अभिषेक कुमार सिंह | पटना/वाराणसी
पटना के चर्चित शिक्षक और यूट्यूबर खान सर, जो अब तक अपनी अनोखी शिक्षण शैली और गरीब छात्रों को निशुल्क या कम शुल्क में शिक्षा देने के लिए पहचाने जाते थे, अब एक नई दिशा में कदम बढ़ा चुके हैं. शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने के बाद खान सर अब मेडिकल सेक्टर में उतर रहे हैं.
उनका उद्देश्य है कि बिहार के हर ज़िले में लोगों को सस्ती, सुलभ और अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवाएं मिलें, जिससे उन्हें इलाज के लिए न तो किसी दूसरे शहर जाना पड़े और न ही भारी खर्च उठाना पड़े.खान सर ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि वह बिहार के हर ज़िले में डायलिसिस सेंटर, ब्लड बैंक, डायग्नोस्टिक सेंटर और एक वर्ल्ड क्लास अस्पताल खोलने जा रहे हैं.
दिलचस्प बात यह है कि वह यह सब बिना किसी सरकारी मदद के, सिर्फ और सिर्फ अपने विद्यार्थियों की फीस से करने वाले हैं. उनका मानना है कि यह फीस केवल शिक्षा का शुल्क नहीं है, बल्कि उसी से समाज को लौटाने की एक जिम्मेदारी भी है.
खान सर ने बताया कि किडनी खराब होने की समस्या से जूझ रहे मरीजों के लिए डायलिसिस एक बहुत बड़ी चुनौती होती है. एक बार की डायलिसिस पर लगभग ₹4000 का खर्च आता है और महीने भर में यह ₹50,000 तक पहुंच जाता है, जो गरीब परिवारों के लिए असहनीय है.
इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यह ठाना है कि बिहार के हर जिले में डायलिसिस सेंटर बनाएंगे, जहां अत्याधुनिक मशीनों से बहुत ही कम कीमत पर यह सुविधा दी जाएगी. हर जिले में कम से कम 10 डायलिसिस मशीनें लगाई जाएंगी, जिनमें से पहली 10 मशीनें पहले ही पहुंच चुकी हैं और उनका सेटअप शुरू हो चुका है.
इन मशीनों को जर्मनी और जापान से मंगवाया गया है.खान सर की योजना सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है. उन्होंने घोषणा की है कि हर त्योहार पर बिहार की जनता को एक नई स्वास्थ्य सेवा का तोहफा मिलेगा.
नवरात्रि के पहले दिन खान सर एक ब्लड बैंक की शुरुआत करेंगे, जो जापान से लाई गई इंटरनेशनल टेक्नोलॉजी से लैस होगा. यह ब्लड बैंक इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि ज़रूरतमंदों को त्वरित और सुलभ रक्त मिल सके और किसी की जान सिर्फ खून की कमी से न जाए.
इसी क्रम में दिवाली के मौके पर खान सर बिहार को देने जा रहे हैं सबसे बड़ा स्वास्थ्य तोहफा – एक वर्ल्ड क्लास अस्पताल। यह अस्पताल सरकारी दरों पर इलाज करेगा लेकिन सुविधाएं होंगी टॉप प्राइवेट अस्पतालों जैसी. और सबसे खास बात यह है कि इस अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर वही होंगे, जो कभी खान सर की कोचिंग में पढ़े हैं और आज मेडिकल प्रोफेशन में हैं। यह शिक्षा और सेवा का ऐसा मेल है, जो समाज के लिए प्रेरणा बनेगा..
इसके बाद छठ पूजा के शुभ अवसर पर खान सर एक अत्याधुनिक डायग्नोस्टिक सेंटर का उद्घाटन करेंगे, जिसमें सभी जरूरी मेडिकल जांचें उपलब्ध होंगी. यहां की मशीनें भी जापान, जर्मनी और अमेरिका से लाई जा रही हैं, जिससे यह सेंटर तकनीक के मामले में किसी भी अंतरराष्ट्रीय संस्थान से कम नहीं होगा.
इन सभी योजनाओं के लिए खान सर ने आरा के कोइलवर मौजा में 99 कट्ठा ज़मीन खरीदी है, जहां इन मेडिकल सुविधाओं की नींव रखी जाएगी. बताया जा रहा है कि उन्होंने बिना किसी प्रचार के रजिस्ट्रार ऑफिस जाकर महज 30 मिनट में रजिस्ट्री पूरी की और चुपचाप निकल गए। यह उनकी सादगी और समर्पण को दर्शाता है.
खान सर की इस सोच को और भी खास बनाता है उनका हर त्योहार को सेवा से जोड़ने का संकल्प. वे कहते हैं कि जैसे लोग अपने प्रियजनों को त्योहारों पर उपहार देते हैं, वैसे ही वे हर पर्व पर बिहार की जनता को स्वास्थ्य सेवाओं का उपहार देंगे.
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि इस संपूर्ण अभियान में किसी भी तरह की सरकारी फंडिंग या सहायता नहीं ली जाएगी. यह सब उनके छात्रों की दी गई फीस से ही संभव होगा.इस ऐलान के दौरान खान सर एक शिवभक्त के रूप में भी सामने आए.
माथे पर तिलक और त्रिपुंड लगाए हुए वे सावन के आखिरी सोमवार को इस संकल्प के साथ उपस्थित हुए और कहा कि "जब शिक्षा से परिवर्तन संभव है, तो सेवा से क्यों नहीं ?"बिहार जैसे राज्य में जहां अभी भी ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं सीमित हैं, खान सर की यह पहल एक स्वस्थ भविष्य की दिशा में बड़ा कदम है.
उन्होंने शिक्षा को एक माध्यम बनाकर युवाओं को आत्मनिर्भर बनाया, और अब वे स्वास्थ्य को सेवा का मंच बना रहे हैं. यह न सिर्फ बिहार के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल बन सकता है.
खान सर का यह संकल्प केवल एक व्यक्ति की सोच नहीं है, बल्कि यह उस समाज का आईना है, जहां शिक्षक सिर्फ पढ़ाने तक सीमित नहीं रहते, बल्कि जब जरूरत हो, तो समाज की सबसे बड़ी जरूरतों को भी अपने कंधे पर उठा लेते हैं. यह शिक्षा से सेवा की ओर बढ़ा एक ऐसा कदम है, जो आने वाले समय में लाखों ज़िंदगियों में बदलाव ला सकता है.
खान सर ने साबित कर दिया है कि अगर इरादे नेक हों और सोच स्पष्ट, तो न सरकारी सहायता की जरूरत होती है और न किसी बड़े मंच की – एक शिक्षक भी समाज में क्रांति ला सकता है.