सांस्कृतिक विविधता में बसी है लखनऊ की असली खूबसूरती

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 05-12-2025
The true beauty of Lucknow lies in its cultural diversity.
The true beauty of Lucknow lies in its cultural diversity.

 

sविदुषी गौड़ की कलम से

मेरा जन्म और पालन-पोषण लखनऊ में हुआ है, एक ऐसा शहर जहाँ तहज़ीब कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे आप बोलते हैं, बल्कि यह वह चीज़ है जिसे आप साँस लेते हैं. यहाँ के लोग केवल अगल-बगल नहीं रहते; वे एक ही कढ़ाई में धागों की तरह एक-दूसरे के जीवन को आपस में लपेट लेते हैं.

मैं एक हिंदू परिवार में बड़ी हुई, जहाँ रस्में, रीति-रिवाज और हमारी संस्कृति का एक अनकहा अर्थ था. लेकिन मेरी परवरिश ने, अपने कोमल तरीक़े से, हमेशा यही फुसफुसाया कि दिल सचमुच सीमाओं को नहीं समझते.

मेरी सबसे पहली याद दीवाली की शाम की है. जैसे ही मेरी माँ ने आख़िरी दीया जलाया, हमारे दरवाज़े पर दस्तक हुई, जो हमेशा की तरह जानी-पहचानी थी. रुख़साना आँटी एक प्लेट में इतनी गरम सेवइयाँ लेकर खड़ी होती थीं कि भाप से उनके चश्मे धुंधले हो जाते थे. वह मुस्कुराते हुए कहती थीं, “मेहमान-नवाज़ी धर्म नहीं जानती,” और हमारे विरोध करने से पहले ही वह प्लेट मेरी माँ के हाथों में थमा देती थीं.

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और हर साल, हमारी रंगोली और उनकी सेवइयाँ डाइनिंग टेबल पर एक साथ रहती थीं—मिठास के बगल में चमकीले रंग—जैसे ब्रह्मांड ने यह जोड़ी तभी तय कर ली थी जब हमने त्योहारों का मतलब सीखा था.

बचपन बहुत सरल था. होली पर, मैं अपने दोस्त आयशा का पीछा करती थी और गुलाल आसमान से उड़ने वाली कॉन्फ़ेटी की तरह हवा में उड़ता था. वह हँसती हुई भागती थी, अपनी माँ की अलमारी से आलता निकालती थी और मेरे चेहरे पर पोत देती थी. पड़ोसी की छत से किसी ने चिल्लाया, "अब तो दोनों एक जैसी लग रही हो!" और हम तब तक हँसते रहे जब तक हमारे पेट में दर्द न हो गया, क्योंकि उस दिन, रंग ही हमारी एकमात्र पहचान थी.

बड़े होने पर लखनऊ की कोमलता नहीं बदली; यह केवल और ज़्यादा गहरी हुई. मुझे याद है कि एक परीक्षा के बाद कॉलेज के दोस्तों के साथ बड़ा इमामबाड़ा गयी थी, ज़्यादातर इसलिए क्योंकि हम गर्मी से बचना चाहते थे.

जैसे ही हमने अंदर कदम रखा, मैंने अनायास ही अपने जूते उतार दिए. "तुम्हें ज़रूरत नहीं है," मेरे दोस्त अमान अहमद ने फुसफुसाया. मैंने जवाब दिया, "मुझे पता है," "लेकिन सम्मान नियमों का इंतज़ार नहीं करता." कुछ हफ़्तों बाद, जब अमान मेरे घर में एक सुंदर कांड पूजा के दौरान खड़ा था, आरती के समय हाथ जोड़े हुए, उसकी आवाज़ शांत थी जब उसने प्रसादम के महत्व के बारे में पूछा, तो ऐसा महसूस हुआ जैसे जीवन ने बिना किसी शोर के एक चक्र पूरा कर लिया हो.

लेकिन एक याद है जो आज भी मेरे दिल को सुकून देती है. मैं रमज़ान के दौरान एक शाम चौक के पास थी. मगरिब की पहली अज़ान रेशम की तरह हवा में तैर रही थी, और कुछ ही मिनटों में, दुकानदारों ने इफ़्तार के लिए खजूर, पानी और फल बिछा दिए.

एक छोटा लड़का, मुश्किल से आठ साल का, मेरे हाथ को थपथपाया और शरमाते हुए कहा, “दीदी, रोज़ा खोलने का वक़्त हो गया. आप भी बैठ जाइए.” मैंने उससे कहा कि मैं रोज़ा नहीं रखी हूँ. उसने उस यक़ीन के साथ सिर हिलाया जो केवल एक बच्चे में हो सकता है. “कोई बात नहीं. अल्लाह सबको दावत देता है.”

और इसलिए मैं बैठ गई, अजनबियों के बीच एक लड़की, जो बिल्कुल भी अजनबी नहीं लग रहे थे, और एक खजूर साझा किया जिसका स्वाद मैंने पहले कभी नहीं खाया था. मैंने तब महसूस किया कि गर्मजोशी तेज़ आवाज़ में नहीं होती. डर के बनने से पहले ही उसे पिघलाने के लिए सिर्फ़ एक छोटा सा इशारा, एक प्रस्ताव, एक मुस्कान, एक सीट ही काफ़ी है.

लखनऊ ने कभी भी मतभेदों को मिटाया नहीं. इसने उन्हें स्नेह में लपेट दिया. यहाँ, यह सामान्य है कि एक बारात को निकलने देने के लिए एक जनाज़ा (शवयात्रा) रुक जाती है. एक दरगाह से क़व्वाली की धुन सड़क के पार एक पंडाल से आरती की घंटियों के साथ घुलमिल जाती है. लोगों का दीवाली पर अपने स्टाफ़ को गुलाब जामुन भेजना और ईद पर जल्दी दुकान बंद कर देना भी सामान्य है क्योंकि "परिवार को एक साथ खाना चाहिए."

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लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं एकता में इतनी गहराई से विश्वास क्यों करती हूँ. मुझे कभी भी पूरी तरह से समझाना नहीं आता. शायद इसलिए कि मेरे बचपन में अगरबत्ती और इत्र दोनों की महक थी. क्योंकि मैंने कृतज्ञता के जो पहले शब्द सीखे, वे दो भाषाओं में आए थे, शुक्रिया और धन्यवाद. क्योंकि लखनऊ से जुड़ी मेरी हर याद में दो हाथ गुंथे हुए हैं, न कि दो पक्ष बंटे हुए. मैंने मतभेदों के लिए प्यार किताबों या भाषणों से नहीं सीखा. मैंने इसे दीवाली की शामों को भाप निकलती सेवइयों से सीखा है.

इस शहर ने मुझे धीरे से पाला-पोसा, और अपने शांत तरीक़े से, इसने मुझे कुछ अनमोल सिखाया है: शांति तब नहीं होती जब हम सब एक जैसे बन जाते हैं. शांति तब होती है जब हम अलग होने के बावजूद एक-दूसरे के होने का चुनाव करते हैं.

( लेखिका आवाज द वाॅयस अंग्रेजी से जुड़ी हैं)

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