समाज से सवाल: क्या बुज़ुर्गों की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ किस्मत पर छोड़ दी गई है ?

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 04-12-2025
For 20 years, an elderly couple has lived without shelter and without support – holding each other's hands.
For 20 years, an elderly couple has lived without shelter and without support – holding each other's hands.

 

आवाज द वॉयस/ नागपुर

आमतौर पर साठ साल की उम्र पार करने के बाद, बुज़ुर्ग जोड़ों को अपने बच्चों का सहारा होता है और घर के आंगन में पोते-पोतियों का प्यार मिलता है। लेकिन महाराष्ट्र के नागपुर शहरमें एक जोड़ा ऐसा है जो इस प्यार से महरूम है। इनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की हक़ीक़त बिल्कुल अलग है। बच्चे होने के बावजूद, इस बुज़ुर्ग जोड़े को पिछले बीस सालों से अपनी ज़िंदगी का सफ़र एक पुराने तीन पहिया ऑटो-रिक्शा पर तय करना पड़ रहा है।

एक-दूसरे के साथ धूप, हवा और बारिश झेलते हुए, वे जो कुछ भी मांगकर मिल जाता है, उसी पर ज़िंदा हैं। उस जोड़े का नाम है रहीम भाई और उनकी पत्नी अनसना। अगर उनसे मिलना हो या बात करनी हो, तो किसी न किसी चौक पर उनका रिक्शा खड़ा मिल जाएगा।

भले ही यह कहानी किसी फ़िल्म जैसी लगती हो, लेकिन रहीम भाई और अनसना की सड़क वाली ज़िंदगी में झांककर देखें, तो पति-पत्नी के रिश्ते की मज़बूत डोर नज़र आती है। एक-दूसरे के लिए ज़िम्मेदारी और फ़र्ज़ का एहसास ही उनकी ज़िंदगी बयां करता है।

पैरों से लाचार होने की वजह से पत्नी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकतीं। लेकिन रहीम भाई बिना किसी शिकन के, अपने दोनों हाथों का सहारा देकर उन्हें रिक्शा से नीचे उतारते हैं। वे रिक्शा के ऊपर रखी व्हीलचेयर उतारते हैं और उन्हें उसमें बैठाते हैं। पत्नी को कोई तकलीफ़ न हो, इसका पूरा ख़्याल रखते हुए वे दिन भर रिक्शा में पत्नी को लेकर शहर के धंतोली, गोरक्षण और जनता चौक जैसे इलाक़ों में लोगों से मदद मांगते नज़र आते हैं।

अगर कुछ मिल गया तो पेट भर खाना हो जाता है, नहीं तो दिन भूखे पेट ही गुज़र जाता है। घर या छत जैसा कोई ठिकाना नहीं है। तीन पहियों पर ही उनकी बची-कुची ज़िंदगी लोगों की दी हुई मदद के सहारे चल रही है।

समाज के सामने एक सवाल...

ज़िंदगी के इस सख़्त संघर्ष के बावजूद, आस-पास के लोगों को जो बात सबसे ज़्यादा छू जाती है, वह है पति-पत्नी का एक-दूसरे पर प्यार। उम्र के इस पड़ाव पर भी, बदक़िस्मती से जूझते हुए, रहीम भाई और अनसना का एक-दूसरे पर भरोसा और साथ ही है जो ज़िंदगी के बोझ को हल्का कर रहा है। लेकिन, रहीम भाई और अनसना की यह दुख भरी कहानी समाज के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा ज़रूर करती है।

सात जन्मों का साथ है...

सफ़ेद लंबी दाढ़ी और घुटनों तक लुंगी पहने रहीम भाई ऊपर से भले ही सख़्त दिखते हों, लेकिन अंदर से उनका दिल बहुत नरम है। दोनों की ज़िंदगी मुश्किल है, लेकिन वे एक-दूसरे का सहारा बनकर जी रहे हैं। अनसना की लाचारी की वजह से उनके सारे छोटे-बड़े काम रहीम भाई करते हैं और पत्नी की सेवा में ही सुकून ढूंढते हैं। वे कहते हैं कि बच्चों को तो भूल गए, लेकिन पत्नी के चेहरे पर हंसी देखकर ही जीने की ताक़त मिलती है। मज़ाकिया अंदाज़ में वे कहते हैं, "सात जन्मों का साथ है, निभाना तो पड़ेगा..."