राकेश चौरासिया
दक्षिण कोलकाता लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र पश्चिम बंगाल की हॉट सीट मानी जाती है. सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस सीट से 6 बार संसद पहुंची हैं. इसलिए यह सीट ममता बनर्जी के लिए हर चुनाव में ‘नाक का बाल’ बन जाती है.
बंगाल में माकपा का तूफान अब ढलान पर है और भाजपा अपने उरूज पर. इसलिए भाजपा पिछले दो चुनावों से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को लगातार कड़ी टक्कर दे रही है. हर बार भाजपा के प्रदर्शन में सुधार दर्ज किया गया है. इस बार भी भाजपा आर-पार की लड़ाई के मूड में लगती है. तीन प्रमुख महिला उम्मीदवार वाली सीट कोलकाता दक्षिण में चुनाव सातवें चरण में एक जून को होंगे और चार जून को मतगणना होगी.
इस सीट पर अभी तक टीएमसी की माला रॉय सांसद थीं. उन पर टीएमसी ने फिर से भरोसा जताते हुए मैदान में उतारा है. उन्हें भाजपा की देबाश्री चौधरी चुनौती दे रही हैं. माकपा ने कैडर और मुस्लिम वोटों के भरोसे पर सायरा शाह हलीम को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस ने यहां माकपा के इंडी गठबंधन में होने के कारण कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है.
पश्चिम बंगाल की शहरी सीट कोलकाता दक्षिण में सात विधानसभा क्षेत्र कस्बा, बेहाला पूर्व, बेहाला पश्चिम, कोलकाता पोर्ट, भवानीपुर, राशबिहारी और बालीगंज शामिल हैं. इस सीट का गठन 1951 में ही हो गया था. 1967 में सीपीएम उम्मीदवार ज्योतिर्मय घोष कांग्रेस उम्मीदवार बीबी घोष को हराकर विजयी हुए.
हालांकि, 1971 के चुनावों में पासा पलट गया, जब कांग्रेस के प्रिय रंजन दशमुंशी ने सीपीएम के ज्योतिर्मय घोष को हरा दिया. 1977 में, भारतीय लोक दल (बीएलडी) के दिलीप चक्रवर्ती ने चुनाव में जीत हासिल की. 1980 का चुनाव सीपीएम के सत्य साधन चक्रवर्ती ने जीता था.
टीएमसी की चढ़त
इस सीट के अस्तित्व के बाद से नजारा यह रहा है कि यहां पर कभी माकपा जीतती रही, तो कभी कांग्रेस. इसके बाद 1991 में कांग्रेस ने यहां से फायर ब्रांड नेता ममता बनर्जी को प्रत्याशी बनाया था, जिन्होंने माकपा के बिप्लब देव को हराया था.
इसके बाद ममता यहां से कांग्रेस की टिकट पर 1996 में भी जीतीं. हालांकि बाद में, उन्होंने कांग्रेस से किनारा करके टीएमसी बना ली और इस सीट पर टीएमसी की ओर से 1998 में भी जीतीं. फिर उनका 1999, 2004, 2009 में भी कब्जा रहा. 2011 में भी टीएमसी के सुब्रत बख्शी जीते. इस तरह इस सीट पर शुरुआत से कांग्रेस बनाम माकपा टक्कर होती रही. जब से बंगाल की तीसरी खिलाड़ी टीएमसी मैदान में आई, तब से यह सीट टीएमसी की हो गई.
भाजपा की बढ़त
चौथे खिलाड़ी के तौर पर, 2009 में भाजपा ने कमजोर शुरुआत की थी. तब के चुनाव में यहां से टीएमसी को 57.19 प्रतिशत, माकपा को 35.39 प्रतिशत और भाजपा 3.95 प्रतिशत वोट मिले थे.
जब 2014 का लोकसभा चुनाव आया, तो तृणमूल कांग्रेस के सुब्रत बख्शी यहां से सांसद चुने गए, लेकिन उन्हें भाजपा के तथागत रॉय ने कड़ी टक्कर दी. बख्शी को 4,31,715 यानी 36.95 प्रतिशत वोट मिले, तो तथागत रॉय को 2,95,376 यानी 25.28 प्रतिशत वोट मिले.
इसी तरह, 2019 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार माला रॉय जीतीं, उन्हें 5,73,119 वोट यानी 47.5 फीसद वोट मिले थे. जबकि भाजपा के चंद्र कुमार बोस को 4,17,927 वोट यानी 34.64 प्रतिशत वोट मिले थे.
कड़ी टक्कर
यानी, यहां 2009 में 3.95 प्रतिशत की मामूली उपस्थिति दर्ज करवाने वाली भाजपा ने 2014 में 25.28 प्रतिशत का छलांग मारी और फिर 2019 में उसका मत प्रतिशत बढ़कर 34.64 हो गया, जो उत्तरोत्तर प्रगति का सूचक है. पिछले दोनों ही आम चुनाव में टीएमसी को भाजपा ने कड़ी टक्कर दी.
चुनावी पंडितों का अनुमान है कि इस सीट पर इस बार टीएमसी की निवर्तमान सांसद माला राय और पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा की प्रत्याशी देबाश्री चौधरी के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी.
उधर, भाजपा का रथ थामने के लिए टीएमसी ने अपने पार्षदों और ब्लॉक समिति पर ध्यान केंद्रित किया है. हाल ही में, टीएमसी के मेयर और किद्दरपुर विधायक फिरहाद हकीम ने चुनाव अभियान कार्य से संबंधित जानकारी के लिए शहर के एक होटल में अपनी पार्टी के पार्षदों को बुलाया.
उन्हें स्पष्ट निर्देश दिए गए कि भाजपा हर वार्ड में पीछे रहे. क्योंकि पिछले 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा कम से कम 26 वार्डों में आगे थी. पार्षदों को यह स्पष्ट कर दिया गया कि किसी भी टालमटोली बर्दाश्त नहीं की जाएगी.
माकपा की मुस्लिम उम्मीदवार
माकपा ने यहां से मुस्लिम उम्मीदवार सायरा शाह हलीम को टिकट दी है. वे भी मजबूत प्रत्याशी साबित होंगी. बंगाल में कभी माकपा का तगड़ा वोट बैंक रहा, जो उससे छिटककर टीएमसी में चला गया. किंतु अभी भी माकपा का कैडर यहां मौजूद है, जो शाह हलीम को वोट करेगा. वे लेफ्टिनेंट जनरल जमीर उद्दीन शाह की बेटी और प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता नसीरुद्दीन शाह की भतीजी हैं.
यहां 25-30 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं. यहां के मुस्लिम मतदाता अब तक टीएमसी को मतदान करते रहे हैं. इस बार माकपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर उनके लिए उलझन पैदा कर दी है. इसलिए मुस्लिम मतों का विभाजन हुआ, तो यह सीधे तौर पर टीएमसी और माकपा को नुकसान होगा.
माकपा की सायरा शाह हलीम ने टीएमसीप हमला किया है कि बंगाल जैसे राज्य में बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है, वहां खैरात की राजनीति से परे जाने की जरूरत है. उन्होंने रविवार को एक्सप्रेस डायलॉग्स श्रृंखला के भाग कोलकाता डायलॉग्स के दौरान कहा, ‘‘हमारे अभियान में हम इस बात पर जोर दे रहे हैं कि लोगों को खैरात की राजनीति से परे सोचना चाहिए.’’