दुरवेश की दुआ ने बदली गांव की तक़दीर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari • 1 Years ago
फ़क़ीर की दुआ से पहले पकती है फ़सल
फ़क़ीर की दुआ से पहले पकती है फ़सल

 

-फ़िरदौस ख़ान 

कहते हैं कि दुआएं तक़दीर बदल दिया करती हैं. अगर किसी दुरवेश की दुआ से ज़मीन के एक टुकड़े की हालत ही बदल जाए, तो वैज्ञानिक भी हैरान रह जाते हैं. वे इस बात के क़ायल हो जाते हैं कि क़ुदरत के करिश्मे को न कोई समझ पाया है और न कभी समझ सकता है. आज हम एक ऐसे ही करिश्मे की बात कर रहे हैं, जो नूह जिले के एक गांव में हुआ था और आज भी बरक़रार है.   

देश की राजधानी दिल्ली के समीपवर्ती राज्य हरियाणा के नूह ज़िले का मढ़ी एक ऐसा गांव हैं, जहां फ़सल अन्य इलाक़ों के मुक़ाबले बहुत पहले पहले पक जाती है. जब आसपास और दूर-दराज़ के गांवों के खेतों में फ़सलें लहलहा रही होती हैं, तब इस गांव के किसान अपनी फ़सल काटकर घर ले जा चुके होते हैं.

इस गांव के बाशिन्दे जैकम ख़ान का कहना है कि उन्होंने बुज़ुर्गों से सुना है कि किसी ज़माने में यहां भी आसपास के इलाक़ों की तरह ही अपने वक़्त पर फ़सल पका करती थी. एक बार की बात है कि यहां एक दुरवेश आए और वे एक पेड़ के नीचे बैठ गए.

वे वहां घंटों तक इबादत करते रहे. गांव के लोगों ने उन्हें देखा, तो वे उनके पास गए और उन्हें पीने के लिए पानी और खाने के लिए भोजन दिया. वह दुरवेश कहीं दूर से आए थे और भूखे और प्यासे भी थे. गांववालों की मेहमान नवाज़ी से वह बहुत ख़ुश हुए.

उन्होंने गांववालों को दुआ देते हुए कहा कि मालिक तुम्हें औरों से पहले रिज़्क़ देगा. कुछ वक़्त बाद वे दुरवेश गांव से चले गए. उनके जाने के कुछ माह बाद किसानों ने देखा कि उनकी फ़सल आसपास के गांवों की फ़सल से पहले पककर तैयार हो गई.

इस बात की चर्चा दूर-दूर तलक होने लगी. पहले तो सबने इसे कोई इत्तेफ़ाक़ समझा, लेकिन जब लगातार फ़सल अन्य गांवों की फ़सल से पहले पकने लगी, तो लोग सोचने पर मजबूर हो गए. उन्हें दुरवेश की दुआ याद आई कि उन्होंने कहा था कि मालिक तुम्हें औरों से पहले रिज़्क़ देगा. वे मान गए कि यह दुरवेश की दुआ का ही असर है, जो उन्हें औरों से पहले रिज़्क़ यानी फ़सल मिल पाती है. 

इस गांव की एक ख़ास बात यह भी है कि मढ़ी महामारी से महफ़ूज़ रहता है. जब कभी कोई महामारी फैलती है, तो भले ही आसपास के गांव उसकी चपेट में आ जाएं, लेकिन मढ़ी सुरक्षित रहता है. यहां के लोग कम बीमार पड़ते हैं.

इसे भी गांववाले दुरवेश की दुआओं का ही असर मानते हैं. सूबे ख़ान कहते हैं कि मढ़ी ही नहीं, पूरे मेवात इलाक़े के लोग सादगी पसंद हैं. वे फ़क़ीरों और साधु-संतों का मान-सम्मान करने वाले हैं. यहां कोई फ़कीर, साधु-संत या कोई मुसाफ़िर आ जाए, तो गांववाले उसे भोजन करवाते हैं, उसे पानी पिलाते हैं, उसका आदर-सत्कार करते हैं.

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गांववाले कहते हैं कि मेहमान नवाज़ी करना तो हमारा फ़र्ज़ है. अल्लाह के नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कई मौक़ों पर मेहमान का स्वागत करने, उसकी ख़िदमत करने और उसका ख़्याल रखने का हुक्म दिया है. गांववाले अपनी इस परम्परा को क़ायम रखे हुए हैं और वे अपने बच्चों को भी इसकी तालीम देते हैं.        

कुछ लोग कहते हैं कि फ़सल को पर्याप्त सिंचाई जल न मिल पाने की वजह से मढ़ी में फ़सल जल्द पककर तैयार हो जाती है. लेकिन जब उनसे यह पूछा जाता है कि मढ़ी के आसपास के दर्जनों गांवों की यही हालत है. वहां भी फ़सलों की पर्याप्त सिंचाई नहीं हो पाती और उन्हें भी बहुत कम पानी मिल पाता है.

फिर एक जैसी हालत में वहां की फ़सलें जल्द पककर तैयार क्यों नहीं होती? इस सवाल का उन लोगों के पास कोई जवाब नहीं होता, सिवाय इसके कि यह बात उनकी समझ से परे है. गांववाले बताते हैं कि दूर-दूर से कृषि वैज्ञानिक उनके गांव में आए और उन्होंने हालात का जायज़ा लिया, लेकिन बिना किसी नतीजे पर पहुंचे वापस लौट गए.   

जल संकट 

गांव बाई के सरपंच आबिद बताते हैं कि इलाक़े के मढ़ी सहित तक़रीबन 66 गांवों में अब तक सिंचाई का नहरी पानी नहीं पहुंच पाया है. इसलिए इस इलाक़े के किसान सिंचाई के लिए बारिश के पानी पर निर्भर हैं. इस वजह से यहां साल में एक ही फ़सल हो पाती है.

इस इलाक़े में भूजल-स्तर बहुत गहरा है. यहां का पानी बहुत खारा होने की वजह से पीने के लायक़ भी नहीं है. ऐसे में फ़सल कहां से हो. यहां के किसान अनाज में गेहूं और जौ की फ़सल उगाते हैं. दलहन में मसूर और तिलहन में सरसों की खेती की जाती है.    

क़ाबिले-ग़ौर है कि 1507 वर्ग किलोमीटर में फैले मेवात यानी नूह इलाक़े का भू-जल स्तर बहुत नीचे है. इतना ही नहीं, यहां के ज़्यादातर इलाक़े का पानी बहुत खारा और फ़्लोराइडयुक्त है, जिससे यह पीने लायक़ बिल्कुल भी नहीं है.

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सिर्फ़ अरावली पहाड़ों की तलहटी में बसे गांवों का पानी ही पीने के लायक़ है. एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक़ मेवात में जल संकट की हालत बहुत गंभीर हैं. यहां के 443 गांवों में से महज़ 57 गांव ही ऐसे हैं, जहां का भू-जल पीने लायक़ है.

इलाक़े के 104 गांवों का पानी बहुत ज़्यादा खारा है. यहां के 31 गांवों के पानी में फ़्लोराइड की मात्रा बहुत ज़्यादा है, जो सेहत के लिए बहुत नुक़सानदेह है. इलाक़े के 52 गांवों का पानी खारा भी है और उसमें फ़्लोराइड भी बहुत ही ज़्यादा है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक़ पानी में फ़्लोराइड की मात्रा ज़्यादा होने की वजह से यह धीमे ज़हर का काम करता है. इस पानी के सेवन से गुर्दों में पथरी हो जाती है. इससे हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं. शरीर में दर्द रहने लगता है और ज़रा सी चोट से हड्डी टूट भी सकती है. इसके अलावा फ़्लोराइडयुक्त पानी के सेवन से त्वचा संबंधी बीमारियां भी हो जाती हैं.

हालांकि मेवात के तक़रीबन अढ़ाई सौ गांवों में रेनीवेल परियोजना के तहत पेयजल की आपूर्ति की जा रही है. यह पानी यमुना के किनारे बड़े बोरवेल के बूस्टिंग स्टेशनों के ज़रिये गांवों में पहुंचाया जा रहा है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती 2 अक्टूबर 2004 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने इस योजना की आधारशिला रखी थी.

इसका मक़सद यमुना किनारे रेनीवेल बनाकर मेवात में पानी पहुंचाना था. यह परियोजना 2019 की आबादी को ध्यान में रखकर बनाई गई थी. इसके तहत प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 55 लीटर स्वच्छ पेयजल देने का प्रावधान किया गया था, लेकिन बढ़ती आबादी की लगातार बढ़ती पानी की मांग की वजह से यहां जल संकट बना रहता है.    

(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)