क्रिसमस पर बच्चों की उपहार अपेक्षाओं को समझदारी से कैसे संभालें

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-12-2025
How to wisely manage children's gift expectations at Christmas.
How to wisely manage children's gift expectations at Christmas.

 

क्रिसमस जैसे त्योहार खुशी और उत्साह के साथ आते हैं, लेकिन उपहारों को लेकर बच्चों की उम्मीदें कभी-कभी तनाव भी बढ़ा देती हैं। माता-पिता समय, सोच और पैसे लगाकर दिन को खास बनाते हैं, ऐसे में बच्चे की निराश प्रतिक्रिया आहत कर सकती है। कई बार यह असमंजस भी होता है कि बच्चे की भावना समझें या उपहार देने वाले का दिल न दुखे। विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसी निराशा बच्चों के भावनात्मक विकास का सामान्य हिस्सा है और सही ढंग से संभाली जाए तो सीख का अवसर बन सकती है।

उम्मीदें इतनी ऊँची क्यों होती हैं?
खास मौकों पर विज्ञापन, दोस्तों की बातें और सोशल तुलना बच्चों की इच्छाओं को बढ़ा देती हैं। यह केवल चीज़ों की चाह नहीं, बल्कि पहचान और अपनापन महसूस करने से जुड़ा होता है। किसी खास खिलौने या ब्रांड का न मिलना “छूट जाने” जैसा लग सकता है। जब अपेक्षा पूरी नहीं होती, तो शरीर में खुशी से जुड़ा रसायन घटता है और निराशा पैदा होती है—यह आत्म-नियंत्रण सीखने की स्वाभाविक प्रक्रिया है।

बड़े दिन से पहले बातचीत करें
क्रिसमस से पहले हल्की-फुल्की, खुली बातचीत मददगार रहती है। इससे पता चलता है कि इच्छाएँ विज्ञापन या साथियों के दबाव से तो नहीं बन रहीं। उम्र और पारिवारिक मूल्यों के अनुरूप सीमाएँ समझाना बेहतर है। कुछ परिवार उपहारों के लिए स्पष्ट ढांचा अपनाते हैं, जैसे “चार-उपहार नियम”—एक मनपसंद, एक ज़रूरी, एक पहनने का और एक पढ़ने का। बातचीत में जिज्ञासा रखें: इस साल क्या उम्मीद है? क्या यथार्थवादी है? अगर सब पूरा न हो तो कैसा लगेगा?

जब निराशा दिखे
“कृतज्ञ बनो” जैसी फटकार से बचें। पहले बच्चे की भावना को मान्यता दें—“तुम उस खिलौने की बहुत उम्मीद कर रहे थे, न मिलना मुश्किल लगता है।” इससे बच्चा सुरक्षित महसूस करता है। साथ ही सीमाएँ स्पष्ट रखें: निराश होना ठीक है, बदतमीज़ी नहीं। शांत होने पर सिखाएँ कि भावनाएँ बिना किसी को चोट पहुँचाए कैसे व्यक्त करें।

कृतज्ञता समय के साथ विकसित होती है
कृतज्ञता जबरन नहीं आती; वह अनुभवों से पनपती है। छोटे प्रयासों की सराहना करें, परिवार के साथ बिताए पलों पर ज़ोर दें, और बच्चों को दूसरों के लिए उपहार चुनने-लपेटने में शामिल करें। “देने वाले” की भूमिका निभाने से सहानुभूति बढ़ती है और उपहारों के पीछे की मेहनत समझ में आती है।