इरशाद सकाफी
तालीम प्रगति, समृद्धि और सफलता की कुंजी है. उग्रवाद, गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का समाधान भी शिक्षा में ही है. जब पिछड़े और मध्यम वर्ग में रहने वाले लोग भी शिक्षा प्राप्त करते हैं, तो उनके लिए भी प्रगति के रास्ते खुल जाते हैं. एक शिक्षित व्यक्ति जो भी सपने देखता है, वह उसे पूरा करता है. ऐसी ही एक जीवन कहानी डॉ. मोइनुद्दीन की है, जिन्होंने मदरसे से अपनी पढ़ाई शुरू की और अब कृषि वैज्ञानिक बन गए हैं.
डॉ. मोइनुद्दीन का जन्म उत्तर प्रदेश के जलालपुर कस्बे के अम्बेडकर नगर में हुआ था. उन्होंने प्राथमिक शिक्षा कस्बे के मदरसा निदा हक में प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अपनी शैक्षणिक यात्रा जारी रखी और अंततः उन्होंने पीएच.डी. की डिग्री हासिल की. वह वर्तमान में श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर हैं.
डॉ. मोइनुद्दीन कहते हैं कि उनकी पढ़ाई के दौरान जीवन बहुत कठिन था और उनकी शिक्षा का सफर आसान नहीं रहा. वह कहते हैं कि जब मैं दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा संचालित एनपीजी कॉलेज बड़हलगंज में पढ़ रहा था, तो मुझे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. वे कहते हैं कि मुझे वहां किराये पर घर नहीं मिल रहा था. मैं जहां भी आवास के लिए गया, हर जगह मुझे इनकार ही मिला और अंततः मुझे दो साल तक भीमसावा आश्रम में रहना पड़ा. दो साल बाद एक हिंदू परिवार ने मुझे किराये पर मकान दिया.
डॉ. मोइनुद्दीन को अपनी राह में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपना पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई पर केंद्रित करके आगे बढ़ते रहें. क्योंकि वह अच्छी तरह से जानते थे कि शिक्षा के बिना जीवन में कुछ भी बनना असंभव है.
वे कहते हैं कि अगर आप अपने अंदर ताकत पैदा करना चाहते हैं, तो आपकी पहली प्राथमिकता अच्छी शिक्षा होनी चाहिए और इसके लिए आपके पास जो भी संसाधन उपलब्ध हैं, उन्हें अपने निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपनाना चाहिए.
डॉ. मोइनुद्दीन ने सैम हिगिनबॉटम इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज, इलाहाबाद से ‘मूंगफली की वृद्धि, उपज और तेल सामग्री पर नाइट्रोजन के विभिन्न कार्बनिक स्रोतों का प्रभाव’ विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. वहां उन्होंने एमएससी में ‘विभिन्न बुवाई विधियों और सल्फर स्तरों के तहत सरसों की वृद्धि और उपज व्यवहार’ विषय पर अपनी थीसिस भी प्रस्तुत की है. वर्तमान में उनके पास कृषि क्षेत्र का व्यापक अनुभव है. और वह कृषि वैज्ञानिक के क्षेत्र में कार्यरत हैं.
डॉ. मोइनुद्दीन ने अपनी शैक्षणिक योग्यता और प्रतिभा तथा शोध से लोगों के दिलो-दिमाग पर छाप छोड़ी है. यही कारण है कि उन्हें इतनी कम उम्र में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं.
इन पुरस्कारों को पाने पर डॉ. मोइनुद्दीन का कहना है कि इतनी कम उम्र में मुझे लोगों से जो सम्मान मिला है. मैं इसका वर्णन नहीं कर सकता. आज अगर मैं इस लायक समझा जाता हूं, तो इसका कारण मेरी शिक्षा है. शिक्षा एक ऐसी चीज है, जो किसी को भी जमीन से आसमान तक उठा सकती है. जब मैं शिक्षा प्राप्त कर रहा था, तो मेरे लिए सब कुछ आसान नहीं था. बल्कि अक्सर प्रतिकूल वातावरण का सामना करना पड़ता है. लेकिन मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की. और आज इस शिक्षा ने मेरे लिए सब कुछ उपयुक्त बना दिया. और जो चीजें मेरे लिए हासिल करना असंभव था वो आज संभव हो गई हैं.
डॉ. मोइनुद्दीन युवाओं को संदेश देते हैं कि समय की कीमत पहचानें और इसे बर्बाद करने से बचें, हमेशा अच्छी संगत में रहें, जो आपको प्रगति की ओर ले जाएगा, क्योंकि अगर आप समय की कद्र नहीं करेंगे, तो आप पीछे रह जायेंगे.
उनका कहना है कि तालीम अल्लाह की बहुत बड़ी नेमत है, जिसके लिए संघर्ष करना हर युवा का कर्तव्य है. शिक्षा ही एक ऐसी चीज है, जो इंसान को आगे बढ़ा सकती है. इसी शिक्षा के आधार पर मनुष्य शांतिपूर्ण समाज के निर्माण के लिए संघर्ष कर सकता है.
उनका कहना है कि आज के दौर की त्रासदी यह है कि युवा सही और गलत में फर्क नहीं कर पा रहा है. वह नहीं जानता कि मैं क्या कर रहा हूं. और मुझे क्या करना चाहिये? जबकि हर व्यक्ति जानता है कि देश की प्रगति में युवाओं का बहुत महत्व है, लेकिन अगर उनमें भ्रष्टाचार है, तो उस देश का भला नहीं हो सकता और अगर युवा बिगड़ जाए, तो वह पूरे देश और समाज के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. उनका कहना है कि युवाओं को अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे शिक्षा में लगाना चाहिए और अपने समुदाय और देश की सेवा करनी चाहिए.
डॉ. मोइनुद्दीन के पिता हाजी मुनीर अहमद साहब मिर्जा गालिब इंटर कॉलेज जलालपुर में प्रधानाचार्य के पद पर रह चुके हैं. वर्तमान में वह सेवानिवृत्त जीवन जी रहे हैं. जब हमने उन्हें फोन किया, तो उन्होंने हमें डॉ. मोइनुद्दीन के बचपन के बारे में बताया कि उन्हें शुरू से ही शिक्षा में रुचि थी. दूसरे लड़कों की तरह उसने ज्यादा दोस्त नहीं बनाए और बाहर घूमने-फिरने और मौज-मस्ती करने में अपना समय बर्बाद नहीं किया. वह इन चीजों से बिल्कुल अलग थे. उन्होंने कभी भी शिक्षा के अलावा किसी और चीज के बारे में नहीं सोचा.
गौरवान्वित पिता वह बताते हैं कि उनकी शुरुआती पढ़ाई पांचवीं कक्षा तक मदरसे में हुई. इसके बाद उन्होंने जूनियर हाईस्कूल तक की पढ़ाई मिर्जा गालिब इंटर कॉलेज में की और मैट्रिक की परीक्षा जलालपुर शहर के एक कॉलेज से पास की. मैट्रिक के बाद एक मित्र ने मुझसे कहा कि ‘‘आपका बेटा बहुत बुद्धिमान है और पढ़ाई में बहुत ईमानदार है. उन्होंने मुझे कृषि अध्ययन के क्षेत्र में लगाने की सलाह दी. क्योंकि इलाके में विकास की काफी उम्मीद है. इसके बाद मैंने अपने बेटे से इस बारे में चर्चा की और वह भी सहमत हो गया. और अपनी कड़ी मेहनत से आज वह कृषि वैज्ञानिक हैं और देश की सेवा कर रहे हैं.’’
(लेखक लखनऊ स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं.)