आवाज द वाॅयस/ शारजाह/ अजमेर
अजमेर शरीफ़ की 26वीं पीढ़ी के सज्जादानशीन और चिश्ती फ़ाउंडेशन के चेयरमैन हाजी सैय्यद सलमान चिश्ती तथा ऑस्कर विजेता संगीतकार ए.आर. रहमान इस वर्ष शारजाह में आयोजित प्रतिष्ठित तनवीर फ़ेस्टिवल के सबसे प्रमुख आकर्षण के केंद्र रहे। यह महोत्सव दुनिया भर में प्रकाश, आध्यात्मिकता, रचनात्मकता और सांस्कृतिक संवाद का उत्सव माना जाता है। इस बार भारत की सूफ़ी–भक्ति विरासत ने इस फ़ेस्टिवल को एक नई रूहानी दिशा दी, जिसमें सलमान चिश्ती और ए.आर. रहमान दोनों की उपस्थिति और योगदान अहम रहा।

हाजी सैय्यद सलमान चिश्ती फ़ेस्टिवल में विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस दौरान उनकी मुलाक़ात शारजाह की राजकुमारी हर हाइनेस शैखा बुदूर बिंत सुल्तान बिन मोहम्मद अल क़ासिमी से हुई। दोनों के बीच हुई गर्मजोशी भरी बातचीत में भारत की सूफ़ी–भक्ति परंपरा, लोक रहस्यवादी कला, चिश्ती सिलसिले की सेवा-भावना और सांस्कृतिक आध्यात्मिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के विषय पर विस्तृत विचार हुआ। हाजी चिश्ती ने राजपरिवार को 12वीं शताब्दी की पवित्र धरोहर—अजमेर दरगाह शरीफ़—का दौरा करने के लिए भी विशेष आमंत्रण दिया, जिसे भारत में प्रेम, अहिंसा, बहुलता और इंसानी एकता का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने कहा कि भारत और यूएई के बीच आध्यात्मिक संवाद आने वाले वर्षों में वैश्विक सद्भाव को नई दिशा दे सकता है।
फ़ेस्टिवल की सबसे मोहक और यादगार शाम वह थी जब ए.आर. रहमान ने मंच संभाला। उनकी प्रस्तुति ने दर्शकों को गहरे आध्यात्मिक अनुभव में डुबो दिया। रहमान की सूफ़ी रचनाओं ने तनवीर फ़ेस्टिवल के पूरे माहौल को एक रूहानी जगमगाहट से भर दिया। इसी कार्यक्रम में रहमान की पुत्री ख़तीजा रहमान के नेतृत्व में नए आध्यात्मिक संगीत
समूह ‘रूह-ए-नूर’ का शुभारंभ हुआ, जिसका उद्देश्य पवित्र ध्वनि, ध्यान, मनन और रूहानी संगीत पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय मंच तैयार करना है। इस संगीत प्रस्तुति में “ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा”, अमीर ख़ुसरो के ब्रज-भाषा कलाम और कई सूफ़ी–भक्ति रचनाएँ शामिल थीं, जिन्हें पर्वतीय पृष्ठभूमि पर नृत्यमग्न दरवेशों, अजमेर शरीफ़ की नूरानी छवियों और मंत्रमुग्ध कर देने वाले डिजिटल प्रोजेक्शन के साथ प्रस्तुत किया गया
। इस दृश्य और संगीत के संयोजन ने दर्शकों को भीतर तक झकझोर दिया और कई लोग इसे अपने जीवन का एक दुर्लभ आध्यात्मिक अनुभव बताते दिखे।
कार्यक्रम के दौरान हाजी सैय्यद सलमान चिश्ती ने अपने संबोधन में कहा कि तनवीर केवल एक फ़ेस्टिवल नहीं, बल्कि वह स्थान है जहाँ संस्कृतियाँ एक-दूसरे से मिलती हैं, दिल आपस में जुड़ते हैं और रोशनी का सार्वभौमिक संदेश साझा होता है।
उन्होंने कहा कि भारत की सूफ़ी परंपरा—विशेषकर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की शिक्षा—हमेशा दिलों को जोड़ने, नफ़रत को पिघलाने और इंसानियत को मज़बूत करने का पैग़ाम देती है। यही संदेश आज वैश्विक मंचों पर सबसे अधिक आवश्यक है।
तनवीर फ़ेस्टिवल में ए.आर. रहमान और सलमान चिश्ती की संयुक्त उपस्थिति ने भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को विश्व के सामने नई गरिमा के साथ प्रस्तुत किया। यह केवल एक संगीत प्रस्तुति या औपचारिक मुलाक़ात नहीं थी, बल्कि भारत–यूएई रिश्तों की रूहानी डिप्लोमेसी का उज्ज्वल क्षण था—जहाँ कला, संगीत और आध्यात्मिकता मिलकर मानवता के साझा भविष्य की ओर रोशनी बिखेर रहे थे।