मंसूरूद्दीन फरीदी /नई दिल्ली
बांग्लादेश में एक हिंदू युवक की क्रूर हत्या ने भारतीय मुस्लिम युवाओं के बीच गहरा आक्रोश पैदा कर दिया है। सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर विरोध और निंदा की लहर चल पड़ी है। घटना के अनुसार, एक भीड़ ने हिंदू युवक दीपू चंद्रदास को बेरहमी से पीटा और फिर पेड़ पर लटकाकर जला दिया। इस अमानवीय कृत्य ने न केवल बांग्लादेश में, बल्कि भारत में भी लोगों के दिलों में गहरी चिंता और गुस्सा पैदा कर दिया है।
सोशल मीडिया पर कई मुस्लिम युवाओं ने वीडियो बनाकर इस घटना की निंदा की। मुमताज शेख ने एक वीडियो में कहा, “भाई, बांग्लादेश में क्या हो रहा है? वहां एक भाई था, दीपू चंद्रदास, जिसे उसके कथित शब्दों के लिए इतनी क्रूरता का सामना करना पड़ा। ऐसा व्यवहार किसी भी धर्म या कानून में उचित नहीं ठहराया जा सकता। अगर वहां के लोग यह सुन रहे हैं, तो जान लें कि आपके देश में कानून की जगह भीड़ का शासन चल रहा है।”
मुमताज शेख ने आगे कहा कि उनके वीडियो का उद्देश्य यह बताना है कि गलत को गलत कहने से ही न्याय संभव है। उन्होंने कहा, “हम हमेशा गलत व्यक्ति को गलत कहेंगे, चाहे वह हमारे समुदाय का ही क्यों न हो। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रभावित लोगों की सुरक्षा के लिए आवाज उठाई जाए।”
एक अन्य युवक, ओवैस अहमद कासमी ने कहा कि बांग्लादेश में मुसलमानों की भीड़ ने एक हिंदू युवक को मार डाला, जबकि उस पर ईशनिंदा का आरोप था। उन्होंने कहा, “यदि किसी ने वाकई पैगंबर मुहम्मद का अपमान किया है, तो कानून के तहत कार्रवाई होगी, लेकिन भीड़ द्वारा हत्या और अत्याचार को किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
वीडियो में युवा अधिकारी रजा मरकजी ने कहा कि बांग्लादेश में जो कुछ हुआ, वह पूरी मानवता के खिलाफ है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि सभी अपराधियों और वीडियो में दिखाई गई भीड़ के सदस्यों को गिरफ्तार कर कड़ी सजा दी जाए। रजा ने कहा, “धर्म या राजनीतिक स्थिति से ऊपर उठकर हमें यह देखना होगा कि मानवता का उल्लंघन किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। कानून और संविधान के बिना न्याय संभव नहीं। हर आरोपी को केवल न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से दंडित किया जाना चाहिए।”
सोशल मीडिया पर वायरल ये वीडियो न केवल आक्रोश और चिंता का संदेश दे रहे हैं, बल्कि जागरूकता फैलाने का माध्यम भी बन रहे हैं। मुमताज शेख और ओवैस कासमी जैसे युवाओं ने भारत और बांग्लादेश में धार्मिक और सामाजिक समानता का समर्थन करते हुए स्पष्ट किया कि मानवता के खिलाफ किसी भी अत्याचार को सहन नहीं किया जाएगा।
इस पूरे घटनाक्रम ने स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक या जातीय आधार पर हिंसा और अत्याचार न केवल बांग्लादेश में, बल्कि पूरी दुनिया में अस्वीकार्य हैं। सोशल मीडिया इस समय एक महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म बन गया है, जहां युवा आवाज़ उठाकर न्याय की मांग कर रहे हैं और दबाव बना रहे हैं कि दोषियों को कानून के अनुसार दंडित किया जाए।
यह घटना एक बार फिर याद दिलाती है कि किसी भी समाज में इंसानियत और कानून सर्वोपरि होने चाहिए। अत्याचार और भीड़तंत्र के खिलाफ आवाज उठाना न केवल जिम्मेदारी है, बल्कि मानवता की रक्षा का नैतिक कर्तव्य भी है।