ईद मिलाद-उन-नबी: मानवता के लिए रहमत का पैगाम, पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) का आगमन

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 05-09-2025
Eid Milad-un-Nabi: A message of mercy to humanity, the advent of Prophet Muhammad (ﷺ)
Eid Milad-un-Nabi: A message of mercy to humanity, the advent of Prophet Muhammad (ﷺ)

 

-ईमान सकीना 

दुनिया भर के मुसलमानों के लिए, ईद मिलाद-उन-नबी सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक उत्सव है जो हर साल एक नई चेतना और उत्साह लेकर आता है.यह वह पवित्र दिन है जब मुसलमानों के सबसे प्रिय पैगंबर, हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पैदाइश हुई थी.इस मुबारक दिन का जश्न मनाना उनके जन्म की खुशी और मानवता पर अल्लाह की इस सबसे बड़ी रहमत के लिए उनका शुक्रिया अदा करना है.यह वह घड़ी थी जब अंधकार के बादल छँटने लगे और ज्ञान, न्याय, और नैतिकता का नूर पूरी दुनिया में फैलने लगा.

पैगंबर मुहम्मद () की पैदाइश: एक ऐतिहासिक मोड़

पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का जन्म 570 ईस्वी में मक्का शहर में हुआ था.यह साल "आम उल-फील" (हाथी का वर्ष) के नाम से जाना जाता है, जब यमन के शासक अब्रहा ने अपनी विशाल हाथी सेना के साथ काबा को ध्वस्त करने की कोशिश की थी.

उनकी पैदाइश सिर्फ उनके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव इतिहास के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुई.जिस समय दुनिया अज्ञानता, कबीलाई झगड़ों, और नैतिक पतन में डूबी हुई थी, उस समय उनका आगमन आशा, दया, और मार्गदर्शन का प्रतीक बन गया.

अल्लाह तआला ने कुरान-ए-करीम में उनकी अहमियत को खुद बयान किया है, "और हमने आपको (ऐ मुहम्मद!) तमाम जहानों के लिए बस एक रहमत बनाकर भेजा है." (सूरह अल-अंबिया 21:107).

यह आयत हमें बताती है कि क्यों मुसलमान उनके जन्मदिन को इतनी अहमियत देते हैं.उनका आना उस वक्त की जरूरतों को पूरा करने के लिए था, जब समाज में महिलाओं को सम्मान नहीं मिलता था, गरीबों पर जुल्म होते थे और कमजोरों की कोई सुनवाई नहीं थी.

ईद मिलाद-उन-नबी का वास्तविक उद्देश्य

इस दिन को मनाना केवल एक ऐतिहासिक घटना को याद करना नहीं है, बल्कि पैगंबर () के महान चरित्र, उनकी शिक्षाओं और उनकी कुर्बानियों को याद करना है.

मुसलमानों के लिए यह दिन उनके प्रति अपने प्यार को फिर से जगाने, उनकी सुन्नत (उनकी परंपराओं) पर गौर करने और इस्लाम के पैगाम को अपने रोजमर्रा के जीवन में उतारने का मौका है.

मुसलमान इस अवसर पर मस्जिदों और सामुदायिक केंद्रों में इकट्ठा होते हैं, जहां वे कुरान की आयतें पढ़ते हैं, पैगंबर () की जिंदगी के किस्से सुनाते हैं और उन पर दुरूद व सलाम भेजते हैं.इन महफिलों में अक्सर उनके दयालुता, विनम्रता, ईमानदारी और करुणा जैसे गुणों पर रोशनी डाली जाती है, ताकि लोग इन गुणों को अपने जीवन में अपना सकें.

ईद मिलाद-उन-नबी अल्लाह का शुक्र अदा करने का भी एक दिन है, जिसने मानवता पर अपने अंतिम पैगंबर के रूप में इतना बड़ा एहसान किया.यह दिन पैगंबर () के अथक प्रयासों को याद दिलाता है, जिन्होंने इस्लाम का पैगाम फैलाया, मुश्किलों में धैर्य रखा और अपने दुश्मनों को भी माफ कर दिया.

उनके जन्मदिन का जश्न मनाने से मुसलमानों का अपने प्यारे पैगंबर से आध्यात्मिक रिश्ता मजबूत होता है और उनके दिखाए रास्ते पर चलने का संकल्प और भी पुख्ता होता है.

दुनिया के कई हिस्सों में, यह दिन समुदायों को आपसी सौहार्द के साथ एक साथ लाता है.गलियों और मस्जिदों को रोशन किया जाता है, जुलूस निकाले जाते हैं और गरीबों में खाना बांटा जाता है.ये सभी कार्य पैगंबर () द्वारा बताए गए दान, भाईचारे और जरूरतमंदों की देखभाल करने के महत्व को दर्शाते हैं.

ईद मिलाद-उन-नबी मनाने के प्रमुख तरीके

मिलाद-उन-नबी मनाने का तरीका हर मुस्लिम समुदाय में थोड़ा अलग हो सकता है, लेकिन इसका मकसद एक ही है: पैगंबर मुहम्मद () की जिंदगी और उनकी शिक्षाओं को याद करना.

1. कुरान की तिलावत और नात पढ़ना

मुसलमान मस्जिदों या घरों में इकट्ठा होकर कुरान की तिलावत करते हैं और 'नात' (पैगंबर की तारीफ में लिखी गई कविताएं) पढ़ते हैं.ये महफिलें लोगों को पैगंबर () के महान गुणों और उनके रहमत भरे पैगाम को याद दिलाती हैं.

2. सीरत पर व्याख्यान (लेक्चर) और कार्यक्रम

विद्वान और समुदाय के नेता पैगंबर () की सीरत (जीवनी) पर भाषण देते हैं.वे एक नेता, शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालते हैं और बताते हैं कि उनके उदाहरणों को रोजमर्रा के जीवन में कैसे लागू किया जा सकता है.

3. दुरूद व सलाम भेजना

मुसलमान अल्लाह के हुक्म पर दिल खोलकर दुरूद शरीफ (पैगंबर पर सलाम) पढ़ते हैं.कुरान में फरमाया गया है: "बेशक, अल्लाह और उसके फरिश्ते नबी पर दुरूद भेजते हैं.ऐ ईमान वालों! तुम भी उन पर दुरूद भेजो और सलाम कहो." (सूरह अल-अहजाब 33:56)। इस दिन दुरूद की अधिक तिलावत करना पैगंबर से मोहब्बत का इजहार है.

4. दान और गरीबों को खाना खिलाना

इस मुबारक दिन पर, मुसलमान नेकी के काम करते हैं, जैसे जरूरतमंदों को खाना खिलाना, मिठाइयाँ बांटना और गरीबों की मदद करना.यह पैगंबर () की जिंदगी भर गरीबों और यतीमों के लिए रही हमदर्दी को दर्शाता है.

5. जुलूस और सजावट

कई मुस्लिम देशों में, गलियों, मस्जिदों और घरों को रोशनी, बैनर और हरे झंडों (जो पैगंबर से जुड़े हैं) से सजाया जाता है.जुलूस निकाले जाते हैं, जहां मुसलमान एक साथ मार्च करते हुए उनकी तारीफ करते हैं और एकता व शांति का पैगाम देते हैं.

6. सामुदायिक भोजन (लंगर)

खास सामुदायिक भोजन का आयोजन किया जाता है, जहां हर किसी को मुफ्त में खाना परोसा जाता है, चाहे वह किसी भी सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि का हो.यह भाईचारे और बराबरी को बढ़ावा देता है, जो पैगंबर () ने अपने जीवन भर सिखाया.

ईद मिलाद-उन-नबी सिर्फ एक जश्न नहीं है, बल्कि यह पैगंबर मुहम्मद () की महान शिक्षाओं को आत्मसात करने का एक मौका है.यह हमें याद दिलाता है कि एक सच्चा मुस्लिम वही है जो पैगंबर के बताए रास्ते पर चले, दूसरों के लिए रहमत का जरिया बने और समाज में अमन और भाईचारा कायम करे.यह दिन हम सबको एक बेहतर इंसान बनने और पैगंबर की विरासत को दुनिया में जिंदा रखने के लिए प्रेरित करता है.