अर्सला खान
भारत का स्वतंत्रता संग्राम अनगिनत बलिदानों और त्याग की नींव पर खड़ा हुआ. इतिहास में कई बड़े नाम दर्ज हैं, लेकिन कई ऐसे गुमनाम सेवक भी रहे जिनके बिना यह संघर्ष अधूरा होता. इन्हीं महान व्यक्तित्वों में से एक थे मेमन अब्दुल हबीब युसूफ मारफानी, जिन्हें उनके त्याग, सेवा और निष्ठा के कारण "फ़र्स्ट सेवक ऑफ़ हिंद" की उपाधि मिली.
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
मेमन अब्दुल हबीब युसूफ मारफानी का जन्म एक मेमन व्यापारी परिवार में हुआ था. मेमन समुदाय गुजरात और सिंध क्षेत्र से जुड़ा हुआ माना जाता है, जो व्यापारिक समृद्धि के साथ-साथ सामाजिक सेवा और दानशीलता के लिए जाना जाता है. इसी माहौल ने अब्दुल हबीब के भीतर देशभक्ति और सेवा भाव की गहरी नींव रखी.
स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
अब्दुल हबीब गांधीजी के विचारों और आंदोलनों से गहराई से प्रभावित थे. उन्होंने असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार जैसे अभियानों में सक्रिय भागीदारी की. उनका मानना था कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि भारतीय समाज के पुनर्जागरण का मार्ग है.
उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी कि वे खुद को हमेशा "सेवक" कहते थे. उनके लिए नेतृत्व का मतलब था जनता की सेवा और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखना.यही कारण है कि उन्हें "फ़र्स्ट सेवक ऑफ़ हिंद" कहा गया.
गहनों की बलिदान गाथा
अब्दुल हबीब की निष्ठा और त्याग का सबसे बड़ा उदाहरण उनकी पत्नी के गहनों से जुड़ा किस्सा है. स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में जब आंदोलन के लिए धन की भारी आवश्यकता थी, तो उन्होंने अपने घर का सहारा लिया. उन्होंने अपनी पत्नी (वीबी) से कहा कि अब समय आ गया है जब देश के लिए सबकुछ कुर्बान करना होगा. पत्नी ने भी बिना किसी हिचक के अपने सारे गहने उतारकर उनके हाथों में सौंप दिए.
अब्दुल हबीब ने उन गहनों को बेचकर उससे प्राप्त धन को आंदोलन की निधि में लगा दिया। यह केवल आर्थिक सहयोग नहीं था, बल्कि यह त्याग उस दौर के हर भारतीय के लिए प्रेरणा बन गया कि स्वतंत्रता के लिए निजी सुख-सुविधाओं को त्यागना ही सबसे बड़ा धर्म है.
क्यों कहा गया ‘फ़र्स्ट सेवक ऑफ़ हिंद’?
निस्वार्थ सेवा – उन्होंने कभी पद, सत्ता या प्रसिद्धि की चाह नहीं रखी.
व्यक्तिगत बलिदान – अपने व्यापारिक हितों और पारिवारिक संपत्ति तक की परवाह न करते हुए आंदोलन में सबकुछ समर्पित किया.
गहनों की घटना – पत्नी के आभूषण तक आंदोलन के लिए दान कर देना उनके त्याग का अद्वितीय प्रमाण बना.
सर्वधर्म समभाव – मुस्लिम समुदाय से होने के बावजूद उन्होंने कभी संप्रदाय की राजनीति नहीं की और खुद को केवल "भारतीय" कहकर पेश किया.
सेवक का भाव – उनका जीवन दर्शन ही था कि वे "हिंद" यानी भारत के सेवक हैं.
विरासत और स्मरण
आज़ादी के बाद उनका नाम बड़े नेताओं की तरह ज्यादा प्रचारित नहीं हुआ, लेकिन जिन लोगों ने उनके साथ काम किया, उनके दिलों में वे "सच्चे सेवक" के रूप में आज भी बसे हुए हैं. उन्होंने अपने जीवन से यह दिखाया कि स्वतंत्रता संग्राम केवल युद्ध या संघर्ष नहीं था, बल्कि यह सेवा, त्याग और विश्वास का संगम था.
मेमन अब्दुल हबीब युसूफ मारफानी का जीवन हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता की असली ताक़त केवल बड़े नेताओं में नहीं, बल्कि उन अनगिनत सेवकों में थी जिन्होंने अपने सुख-सुविधाओं, संपत्ति और यहां तक कि अपने घर-परिवार को भी कुर्बान कर दिया.
उनकी पत्नी के गहनों की वह घटना आज भी त्याग की सबसे महान गाथाओं में गिनी जाती है. "फ़र्स्ट सेवक ऑफ़ हिंद" कहना वास्तव में उनके जीवन के हर उस पहलू का सम्मान है, जिसने उन्हें आज़ादी के इतिहास में एक अमर और प्रेरणादायी नायक बना दिया.