किताब 'द एशिएंट हिस्ट्री ऑफ इंडिया' विश्व पुस्तकालयों को गिफ्ट करना चाहते हैं पीएम मोदीः एनएसए डोभाल

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 09-04-2024
National Security advisor Ajit Doval releasing History of Ancient India. Gurumurthy (Right) and Dr Arvind Gupta (left) are also with him
National Security advisor Ajit Doval releasing History of Ancient India. Gurumurthy (Right) and Dr Arvind Gupta (left) are also with him

 

तृप्ति नाथ/नई दिल्ली

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने आज राष्ट्रवादी थिंक टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन द्वारा परिकल्पित पुस्तक 'द एशिएंट हिस्ट्री ऑफ इंडिया' के विमोचन पर संतोष व्यक्त किया.
 
11 खंडों वाली इस श्रृंखला की संकल्पना वीआईएफ ने 2009 में संपूर्ण भारतीय सभ्यता को समेटने और भारतीय इतिहास की प्रामाणिक और सर्वसमावेशी समझ प्रस्तुत करने के प्रयास के रूप में की थी.
 
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमेरिटस दिलीप के. चक्रवर्ती द्वारा संपादित इस खंड को आर्यन बुक्स इंटरनेशनल द्वारा प्रकाशित किया गया है. वीआईएफ ने स्वीकार किया कि एनएसए डोभाल के प्रोत्साहन और समर्थन से इस परियोजना को मूर्त रूप दिया गया.
 
इस महत्वाकांक्षी परियोजना की खास बात यह है कि इसका उद्देश्य इतिहास को फिर से लिखना नहीं है, बल्कि इसे लिखने के लिए मूल स्रोतों पर जाना है.
 
मंगलवार को यहां वीआईएफ सभागार में एक कार्यक्रम में बोलते हुए डोभाल ने सभी योगदानकर्ताओं और वीआईएफ को बधाई दी. 
 
उन्होंने कहा, “यह कोई अंत नहीं है. यह एक लक्ष्य है और इसका अंतिम उद्देश्य साझा विरासत की भावना पर आधारित राष्ट्र का निर्माण करना है, जिसमें अपने पूर्वजों और अतीत की उपलब्धियों पर गर्व हो और भविष्य के लिए एक दृष्टिकोण हो. और क्या किया जा सकता है? यह एक ऐसी चीज है जिस पर वीआईएफ के लोगों को लगातार विचार करना चाहिए.'' 
 
उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद के सदस्य वे लोग हैं जो अपने इतिहास, अपने अतीत की उपलब्धियों और भविष्य के लिए एक साझा दृष्टिकोण को साझा करते हैं. ''जो लोग इस पर विश्वास करते हैं वे एक राष्ट्र बनाते हैं.
 
मेरा हीरो आपका खलनायक नहीं हो सकता...विदेशी प्रभुत्व राष्ट्रीयता की भावना विकसित न करने के लिए जिम्मेदार था. संस्थाओं को नष्ट करने का जानबूझकर प्रयास किया गया.
 
नालंदा और तक्षशिला ऐसी संस्थाएं थीं जिन्हें निशाना बनाया गया और नष्ट कर दिया गया.'' एनएसए ने कहा कि इस परियोजना की कमी यह रही है कि चूंकि यह एक बड़ी मात्रा है, इसलिए इसे उतना प्रसारित नहीं किया जा सका जितना हम चाहते थे. ''जब प्रधानमंत्री मोदी को यह खंड भेंट किया गया और मैंने उन्हें इसके बारे में बताया, तो वे बहुत खुश हुए.
 
वे इसे प्राप्त करना चाहते थे और यह खंड उनके पुस्तकालय में प्रमुख स्थान रखता है.
 
उन्होंने कहा कि वह एक विचार रखना चाहते हैं कि इसे दुनिया के सभी पुस्तकालयों को दान कर दिया जाना चाहिए. यह विचार अभी भी है और इसे किसी दिन पूरा किया जाएगा.''
 
जब हमने इस विचार के बारे में सोचा, तो हमें यकीन नहीं था कि हम आगे कैसे बढ़ेंगे या क्या हम इसे पूरा भी कर पाएंगे,'' डोभाल ने स्पष्ट रूप से कहा.
 
एनएसए ने कहा कि भारतीय इतिहास की निरंतरता और प्राचीनता ऐसी चीज है जिस पर कोई सवाल नहीं उठाता. “इतिहास आपकी पहचान के लिए महत्वपूर्ण है. ‘जब स्वामी विवेकानंद युवाओं को संबोधित कर रहे थे, तो उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि युवा प्रामाणिक इतिहास लिखें. विचार यह था कि हम खुद को गौरवान्वित महसूस करें.''
 
एनएसए ने कहा कि कहानी यह सिखाई गई है कि भारतीय इतिहास पर किसी भी पुस्तक का पहला अध्याय सिकंदर के बारे में है. इसे पूर्व पर पश्चिम की जीत के रूप में पेश किया जाता है.
 
कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विलियम जोन्स, जो बाद में संस्कृत के विद्वान बन गए, ने कहा कि पाली साहित्य में उन्हें कहीं भी सिकंदर का उल्लेख नहीं मिला...लेकिन आप इसे इतना बड़ा पहाड़ बना देते हैं मानो महान सिकंदर के आने से विश्व इतिहास बदल गया हो.''
 
डोभाल ने प्रोफेसर चक्रवर्ती और माखनलाल का आभार व्यक्त किया जिन्होंने कड़ी मेहनत की और विद्वानों के विशाल समूह ने इन उच्च गुणवत्ता वाले शोध पत्रों को तैयार किया.''
 
उन्होंने कहा कि एक बात जो शुरू से ही बहुत स्पष्ट थी, वह यह थी कि वे चाहते थे कि यह खंड पूरी तरह से वस्तुनिष्ठ हो. "जब हमने परियोजना शुरू की, तो हमने कहा कि इसे पूरी तरह से प्रामाणिक होने दें. हम प्रचार सामग्री तैयार नहीं करना चाहते.''
 
डोभाल ने कहा कि व्यक्तियों को यह मुश्किल लग सकता है, लेकिन विश्वविद्यालय के पुस्तकालय 11-खंडों की श्रृंखला खरीद सकते हैं. मीडिया को इसके बारे में बात फैलानी चाहिए.
 
हार्डबाउंड वॉल्यूम की कीमत 30,000 रुपये और पेपरबैक की कीमत 14,900 रुपये है. धन्यवाद ज्ञापन करते हुए अरविंद गुप्ता ने सुझाव दिया कि 11 खंडों को एक खंड में संक्षिप्त किया जा सकता है ताकि इस ट्विटर युग के लोग भी ज्ञान से लाभान्वित हो सकें.
 
भारतीय आख्यान के निर्माण की आवश्यकता है. ऐसे खंडों को पढ़ने से हमें इस आख्यान के निर्माण का आत्मविश्वास मिलेगा. भारत एक सभ्य राज्य है. हमें युवाओं को भी संगठित करना चाहिए. यूजीसी को भी राजी किया जाना चाहिए. ये खंड इन संस्थानों के लिए एक चेतावनी भी होने चाहिए. शुरुआती तीन खंडों का विमोचन भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने किया था.
 
वीआईएफ के अध्यक्ष गुरुमूर्ति ने कहा कि दिलीप चक्रवर्ती ने भारतीय इतिहास की बहुआयामी, सर्व समावेशी समझ प्रस्तुत करने के लिए धैर्य और संयम के साथ परियोजना का नेतृत्व किया. “हमने कभी अपना इतिहास नहीं लिखा. हम केवल दूसरों द्वारा लिखे गए इतिहास को पढ़ते हैं. एक राष्ट्रवादी थिंक टैंक के रूप में, हमने ऐसा करने की इच्छा व्यक्त की
 डोभाल ने इसे आगे बढ़ाया. यह संकलित करने के लिए असाधारण जानकारी थी. यह वास्तव में एक उपलब्धि है.”
 
वीआईएफ के निदेशक डॉ. अरविंद गुप्ता ने बताया कि उन्होंने 2009 में इस परियोजना की शुरुआत की थी. उन्होंने बताया कि इसका उद्देश्य तीन गुना था: पश्चिमी विद्वानों द्वारा भारतीय इतिहास को लेकर फैलाई गई विकृतियों को दूर करना, जिन्होंने जानबूझकर भारत की उपलब्धियों को नजरअंदाज किया, एकतरफा विवरण दिया और भारतीयों की एक पीढ़ी में हीन भावना पैदा की. ये खंड उन गलत धारणाओं को सही करते हैं.
 
इस खंड का विचार कई साल पहले गुरुमूर्ति ने तैयार किया था और श्री डोभाल ने इसे मूर्त रूप दिया. डोभाल ने पहले खंड की प्रस्तावना लिखी थी.'' उन्होंने पुस्तक लिखने के लिए 80 विद्वानों को जुटाने के लिए प्रोफेसर चक्रवर्ती और माखनलाल को धन्यवाद दिया. "हमें उम्मीद है कि ये खंड विद्वानों के लिए संदर्भ पुस्तकों के रूप में काम करेंगे." इस अवसर पर बोलते हुए, पुस्तक के संपादक प्रोफेसर चक्रवर्ती ने कहा कि श्रृंखला की यात्रा अपने तरीके से दिलचस्प रही है. "मैं सभी योगदानकर्ताओं का आभारी हूं. यह बहुत साहसिक कदम था. मुझे सही मायने में पूरी आजादी मिली. हमारे खंडों की योजना प्राचीन भारतीय पुरातत्व और इतिहास के अलग-अलग लेकिन जुड़े हुए विषयों के अनुसार बनाई गई थी, जिसकी शुरुआत प्रागैतिहासिक पृष्ठभूमि पर एक खंड से हुई थी.
 
अंतिम खंड दक्षिण-पूर्व, पूर्व, मध्य और पश्चिम एशिया, अफ्रीका के पूर्वी तट और भूमध्यसागरीय दुनिया सहित दुनिया के साथ प्राचीन भारत के अंतर्संबंधों पर केंद्रित है.'' गुरुमूर्ति ने आवाज द वॉयस को बताया कि विचार भारत के इतिहास का सबसे सच्चा और प्रामाणिक संस्करण प्रस्तुत करना था.
 
इस खंड को विभिन्न संस्थानों के माध्यम से समय-समय पर खुदरा बिक्री करनी होगी. "यह एक शिक्षक की पुस्तक और एक शिक्षण और एक शोध संस्थान की पुस्तक है.
 
हमने एक संदर्भ पुस्तक बनाई है. इस खंड को तैयार करने में अस्सी विद्वानों को 12 वर्षों में समय लगा है. हमने वास्तव में पुस्तक के निर्माण में शामिल लागत की गणना नहीं की है. इस पुस्तक को इस तरह से उपहार में दिया जाना चाहिए कि इसका मूल्य हो."