एक सपना, एक संकल्प: पुलवामा को बदलने निकला मुदस्सिर डार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 13-09-2025
One dream, one resolve: Mudassir Dar set out to change Pulwama
One dream, one resolve: Mudassir Dar set out to change Pulwama

 

दानिश अली/श्रीनगर

वर्षों से, "पुलवामा" शब्द डर, आक्रोश और त्रासदी का पर्याय था.आतंकवाद, आतंकियों के बड़े जनाजे और 2019के आत्मघाती हमले से जुड़ा यह नाम एक ऐसे कलंक को ढो रहा था जिसे मिटाना लगभग असंभव लगता था.लेकिन उसी धरती से अब उम्मीद और लचीलेपन की एक नई कहानी जन्म ले रही है.इस बदलाव का नेतृत्व कर रहे हैं मुगलपुरा गाँव के 30वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता मुदस्सिर डार, जिनका मिशन कश्मीर के युवाओं को अलगाववाद, ड्रग्स और हिंसा के चंगुल से निकालकर शांति और प्रगति की राह पर लाना है.

एक ऐसे क्षेत्र में जन्मे और पले-बढ़े जिसे अक्सर आतंकवाद के गढ़ के रूप में देखा जाता है, मुदस्सिर का सफर उनके स्कूली दिनों में ही शुरू हो गया था, जब उन्होंने विश्व स्काउट आंदोलन में कदम रखा.

मानवता की सेवा की शपथ लेकर, उन्होंने इसे अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया, जिसके लिए उन्हें प्रतिष्ठित राष्ट्रपति पुरस्कार (राष्ट्रपति अवार्ड) और राज्यपाल पुरस्कार (राज्य पुरस्कार) से सम्मानित किया गया.

उनके जीवन का निर्णायक मोड़ 2014में आया, जब विनाशकारी बाढ़ ने पूरी घाटी को तबाह कर दिया.जहाँ कई लोग असहाय थे, मुदस्सिर ने स्वयंसेवकों को संगठित किया और पुलवामा और शोपियां में राहत कार्यों का नेतृत्व किया.

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उन्होंने भोजन, कंबल और चिकित्सा सहायता प्रदान की.यह बड़े पैमाने पर सामाजिक सक्रियता का उनका पहला अनुभव था, जिसने उनके इस विश्वास को और मजबूत किया कि युवा-नेतृत्व वाली पहलें लोगों तक पहुँचने में सरकार से भी तेज हो सकती हैं.

लेकिन 2019 का पुलवामा आतंकी हमला, जिसमें 44 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए, ने उनके जीवन की दिशा हमेशा के लिए बदल दी.मुदस्सिर याद करते हैं कि हमले के ठीक बाद, जब वह दिल्ली में अपने बीमार चचेरे भाई के साथ थे, तो उन्हें केवल इसलिए होटल में कमरा देने से मना कर दिया गया क्योंकि उनके आधार कार्ड पर पुलवामा का पता था.

वे कहते हैं,"उस पल ने मुझे हमेशा के लिए बदल दिया." "अगर कुछ लोगों ने आतंकवाद का रास्ता चुना है, तो क्यों पूरे जिले को उस कलंक को ढोना पड़े? उस दिन मैंने प्रण लिया कि मैं दुनिया की नजरों में पुलवामा की छवि बदलकर रहूँगा."

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बंदूक के खिलाफ क्रिकेट और तिरंगे की ताकत

यह प्रण जल्द ही कार्रवाई में बदल गया.मुदस्सिर ने कश्मीर घाटी के उन गाँवों में युवाओं की काउंसलिंग शुरू की जहाँ आतंकियों का प्रभाव था.लेलहर जैसे गाँवों में, जो आतंकियों के जनाजों के लिए बदनाम था, उन्होंने एक दुखी युवा को आतंकवाद में शामिल होने से रोका.

यह युवक अपनी बहन को क्रॉसफायर में खोने के बाद हथियार उठाने की कगार पर था.मौलवियों, मनोवैज्ञानिकों और स्थानीय पुलिस के साथ लगातार बातचीत के माध्यम से, मुदस्सिर ने उन्हें समझाया कि जिहाद का मतलब जान लेना नहीं, बल्कि जान बचाना है.आज, वह युवक जम्मू-कश्मीर पावर डेवलपमेंट विभाग में कार्यरत है.

मुदस्सिर गर्व से कहते हैं कि उन्होंने 17 युवाओं को बंदूक उठाने से बचाया है.वे धीरे से कहते हैं,"कुरान कहता है कि एक जान बचाना पूरी मानवता को बचाने जैसा है." "अगर मैंने जीवन में और कुछ नहीं भी किया, तो यह पर्याप्त होगा."

खाली दिमाग को शैतान का घर मानते हुए, मुदस्सिर ने खेल को शांति का माध्यम बनाया.लेलहर, करीमाबाद और गुलजारपोरा जैसे गाँवों में, जिन्हें कभी "ब्लैकलिस्टेड" क्षेत्र कहा जाता था, क्रिकेट टूर्नामेंट आयोजित किए गए.ये वही मैदान थे जहाँ कभी आतंकियों के जनाजे निकलते थे, आज हँसी, प्रतियोगिता और एकता के गवाह बन गए हैं.

लेलहर में, मुदस्सिर ने ऐतिहासिक रूप से पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराने का आयोजन किया.वे याद करते हैं,"पहली बार, मैदान पर 125तिरंगे लहराए गए थे."हजारों ग्रामीण, जो कभी भारतीय राज्य को संदेह की नजर से देखते थे, स्वेच्छा से आगे आए."वे दिखाना चाहते थे कि वे भारत का हिस्सा हैं, कि पुलवामा सिर्फ त्रासदी का शीर्षक नहीं, बल्कि लचीलेपन की एक कहानी है."

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पीड़ितों के लिए न्याय और एक नए कश्मीर का सपना

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ, मुदस्सिर नशीले पदार्थों की लत के खिलाफ भी एक और लड़ाई लड़ रहे हैं, जो घाटी में युवा जीवन को खत्म कर रही है.उन्होंने जागरूकता अभियान, युवा परामर्श सत्र और पुनर्वास की व्यवस्था की है.

मुदस्सिर ने हमेशा अलगाववाद और राष्ट्र-विरोधी ताकतों का मुकाबला किया है.उन्होंने राष्ट्रीय समाचार पत्रों में अपने लेखों के माध्यम से एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, जो आतंकवाद को महिमामंडित करने वाले दशकों के प्रचार के खिलाफ है.उनके कार्य ने उन आम कश्मीरियों को सशक्त बनाया है जो बिना डर के जीवन जीना चाहते हैं.

मुदस्सिर ने आतंकवाद के पीड़ितों को न्याय दिलाने की पहल का नेतृत्व भी किया.उन्होंने व्यक्तिगत रूप से लगभग 400परिवारों तक पहुँच बनाई और आतंकवाद के करीब 1,000पीड़ितों की पहचान की.ये परिवार दशकों तक खामोश रहे, डर के साए में जिए और खुद को अलग-थलग महसूस किया.

मुदस्सिर के अथक प्रयासों का परिणाम 29जून, 2025को एक महत्वपूर्ण क्षण में सामने आया, जब दक्षिण कश्मीर के 95परिवारों ने अनंतनाग में सीधे उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के साथ अपनी पीड़ा साझा की."यह मेरे जीवन का सबसे खुशी का दिन था," मुदस्सिर ने याद करते हुए कहा, जब कई लोग उपराज्यपाल के आश्वासन पर रो पड़े.

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प्रशासन ने हर पीड़ित परिवार तक पहुँचने, उन्हें न्याय, नौकरी और पुनर्वास प्रदान करने का वादा किया.इसके बाद, जिलों में विशेष प्रकोष्ठ स्थापित किए गए और कई पीड़ितों के परिजनों को नियुक्ति पत्र सौंपे गए.

मुदस्सिर के आलोचक, खासकर अलगाववादी समर्थक, उन्हें "मुखबिर" कहते हैं, लेकिन वे इसे नजरअंदाज कर देते हैं."जब मैं देखता हूँ कि वही लड़के जो कभी मेरा मजाक उड़ाते थे, अब मुझे 'मुदस्सिर भैया' कहकर मार्गदर्शन मांगते हैं, तो मुझे पता चलता है कि मैं सही रास्ते पर हूँ." मुदस्सिर का मिशन अभी खत्म नहीं हुआ है, लेकिन हर छोटी जीत, हर बचाई गई जान, और शांति के लिए हर रैली एक बेहतर कश्मीर की ओर बढ़ते कदम हैं.