आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरे दिन-ब-दिन हमारी धरती को और अधिक असुरक्षित बना रहे हैं। इस संकट का सबसे बड़ा केंद्र बन चुके हैं शहर—जो न केवल तापमान को बढ़ा रहे हैं, बल्कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 67 से 72 प्रतिशत तक का योगदान भी दे रहे हैं. अब समय आ गया है कि इन शहरी क्षेत्रों को समाधान का केंद्र भी बनाया जाए.
ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न के विशेषज्ञों—अन्ना हर्लीमैन और सारेह मूसावी—के नेतृत्व में किए गए नए अध्ययन में यह बताया गया है कि कैसे हमारे शहरों के निर्माण, प्रबंधन और विकास के तरीके जलवायु संकट को या तो बढ़ा सकते हैं या उसे रोक सकते हैं.
जलवायु परिवर्तन की शहरी जड़ें
शहरों में बाढ़, आग और सूखे जैसी घटनाएं न केवल मानवीय स्वास्थ्य और सुरक्षा को खतरे में डालती हैं, बल्कि घरों, व्यवसायों और बीमा लागतों को भी प्रभावित करती हैं. यह इसलिए और भी गंभीर है क्योंकि पूरी दुनिया में चार अरब से अधिक लोग शहरों में रहते हैं। अकेले ऑस्ट्रेलिया में ही 90% आबादी शहरी क्षेत्रों में बसती है.
शहरी नियोजन में अब यह अनिवार्य हो गया है कि हर इमारत और निर्माण जलवायु जोखिमों को ध्यान में रखकर किया जाए, लेकिन वर्तमान में मौजूद नीतियां इस दिशा में पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं हैं. हालिया शोध से यह सामने आया कि कई स्थानीय सरकारी निकायों में शमन और अनुकूलन पर बहुत सीमित कदम उठाए जा रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया सरकार द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय आवास समझौते के तहत 2029 तक 10 लाख से अधिक नए घर बनाए जाएंगे. यह सुनहरा मौका है कि इन घरों को जलवायु-उत्तरदायी और सतत विकासशील ढंग से डिजाइन किया जाए.
16 प्राथमिकता वाले कदम
अध्ययन में विभिन्न शहरी पेशेवरों—वास्तुकारों, नियोजकों, डिज़ाइनरों और संपत्ति सलाहकारों—के साक्षात्कार के आधार पर 16 ऐसे क्षेत्र पहचाने गए हैं जहां तुरंत कार्रवाई की जरूरत है. इनमें प्रमुख हैं:
परियोजना के प्रारंभिक चरण में जलवायु जोखिमों की पहचान
कम-प्रभाव वाली सामग्रियों और उत्पादों का चयन
निर्माण के दौरान पर्यावरणीय रूप से हानिकारक विकल्पों को रोकना
निर्माण के बाद उपयोगकर्ताओं की भागीदारी से प्रभावी संचालन और मूल्यांकन
भवनों के पुन: उपयोग और नवीनीकरण को प्राथमिकता देना
निर्माण के दौरान और बाद की चुनौतियां
अक्सर निर्माण प्रक्रिया में सबसे बड़ी बाधा लागत होती है. कई बार यदि जलवायु सुरक्षा को कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं किया गया हो, तो उसे बाद के चरणों में हटा दिया जाता है. प्रतिस्पर्धी निर्माण उद्योग में निवेश पर रिटर्न नज़र आने तक डेवलपर्स जलवायु हित में कदम उठाने से हिचकिचाते हैं.
निर्माण के बाद, इमारतों की सही देखरेख और मूल्यांकन उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उनका निर्माण। पुरानी इमारतों को गिराने के बजाय पुन: उपयोग और मरम्मत की संस्कृति को बढ़ावा देना ज़रूरी है.
सामूहिक और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता
अब समय आ गया है कि शहरी नीति, व्यवसायिक प्रक्रियाओं और सरकारी फैसलों में जलवायु कार्रवाई को मुख्यधारा में लाया जाए। इसके लिए जरूरी है कि सभी स्तरों पर—स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय सरकारें—नीतियों की समीक्षा करें और उन्हें सशक्त बनाएं. पेशेवर एजेंसियों को अपनी आंतरिक प्रक्रियाओं में भी यह सुनिश्चित करना होगा कि हर निर्णय जलवायु की दृष्टि से समर्पित हो.
शहर केवल समस्या नहीं हैं—वे समाधान का भी रास्ता बन सकते हैं. स्मार्ट नियोजन, निर्माण में नवाचार, नीति का समर्थन, और सामाजिक जागरूकता—इन चारों पहियों पर सवार होकर हम अपने शहरों को जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला, सुरक्षित और टिकाऊ बना सकते हैं.
अगर हम अब भी नहीं चेते, तो भविष्य की पीढ़ियों को एक असहनीय और अनियंत्रित पर्यावरण की कीमत चुकानी पड़ेगी. समय की मांग है—हर ईंट, हर खिड़की, हर सड़क जलवायु समाधान का हिस्सा बने.