आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली
दिल्ली की सर्द हवा में उर्दू की गर्माहट घुलने लगी है और इसका सबसे बड़ा कारण है जश्न-ए-रेख़्ता 2025, जो अब अपने दसवें साल में प्रवेश करते हुए राजधानी को एक बार फिर अदब, कला और मोहब्बत की मनमोहक महफ़िल में बदलने वाला है। पिछले एक दशक में यह महज़ एक फेस्टिवल नहीं रहा, बल्कि उर्दू भाषा की रूह, उसकी तहज़ीब और उसके अहसास का वैश्विक उत्सव बन चुका है। रेख़्ता फ़ाउंडेशन के फ़ाउंडर संजीव सराफ़ का यह कहना बिल्कुल ठीक लगता है कि रेख़्ता आज लाखों दिलों में ज़िंदा है और हर साल अपने लिए एक नया माइलस्टोन तय करता है।
5 से 7 दिसंबर तक नई दिल्ली के बंसेरा पार्क में दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी के साथ मिलकर आयोजित यह तीन दिवसीय महोत्सव फिर एक बार उन दिलों को एक मंच पर लाएगा, जो उर्दू से इश्क़ करते हैं और उसकी खूबसूरती में अपनी पहचान ढूंढ़ते हैं। इस बार 300 से अधिक कलाकार और 35 से ज़्यादा सेशन पाँच अलग मंचों पर फैले होंगे, जहाँ महफ़िल, कविता, संगीत, नाटक और संवाद मिलकर एक अनोखा क्रिएटिव अनुभव पेश करेंगे।
रेख़्ता फ़ाउंडेशन की ट्रस्टी और क्रिएटिव डायरेक्टर हुमा खलील के अनुसार, पिछले दस वर्षों में जश्न-ए-रेख़्ता कविता, संगीत, साहित्य और फ़ाइन आर्ट्स की संपूर्ण दुनिया को समेटने वाला सबसे बड़ा उर्दू उत्सव बन गया है। यह सिर्फ़ एक फ़ेस्टिवल नहीं, बल्कि रेख़्ता के सालभर के उस काम का सार्वजनिक स्वरूप भी है, जिसमें उर्दू किताबों का प्रकाशन, उर्दू की विशाल डिजिटल लाइब्रेरी Rekhta.org, मैन्युस्क्रिप्ट्स का डिजिटाइज़ेशन, सूफ़ी और साहित्यिक विरासत का संरक्षण और उर्दू शिक्षा के नए साधन शामिल हैं।
2015 में शुरू हुई यह पहल आज दुनिया का सबसे बड़ा वैश्विक उर्दू आंदोलन बन चुकी है, जिसने लाखों लोगों को भाषा के और करीब ला दिया है। इसी कड़ी में रेख़्ता फ़ाउंडेशन ने जश्न-ए-रेख़्ता दुबई 2026 की भी घोषणा की है, जो 14 और 15 फ़रवरी को आयोजित होगा।
संजीव सराफ़ की यह यात्रा इंटरनेट पर उर्दू शायरी को एक वेबसाइट पर एकत्रित करने से शुरू हुई थी। शायद वे खुद भी अनुमान नहीं लगा सकते थे कि यह बीज एक दिन इतना विशाल वृक्ष बन जाएगा। रेख़्ता ने टेक्नोलॉजी को अपनाया, मोबाइल ऐप बनाए, ऑडियो-विज़ुअल सामग्री तैयार की और उर्दू को घर-घर नहीं, बल्कि हाथ-हाथ पहुँचा दिया।
डिजिटल ज़माने में भाषा को लोकप्रिय बनाने का यह मॉडल अपने आप में मिसाल बन गया। जश्न-ए-रेख़्ता ने इस डिजिटल असर को ज़मीन पर उतारकर सोने पर सुहागा कर दिया—यह फेस्टिवल अब उर्दू प्रेमियों के लिए एक ऐसी वार्षिक दावत बन चुका है, जिसे लोग शिद्दत से इंतज़ार करते हैं। यह एक ऐसा मेला है जहाँ शायरी, संगीत, कहानियाँ, यादें, चाय की खुशबू और बातचीत की मिठास एक साथ सांस लेती हैं।
जश्न-ए-रेख़्ता 2025 में भी कई बड़े आयोजन दर्शकों को अपनी ओर खींचेंगे। गुलज़ार इस बार "नशीली ख़ुशबू का सफ़र" नामक एक खास बातचीत में प्यार, जुदाई और ज़िंदगी की फ़लसफ़ी पर चर्चा करेंगे, उनके साथ मंच पर होंगी दिव्या दत्ता। सुखविंदर सिंह रंग-ए-मस्जिद में अपनी दमदार आवाज़ से समां बाँधेंगे, तो सलीम-सुलेमान “साज़ और समा” के ज़रिए सूफ़ियाना रंग घोलेंगे।
साहिर लुधियानवी को समर्पित “दिल अभी भरा नहीं” में जावेद अख्तर, शंकर महादेवन और प्रतिभा सिंह बघेल जैसी हस्तियाँ शिरकत करेंगी। इसके अलावा रुशिल रंजन और आबी संपा का विश्वविख्यात ऑर्केस्ट्रल कव्वाली प्रोजेक्ट पहली बार भारत में प्रस्तुत होगा, जबकि हुमा खलील का "रंग और नूर" उर्दू शायरी और सिनेमा की जुगलबंदी को म्यूज़िकल ड्रामा के रूप में प्रस्तुत करेगा। दुनिया भर के शायर और गीतकार भी mushaira rekhta और rooh-e-majroo के हिस्से के रूप में अपने काम पेश करेंगे।
इसके साथ ही रेख़्ता बुक बाज़ार में दुर्लभ और क्लासिक किताबें, रेख़्ता बाज़ार में हैंडीक्राफ्ट, और हाउस ऑफ़ टेस्ट में विभिन्न पकवान आगंतुकों को मोह लेंगे। रेख़्ता पैवेलियन में आधुनिक उर्दू सीखने के टूल्स और डिजिटल संसाधन लोगों को भाषा से और गहरे जुड़ने का अवसर देंगे। हर शाम बंसेरा पार्क और यमुना के किनारों पर होने वाला लाइट और साउंड शो रोशनी, कविता और संगीत को एक जादुई अनुभव में बदल देगा जो उर्दू की रूह को फिर से जगा देगा।