इमरान खान / संभल
वालिदैन के लिए किसी ने क्या खूब कहा, ‘‘उनके होने से बख्त होते हैं, बाप घर के दरख्त होते हैं.’’ लखीमपुर खीरी में बतौर सिविल जज तैनात मोहम्मद कासिम के पिता वली मोहम्मद की भी कुछ ऐसी ही कहानी है. अगर हम कुछ कर गुजरने का सपना देखते हैं, तो उसमें अकेले हमारा संघर्ष नहीं होता, उसमें हमारे माता-पिता और परिवार की मेहनत और दुआएं भी शामिल होती है.
मां तो अपने हिस्से का निवाला भी अपने बच्चे को दे देती है और पिता उस निवाले को कमाने के लिए दिन-रात खून-पसीना बहाता है. ऐसे ही उत्तर प्रदेश संभल के हलीम बेचने वाले वली मोहम्मद हैं, जिन्होंने अपने बेटे के सपनों को पंख देने के लिए कभी हिम्मत नहीं हारी.
वे हमेशा अपने बेटे की नाकामियों के हर मोड़ पर सुतून बनकर खड़े रहे और एक दिन कासिम ने बुलंदियों को चूम ही लिया. उनके बेटे मोहम्मद कासिम ने प्रांतीय सिविल सेवा न्यायिक परीक्षा 2022 (पीसीएस-जे) में 135वी रैंक से परीक्षा पास की और अब वे जज बन चुके हैं.
अपने बच्चों में अपना बचपन और बच्चों की खुशियों में अपनी खुशियां देखने वाले माता-पिताओं के लिए मेराज फैजाबादी ने शायद अपने अशआर में लिखा है, ‘‘मुझको थकने नहीं देता ये जरूरत का पहाड़, मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते.’’
आवाज-द वॉयस संवाददाता ने जब मोहम्मद कासिम से बात की, तो उन्होंने बताया कि कैसे उनके पिता ने उनके साथ संघर्ष किया. मोहम्मद कासिम उत्तर प्रदेश जिला संभल के रुकूंनुद्दीन गांव के रहने वाले हैं. वली मोहम्मद कासिम के पिता गांव के पास के पेट्रोल पंप पर हलीम बेचने का काम करते हैं, जो आज भी करते हैं. वली मोहम्मद जी के कासिम को मिलाकर आठ बच्चे हैं.
बड़ा परिवार और आमदनी कम होने के कारण ज्यादातर घर में पैसों की परेशानी रहती थी. लेकिन वली मोहम्मद जी ने कभी कासिम की पढ़ाई के खर्चे में लापरवाही नहीं की. कासिम बताते हैं कि जब वह अपने पिता से किताबों के लिए पैसे मांगते थे, तो उनके पिता उन्हें दस और बीस रुपए के नोट और सिक्के दिया करते थे, जिससे यह साफ दिखता था कि यह पैसे किसी और काम के लिए जमा किये हुए हैं, यह देखकर उनका हौसला और बढ़ जाया करता था.
गर्मी हो या सर्दी, वली मोहम्मद जी सुबह 6 बजे हलीम बेचने निकल जाया करते थे, और शाम को घर में आते थे. अपने पिता की मेहनत देखकर कासिम भी अपने पिता की सहायता करने चले जाते थे.
मोहम्मद कासिम ने बताया कि जब में काम करता था, तो ऐसा नहीं था कि मैं सिर्फ काम ही करता था. मैं सुबह 6 बजे से शाम के 4 बजे तक काम करता था. फिर 6 बजे तक ट्यूशन पढ़कर वापस आता था. सुबह काम पर जाने से पहले पढ़ाई करता था.
काम से निपटने के बाद रात को पढ़ाई करता था. इस तरह, मेरी पढ़ाई दिन में नहीं हुई है. क्योंकि दिन में काम करता था. कासिम आगे बताते हैं कि उनके पिता जी हमेशा उनसे काम करने के लिए मना करते थे, वह कहते थे कि ‘बेटा रहने दे अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, ये सब काम हो जायेंगे, ये मैं कर लूंगा.’’
बेटे के चेहरे पर परेशानी देखकर वली मोहम्मद जी हमेशा कासिम से कहते कि क्यों परेशान होता है, हर कोई जज थोड़ी बनता है, तू अच्छा वकील भी तो बन सकता है, हमारे लिए तो वो भी खुशी की बात होगी. वली मोहम्मद जी खुद नहीं पढ़े-लिखे, लेकिन वह यह बात जानते थे कि बेटे का हौसला नहीं टूटना चाहिए और न ही एग्जाम का दवाब बच्चे पर होना चाहिए.
आपको बता दें कि मोहम्मद कासिम ने अपनी शुरुआती पढ़ाई संभल से ही पूरी की थीं. कासिम ने 10वीं में फेल होने के बाद 10वीं और 12वीं दूरस्थ शिक्षा से पूरी की. उसके बाद ग्रेजुएशन उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पूरी की.
कासिम कहते हैं कि अलिगढ़ यूनिवर्सिटी में कहा जाता है कि जो अलीगढ़ के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी जाता है, तो वह जज बन जाता है. उनके दिमाग में यही बात चलती रहती थी. इसलिए दिल्ली यूनिवर्सिटी के एलएलएम में दाखिला ले लिया, जिसमें कासिम की पहली रैंक आयी.
दाखिले के बाद वे पूरी तरह तैयारियों में जुट गए. कासिम बताते हैं, ‘‘ पहली बार मेंस के एग्जाम में निराशा हाथ लगी और मैं हिम्मत हारकर बैठ गया. उसका कारण था कि हम आर्थिक तौर पर मजबूत नहीं थे. लेकिन पापा ने समझाया और मैं दोबारा तैयारी में लग गया, जिसके बाद मेंस और प्री दोनों एग्जाम निकल गए. 14 दिन की तैयारी के बाद मेरा इंटरव्यू हुआ, जो मैंने क्लीयर कर लिया.’’ कासिम अभी लखीमपुर खीरी में बतौर सिविल जज अपना कार्य कर रहे हैं.
वली मोहम्मद जी का संघर्ष केवल कासिम तक ही सीमित नहीं था. उनकी दो लड़कियों में से एक हलीमा ने भी वकालत पूरी कर ली है, तो वहीं चमन फातिमा ने भी अपनी मास्टर की पढ़ाई पूरी कर ली है. वली मोहम्मद जैसे पिता एक मिसाल हैं कि पिता का विश्वास अगर अपने बच्चों में है, तो बच्चे अपने सपने पूरा कर सकते हैं.
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