तालाब में फंसे सात लोग, इमाम की बहादुरी ने बचाई जिंदगी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 02-12-2025
"Seven people trapped in a pond, Imam's bravery saved their lives

 

शतानंद भट्टाचार्य

सात लोगों की जान खतरे में पड़ गई थी, लेकिन एक मस्जिद के इमाम अब्दुल बशीर की तेजी और साहस ने उन्हें मौत के मुंह से बचा लिया। इस अद्भुत घटना ने न केवल स्थानीय लोगों का दिल छू लिया, बल्कि असम और त्रिपुरा के नागरिकों को भी इंसानियत का एक जीवंत उदाहरण दिखाया। अब्दुल बशीर का नाम स्थानीय निवासियों के बीच 'मानवता का प्रतीक' बन गया है।

यह घटना राष्ट्रीय राजमार्ग NH-8 के पास श्रीभूमि जिले के नीलांबजार इलाके में हुई। सोमवार सुबह लगभग 10.30 बजे, त्रिपुरा से आ रही एक एसयूवी अनियंत्रित होकर सड़क किनारे स्थित एक गहरे तालाब में जा गिरी। कार में सो रहे सभी यात्री अचानक पानी में फंस गए। ठंडी सर्दियों की सुबह में तालाब की सतह पर कोहरा छाया हुआ था, और पानी में डूबती कार ने एक भयावह दृश्य पेश किया।

इमाम अब्दुल बशीर उसी समय पास की बारबारी जामे मस्जिद में थे। उन्होंने पानी में डूबती कार की स्थिति देखी और समझ गए कि बिना त्वरित मदद के सातों यात्रियों की जान जोखिम में है। लेकिन अकेले वह इन सभी लोगों को बचा पाने में असमर्थ थे। उन्होंने तुरंत मस्जिद के अंदर जाकर माइक्रोफोन के माध्यम से गाँव वालों से मदद की अपील की।

इमाम की पुकार सुनकर, कई ग्रामीण बिना देर किए पानी में कूद पड़े। कुछ ने खुद अपनी जान की परवाह किए बिना कार के पास जाकर यात्रियों की मदद शुरू की। इमाम अब्दुल बशीर ने भी खुद कार के दरवाज़े खोले और ड्राइवर तथा सवारियों को बाहर निकाला। उनके साहस और नेतृत्व के कारण सभी सात लोग सुरक्षित बाहर आ पाए। अगर थोड़ी भी देर होती, तो पूरी कार पानी में डूब जाती और जान-माल का नुकसान अनिवार्य था।

इस बचाव कार्य में शामिल ग्रामीणों ने भी बड़ी बहादुरी दिखाई। ठंडी हवाओं और घने कोहरे के बावजूद, इमाम की मानवीय अपील ने उन्हें प्रेरित किया कि वे किसी भी जोखिम से न डरें और यात्रियों की मदद करें। यह स्पष्ट कर गया कि इंसानियत में धर्म, जाति या नस्ल का कोई फर्क नहीं होता। बारबारी के बुजुर्ग नागरिक समसुल हुदा ने कहा, "सभी यात्री हिंदू थे और बचाव दल मुस्लिम। यह दिखाता है कि मानवता सार्वभौमिक है, और केवल कुछ लोग ही स्वार्थ के लिए इसे भूल जाते हैं।"

इमाम अब्दुल बशीर की शांति और संतुलन इस संकट के समय अद्भुत थे। खुद उन्होंने बाद में बताया कि उस समय उनका केवल एक ही लक्ष्य था—यात्री और ड्राइवर को सुरक्षित बाहर निकालना। अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को वे बिल्कुल भी महत्व नहीं दे रहे थे। उनके लिए इंसानी जीवन का मूल्य सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी है। दूसरों को जीवन देने और सुरक्षित रखने की भावना उनके भीतर इतनी गहरी थी कि उन्होंने पूरी घटना में कोई डर महसूस नहीं किया।

स्थानीय लोगों ने इमाम के इस साहसिक और मानवीय कार्य के लिए उन्हें सम्मानित किया। यह सम्मान केवल उनके लिए नहीं, बल्कि यह संदेश भी है कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है। इमाम अब्दुल बशीर का यह कार्य हमें याद दिलाता है कि संकट के समय मदद के लिए कदम आगे बढ़ाने से किसी की जिंदगी बदल सकती है।

इस घटना ने न केवल असम और त्रिपुरा में लोगों को इंसानियत की भावना से जोड़ दिया, बल्कि पूरे देश को यह संदेश दिया कि निस्वार्थ सेवा और साहस किसी भी समाज की सबसे बड़ी ताकत हैं। इमाम अब्दुल बशीर की कहानी आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। उनके प्रयास ने साबित किया कि सच्ची मानवता हर परिस्थिति में सामने आती है, और वह हमेशा जीवन बचाने की दिशा में काम करती है।

सात यात्रियों की जान बचाने वाला यह साहसिक कदम सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि इंसानियत की मिसाल बन गया। इमाम अब्दुल बशीर ने दिखा दिया कि असली नायक वही है, जो कठिनाई में भी दूसरों की जान बचाने के लिए आगे आए। उनका यह कार्य हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने समाज में निस्वार्थ सेवा और मानवता की भावना फैलाएँ।