली।
 
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं,
मधुर मुस्कान और मीठी वाणी वाली।
 
सुखदां वरदां मातरम्॥
सुख देने वाली और वरदान देने वाली हे माँ!

वंदे मातरम्॥
माँ को प्रणाम करता हूँ।