टीचर्स डे स्पेशल : आशीष नेहरा ने निभाया फर्ज़, कोच को दिया मकान का तोहफ़ा

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 05-09-2025
Teachers Day Special: Ashish Nehra fulfilled his duty, gifted a house to his coach
Teachers Day Special: Ashish Nehra fulfilled his duty, gifted a house to his coach

 

आवाज़ द वॉयस/ नई दिल्ली

आज जब देशभर में टीचर्स डे मनाया जा रहा है, तो हर कोई अपने जीवन के उस शिक्षक को याद कर रहा है, जिसने उसे न सिर्फ़ पढ़ाया, बल्कि जीवन का रास्ता भी दिखाया. गुरू और शिष्य का रिश्ता हमेशा से ही भारतीय परंपरा का अभिन्न हिस्सा रहा है. इसी परंपरा को जीवंत करती एक कहानी है दिल्ली के मशहूर क्रिकेट कोच तारिक सिन्हा और उनके शिष्य, टीम इंडिया के दिग्गज गेंदबाज़ आशीष नेहरा की.

यह कहानी न सिर्फ़ क्रिकेट की दुनिया की है, बल्कि उस रिश्ते की है जिसमें एक गुरू अपने शिष्य को संवारता है और शिष्य अपने गुरू का जीवन संवारने की जिम्मेदारी निभाता है.

सोनेट क्रिकेट क्लब से निकले सितारे

दिल्ली का सोनेट क्रिकेट क्लब देश के क्रिकेट इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है. और इसकी वजह हैं वहां के कोच तारिक सिन्हा, जिन्हें प्यार से “क्रिकेट के उस्ताद” कहा जाता था. सिन्हा सर ने अपनी कोचिंग से भारतीय क्रिकेट को ऐसे खिलाड़ी दिए जिन्होंने टीम इंडिया को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया.

उनके शिष्यों में आशीष नेहरा, शिखर धवन, ऋषभ पंत जैसे नाम किसी परिचय के मोहताज नहीं. इसके अलावा 12 से अधिक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, 100 से ज्यादा रणजी ट्रॉफी के क्रिकेटर और आईपीएल के कई चमकते सितारे उसी मिट्टी से निकले हैं, जिसे सींचने का काम सिन्हा सर ने किया. दिल्ली क्रिकेट से जुड़े हर खिलाड़ी के दिल में उनके लिए गहरी इज़्ज़त और कृतज्ञता है.
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कोच और शिष्य का किस्सा

कहानी उन दिनों की है जब आशीष नेहरा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में नाम कमा चुके थे. एक छुट्टी के दौरान वह दिल्ली लौटे और अपने कोच से दोबारा कुछ बारीकियां सीखने के लिए सोनेट क्लब पहुँचे. नेहरा के लिए यह केवल तकनीकी अभ्यास नहीं था, बल्कि अपने गुरू के साथ बिताए जाने वाले पल भी थे.

एक दिन आशीष ने क्लब पहुँचने में थोड़ी देरी कर दी. तारिक सिन्हा सर ने उन्हें टोका—“बेटा, समय की पाबंदी बहुत जरूरी है. लेट मत आया करो.”नेहरा ने कुछ नहीं कहा, लेकिन घटना उनके दिल में रह गई.

कुछ ही दिनों बाद इसका उल्टा हुआ. उस दिन आशीष नेहरा तय समय से पहले क्लब पहुँच गए, जबकि सिन्हा सर थोड़ी देरी से आए. मौके का फायदा उठाते हुए नेहरा ने मुस्कराकर चुटकी ली,“क्या सर, आप खुद देर से आते हो और हमें टोकते हो.”

सुनकर सिन्हा सर मुस्कराए नहीं, बल्कि गंभीर हो गए. उन्होंने हल्की मायूसी से कहा,“बेटा, तुम तो अब इंटरनेशनल खिलाड़ी हो, बड़ी कोठियों में रहते हो. लेकिन मैं तो किराए के मकान में रहता हूँ. मकान मालिक दो बार नोटिस दे चुका है. नया घर ढूँढने में वक्त लग जाता है, इसलिए क्लब देर से आ गया.”नेहरा यह सुनकर खामोश हो गए.

बारिश और वह दिन

फिर अगले तीन दिन लगातार बारिश होती रही और क्लब में कोई अभ्यास नहीं हुआ. चौथे दिन जब आसमान साफ हुआ तो सिन्हा सर हमेशा की तरह समय पर पहुँच गए. लेकिन इस बार देर से आए आशीष नेहरा. सर ने उन्हें फिर टोका“नेहरा, तुम फिर लेट क्यों आए?”

नेहरा ने कोई सफाई नहीं दी. बल्कि अपनी जेब से एक चाबी निकाली और सिन्हा सर की ओर बढ़ाते हुए कहा,“सर, अपने कोच के लिए अच्छा मकान खरीदने में थोड़ा टाइम तो लगेगा ही. इसलिए देर हो गई. ये चाबी आपके लिए है. ये मकान मैंने आपको गिफ्ट किया है.”उस पल सिन्हा सर के चेहरे पर आई भावनाओं की लहर ने वहाँ मौजूद हर शख्स को गहराई से छू लिया.

गुरु-शिष्य का अनूठा रिश्ता

यह घटना सिर्फ़ एक खिलाड़ी और उसके कोच की कहानी नहीं है. यह उस भारतीय परंपरा की मिसाल है जहाँ शिष्य अपनी सफलता का श्रेय अपने गुरू को देता है और गुरू अपने शिष्य की कामयाबी पर नाज़ करता है.

आशीष नेहरा ने यह दिखा दिया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचने के बावजूद वह अपनी जड़ों और अपने गुरू को नहीं भूले. दूसरी ओर, तारिक सिन्हा ने अपनी तमाम परेशानियों के बावजूद खिलाड़ियों को तराशने का काम जारी रखा और देश को क्रिकेट के नायाब हीरे दिए.

आज की पीढ़ी के लिए सबक

इस टीचर्स डे पर जब सोशल मीडिया पर यह कहानी वायरल हो रही है, तो यह सिर्फ़ खेल प्रेमियों के लिए नहीं, बल्कि हर किसी के लिए एक प्रेरणा है. यह कहानी बताती है कि जीवन में चाहे जितनी भी ऊँचाइयाँ मिलें, हमें अपने गुरुओं और उन लोगों को कभी नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने हमें रास्ता दिखाया.

गुरु-शिष्य का यह रिश्ता केवल खेल तक सीमित नहीं है, बल्कि हर क्षेत्र में यही बंधन हमें इंसानियत, कृतज्ञता और विनम्रता की याद दिलाता है.