मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली
पैगंबर शेख-महाराष्ट्र का एक ऐसा नाम है, जो पिछले कई वर्षों से शिवाजी महाराज की मुस्लिम और इस्लाम विरोधी छवि तोड़ने में लगा है. उनका मानना है-‘‘शिवाजी महाराज इस्लाम विरोधी नहीं थे. वे मुगलों के खिलाफ थे, जिन्होंने देश पर आक्रमण किया था. वास्तव में शिवाजी महाराज के बारे में न केवल गलतफहमियां पैदा की गईं, उनकी तस्वीर इस तरह पेश की गई है कि मुसलमान उन्हें इस्लाम विरोधी मानने लगे.
पैगंबर शेख के मुताबिक,‘‘ सच्चाई यह है कि शिवाजी महाराज शायद मुसलमानों से कहीं ज्यादा इस्लाम का सम्मान करते थे. जो इस हकीकत से वाकिफ हैं वे न केवल शिवाजी जयंती मनाते हैं, इसका आयोजन भी करते हैं.
महाराष्ट्र की ‘नाॅलेज’ नगरी पुणे के पैगंबर शेख ने आवाज द वॉयस से बात करते हुए कहा कि शिवाजी महाराज को बहुसंख्यकों के एक वर्ग द्वारा मुसलमानों के विरोधी के रूप में पेश किया गया, जिससे आम मुसलमान इस दुष्प्रचार का शिकार हो गया,
जबकि हकीकत इससे जुदा है. शिवाजी महाराज जयंती मनाने वाले मुस्लिम संगठन इस तथ्य से अवगत हैं कि उनकी लड़ाई इस्लाम या मुसलमानों के खिलाफ नहीं थी.नहीं तो शिवाजी की सेना में उच्च पदों पर मुसलमान नहीं होते.
पैगंबर शेख कहते हैं कि किले में एक मस्जिद है जहां शिवाजी महाराज का जन्म हुआ था. उनका इतिहास पढ़ेंगे तो यह तथ्य सामने आता है कि शिवाजी महाराज ने हमेशा मुसलमानों का सम्मान किया. इस्लाम के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोले. उनकी लड़ाई केवल आक्रमणकारियों से थी जिसमें खुद मुस्लिम भी उनके साथ थे.
मजे की बात यह है कि पैगंबर शेख न केवल शिवाजी महाराज के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए सक्रिय हैं, मुसलमानों में शैक्षिक जागरूकता के लिए एक विशाल और अनूठा अभियान भी चलाते हैं.
इसमें वे बलिदान के बदले शिक्षा के लिए दान की अपील करते हैं. उनके जीवन के दो मुख्य लक्ष्य है. पहला शिवाजी के बारे में मुसलमानों में फैली भ्रांति दूर करना. दूसरा, शिक्षा के लिए कुर्बानी के जानवर से धन प्राप्त करना.
मुसलमान समझने लगे शिवाजी की हकीकत
आवाज द वॉयस से बात करते हुए पैगंबर शेख ने कहा कि अच्छी बात यह है कि अब मुसलमानों को यह बात समझ में आने लगी है. शिवाजी महाराज की जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. ऐसे मुसलमानों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है.मुसलमानों में भी शिवाजी जयंती उत्सव बन गया है.
पैगंबर शेख बताते हैं,मैं एक दिन में बीस से पच्चीस कार्यक्रमों में भाग लेता हूं, जहा मैं शिवाजी महाराज से मुसलमानों के संबंध के बारे में बातें करता हूं. इनमें यजमान गैर-मुस्लिम भी होते हैं और मुसलमान भी.
मैं ज्यादा से ज्यादा मुसलमानों को यह बताने और समझने की कोशिश करता हूं कि शिवाजी की कोई भी लड़ाई मुसलमानों या इस्लाम के खिलाफ नहीं थी. केवल आक्रमणकारियों के खिलाफ थी.
त्योहार है शिवाजी जयंती
हर साल की तरह ये दिन भी पैगंबर शेख के लिए बेहद खास होता है, क्योंकि उनके कार्यक्रम सुबह से ही शुरू हो जाते हैं. उनके अनुसार, शिवाजी से उनका लगाव एक दिलचस्प कहानी है.
उनका कहना है कि जैसे-जैसे मैं उम्र के हर पड़ाव से गुजरता जा रहा हूं, छत्रपति शिवाजी के प्रति मेरा प्यार और भक्ति बढ़ती जा रही है. मुझे ठीक से समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है. मैं पिछले 5 से 10 वर्षों में छत्रपति शिवाजी महाराज के विषय में परिपक्व हुआ हूं. इस अभियान में उनके साथ उनकी पत्नी भी है.
शिवाजी के प्रति रुझान
वे शिवाजी महाराज के निकट क्यों और कैसे आए, इस संबंध में पैगंबर शेख कहते हैं कि जब मैं छोटा था, तब शिवाजी महाराज द्वारा बनवाए गए किले घूमने जाया करता था. मैं उनके बारे में और जानने के बारे में सोचता. फिर मैंने इतिहास पढ़ा. मैं महाराष्ट्र में शिवाजी के सभी किलों का दौरा करने के लिए दृढ़ संकल्पित हूं, जिनकी संख्या 53 है.
वे कहते हैं कि ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में उनका अपना नजरिया है. मेरा मानना है कि एक वर्ग ने शिवाजी को इस तरह चित्रित किया कि वे मुसलमानों की नजर में उनके दुश्मन बन गए, लेकिन ऐसा नहीं है.
मैं इस गलतफहमी को दूर करने की कोशिश कर रहा हूं. यह मेरे सामने एक बड़ा मिशन है. लोगों को उनके बारे में बताता हूं कि आक्रमणकारियों के खिलाफ युद्ध का मतलब नफरत या किसी धर्म या संप्रदाय के खिलाफ युद्ध नहीं है.
कुर्बानी के पैसे से शिक्षा
पैगंबर शेख अब पुणे में एक घरेलू नाम है. लोग उनके संघर्ष को जानते, समझते और सलाम करते हैं. वे मुसलमानों में शिक्षा के प्रति जागरूकता भी पैदा कर रहे हैं. शिक्षा कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए एक सहारा है. इसके लिए उन्होंने अनूठा अभियान चला रखा है.
वे त्योहारों पर चंदा मांगते हैं.खासकर ईद-बकरीद के मौके पर. उनका नारा है कि किसी जानवर की कुर्बानी के बदले शिक्षा के लिए पैसे दान करें. कुर्बानी देनी हो तो किसी पशु के लिए करो, पर दूसरों के धन से किसी के जीवन को संवारने का काम करो.
पैगंबर शेख ने आवाज द वॉयस से कहा कि हमने शैक्षिक जागरूकता अभियान से शिक्षा को संभव बनाने की कोशिश की है. महसूस किया कि अगर कोई बच्चा पढ़ना चाहता है तो उसकी पढ़ाई का खर्चा उठाने वाला कोई नहीं. इसको लेकर मुसलमानों में जागरूकता पैदा की है.लोग इसके महत्व समझने लगे हैं. शिक्षा कोष में धन दान करते हैं.
पिछले एक दशक में कई मुसलमानों ने बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी की परंपरा को तोड़ा है. समुदाय के कल्याण, विशेष रूप से शिक्षा के लिए जानवरों की खरीद और कुर्बानी पर खर्च किए जाने वाले धन का उपयोग करने की सलाह को पहचाने लगे हैं.
एक विचार जो बन गया प्रेरणा
पैगंबर शेख कहते हैं कि बेंगलुरु में भी उनके कुछ मुस्लिम दोस्त दूसरों को इस तरह से काम करने के लिए राजी करने में सफल रहे. 2018 की केरल बाढ़ के बाद, सोशल मीडिया ने देश भर में कई लोगों को बाढ़ पीड़ितों को दान करने या कम से कम अपने निर्धारित धन का एक हिस्सा देने के लिए प्रेरित किया. हालांकि, पैगंबर शेख का आर्थिक बलिदान आंदोलन उन सभी से अलग है. यह केवल मुसलमानों तक ही सीमित नहीं है.
वास्तव में, फेसबुक अभियान को मुसलमानों की तुलना में हिंदुओं से अधिक समर्थन मिला है. जब उन्होंने 2014 में अपना अभियान शुरू किया, उस समय वे बहुत सारे मुसलमानों को आकर्षित नहीं कर पाए.
उस साल दान करने वाले 117 लोगों में से सिर्फ 50 मुसलमान थे. पिछले साल उन्होंने लगभग 95,000 रुपये एकत्र किए, जो पिछले वर्षों की तुलना में कम है, लेकिन दो लॉकडाउन से वित्तीय झटका लगने की उम्मीद से अधिक था.
पैगंबर शेख कहते हैं, कुरान कहता है कि मनुष्य को उसका त्याग करना चाहिए जो हमारे दिल को प्रिय है. एक जानवर जिसे कुर्बानी के उद्देश्य से खरीदा गया है वह हमारे दिलों के सबसे करीब कैसे हो सकता है ?
वे कहते हैं, यह आयत पवित्र कुरान मेरे इस विश्वास पर मुहर लगाता है कि न तो उनका मांस अल्लाह तक पहुंचेगा और न ही उनका खून, लेकिन जो उस तक पहुंचता है वह आपकी ओर से भक्ति है.
पैगंबर शेख कहते हैं कि धर्म में इरादा सबसे महत्वपूर्ण है. वह सवाल करते हैं- क्या अधिक महत्वपूर्ण है , मटन खाना या गरीबी से बाहर निकलना? जो लोग गरीब घरों में मटन बांटने जाते हैं,
उन्हें यह जानकर आश्चर्य होगा कि इनमें से कुछ परिवार अपने बच्चों के स्कूल के लिए आवश्यक आधा दर्जन कॉपी भी नहीं खरीद सकते. बेशक, हम गरीबी को मिटा नहीं सकते, लेकिन एक गरीब परिवार को अपने बच्चों को शिक्षित करने में सक्षम बनाकर, हम मदद तो कर ही सकते हैं.
दोस्तों का साथ
कहा जाता है कि इंसान सफर की शुरुआत अकेले करता है ,लेकिन फिर लोग उससे जुड़ जाते हैं और कारवां बन जाता है. कुछ ऐसा ही पैगंबर शेख के साथ हुआ. उनके शैक्षिक अभियान में दो मित्र शामिल हुए. जिन्होंने वित्तीय बलिदान के अभियान को आगे बढ़ाने में मदद की. जरूरतमंद संस्थाओं के सहयोग से बच्चों को किताबें बांटना शुरू किया.
पैगंबर शेख के साथी रफीक शेख कहते हैं, हम किसी से भी कुर्बानी छोड़ने के लिए नहीं कहते. हम सिर्फ सुझाव देते हैं कि एक जानवर पर इतना सारा पैसा खर्च करने के बजाय, क्यों न इसमें से कुछ उन लोगों के लिए रखा जाए जिन्हें इसकी आवश्यकता है?
उनके अन्य कहते हैं कि जब आप कुछ अलग करते हैं, तो आपको विरोध का सामना करना पड़ता है. बेहतर रणनीति यह है कि ऐसे तत्वों को नजरअंदाज किया जाए. इस सोच के विरोध पर ध्यान दिया जाए तो जीवन बहुत अलग होगा. इस दौरान हमें धमकियां भी मिलीं.
पैगंबर शेख का विचार है कि हमें अपने त्योहारों को मनाने के तरीके को बदलना होगा. न कि इसकी भावना, इसके इरादे और उद्देश्य को. अगर हम अनावश्यक खर्च को शिक्षा पर खर्च करें तो समाज बदलेगा. अपने शैक्षिक अभियान के चलते उन्हें समाज में काफी विरोध का सामना करना पड़ा, उन्हें धमकी भरे फोन भी आए.
उनका कहना है कि मुसलमानों को एक शैक्षिक आंदोलन का नेतृत्व करना होगा जैसा कि सर सैयद अहमद खान ने किया था. उन्होंने बिना किसी की चिंता किए शिक्षा से समझौता नहीं किया.