मदरसा में पढ़ने वाले छात्र डॉ. मोइनुद्दीन बने कृषि वैज्ञानिक

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-04-2024
 Dr. Moinuddin
Dr. Moinuddin

 

इरशाद सकाफी

तालीम प्रगति, समृद्धि और सफलता की कुंजी है. उग्रवाद, गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का समाधान भी शिक्षा में ही है. जब पिछड़े और मध्यम वर्ग में रहने वाले लोग भी शिक्षा प्राप्त करते हैं, तो उनके लिए भी प्रगति के रास्ते खुल जाते हैं. एक शिक्षित व्यक्ति जो भी सपने देखता है, वह उसे पूरा करता है. ऐसी ही एक जीवन कहानी डॉ. मोइनुद्दीन की है, जिन्होंने मदरसे से अपनी पढ़ाई शुरू की और अब कृषि वैज्ञानिक बन गए हैं.

डॉ. मोइनुद्दीन का जन्म उत्तर प्रदेश के जलालपुर कस्बे के अम्बेडकर नगर में हुआ था. उन्होंने प्राथमिक शिक्षा कस्बे के मदरसा निदा हक में प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अपनी शैक्षणिक यात्रा जारी रखी और अंततः उन्होंने पीएच.डी. की डिग्री हासिल की. वह वर्तमान में श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर हैं.

डॉ. मोइनुद्दीन कहते हैं कि उनकी पढ़ाई के दौरान जीवन बहुत कठिन था और उनकी शिक्षा का सफर आसान नहीं रहा. वह कहते हैं कि जब मैं दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा संचालित एनपीजी कॉलेज बड़हलगंज में पढ़ रहा था, तो मुझे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. वे कहते हैं कि मुझे वहां किराये पर घर नहीं मिल रहा था. मैं जहां भी आवास के लिए गया, हर जगह मुझे इनकार ही मिला और अंततः मुझे दो साल तक भीमसावा आश्रम में रहना पड़ा. दो साल बाद एक हिंदू परिवार ने मुझे किराये पर मकान दिया.

डॉ. मोइनुद्दीन को अपनी राह में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपना पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई पर केंद्रित करके आगे बढ़ते रहें. क्योंकि वह अच्छी तरह से जानते थे कि शिक्षा के बिना जीवन में कुछ भी बनना असंभव है.

वे कहते हैं कि अगर आप अपने अंदर ताकत पैदा करना चाहते हैं, तो आपकी पहली प्राथमिकता अच्छी शिक्षा होनी चाहिए और इसके लिए आपके पास जो भी संसाधन उपलब्ध हैं, उन्हें अपने निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपनाना चाहिए.

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डॉ. मोइनुद्दीन ने सैम हिगिनबॉटम इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज, इलाहाबाद से ‘मूंगफली की वृद्धि, उपज और तेल सामग्री पर नाइट्रोजन के विभिन्न कार्बनिक स्रोतों का प्रभाव’ विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. वहां उन्होंने एमएससी में ‘विभिन्न बुवाई विधियों और सल्फर स्तरों के तहत सरसों की वृद्धि और उपज व्यवहार’ विषय पर अपनी थीसिस भी प्रस्तुत की है. वर्तमान में उनके पास कृषि क्षेत्र का व्यापक अनुभव है. और वह कृषि वैज्ञानिक के क्षेत्र में कार्यरत हैं.

  • डॉ. मोइनुद्दीन ने अपने शोध के साथ-साथ अध्यापन का मार्ग भी अपनाया. उन्होंने पहली बार 7 सितंबर, 2013 से 16 फरवरी, 2016 तक माया कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलॉजी, देहरादून, उत्तराखंड में सहायक प्रोफेसर और कृषि विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य किया.
  • इसके बाद उन्होंने 22 फरवरी 2016 से 8 दिसंबर 2016 तक दून के कृषि विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य किया. कृषि एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड में कृषि विभाग के सहायक प्रोफेसर और प्रमुख के रूप में कार्य किया.
  • इसके बाद वह कृषि विभाग, तुला संस्थान, ढोलकोट, देहरादून, उत्तराखंड में शामिल हो गए. यहां वे 9 दिसंबर, 2016 से 19 अगस्त, 2017 तक असिस्टेंट प्रोफेसर और हेड के पद पर रहे.
  • फिर उनकी नियुक्ति ग्लोबल यूनिवर्सिटी सहारनपुर में हो गई. यहां उन्होंने 21 अगस्त, 2017 से 26 नवंबर, 2020 तक कृषि विभाग में सहायक प्रोफेसर और प्रमुख के रूप में काम किया.
  • वर्तमान में वह 27 नवंबर, 2020 से स्कूल ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय, देहरादून उत्तराखंड में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं.

डॉ. मोइनुद्दीन ने अपनी शैक्षणिक योग्यता और प्रतिभा तथा शोध से लोगों के दिलो-दिमाग पर छाप छोड़ी है. यही कारण है कि उन्हें इतनी कम उम्र में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं.

  • उन्हें पहली बार 22-24 फरवरी, 2013 के दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ‘15वें भारतीय कृषि वैज्ञानिक और किसान कांग्रेस’ के अवसर पर बायोवीड रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश द्वारा युवा वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
  • उन्हें 16-18 जून, 2019 के दौरान ‘हरित पर्यावरण के लिए कृषि और अनुप्रयुक्त विज्ञान में वैश्विक पहल’ विषय पर तीसरे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर प्रस्तुत किया गया था.
  • उन्हें कोरोना महामारी के दौरान जलवायु स्मार्ट कृषि प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में वैश्विक परिप्रेक्ष्य पर चौथे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर 26-28 फरवरी, 2021 के दौरान शोभत डीम्ड विश्वविद्यालय, मेरठ, उत्तर प्रदेश में सर्वश्रेष्ठ कृषि वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
  • उन्हें कृषि, वन, पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा पर वैश्विक प्रयासों पर चौथे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर 17-19 सितंबर, 2022 के दौरान वानिकी संस्थान, त्रिभुवन विश्वविद्यालय, पोखरा, नेपाल में उत्कृष्ट वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

इन पुरस्कारों को पाने पर डॉ. मोइनुद्दीन का कहना है कि इतनी कम उम्र में मुझे लोगों से जो सम्मान मिला है. मैं इसका वर्णन नहीं कर सकता. आज अगर मैं इस लायक समझा जाता हूं, तो इसका कारण मेरी शिक्षा है. शिक्षा एक ऐसी चीज है, जो किसी को भी जमीन से आसमान तक उठा सकती है. जब मैं शिक्षा प्राप्त कर रहा था, तो मेरे लिए सब कुछ आसान नहीं था. बल्कि अक्सर प्रतिकूल वातावरण का सामना करना पड़ता है. लेकिन मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की. और आज इस शिक्षा ने मेरे लिए सब कुछ उपयुक्त बना दिया. और जो चीजें मेरे लिए हासिल करना असंभव था वो आज संभव हो गई हैं.

  • डॉ. मोइनुद्दीन इंडियन सोसाइटी ऑफ एग्रोनॉमी, एग्रोनॉमी डिवीजन, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के आजीवन सदस्य भी हैं. वह सोसायटी ऑफ एग्रोनॉमी, कृषि विभाग, सैम हिगिनबॉटम इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज, इलाहाबाद के एक सक्रिय सदस्य और कृषि प्रौद्योगिकी विकास सोसायटी, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश के सक्रिय आजीवन सदस्य भी हैं.
  • डॉ. मोइनुद्दीन सिर्फ शिक्षण और शोध से ही नहीं जुड़े हैं. बल्कि वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भी भाग लेते रहते हैं. वहां उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए कार्यशालाओं में शिक्षक के रूप में भी बुलाया जाता है. वह अब तक दर्जनों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग ले चुके हैं.
  • 1-2 दिसंबर, 2019 को सोसाइटी फॉर एग्रीकल्चरल एंड एनवायर्नमेंटल टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट, यूएस नागरीताल द्वारा ‘खाद्य और पर्यावरण सुरक्षा के लिए कृषि और अनुप्रयुक्त विज्ञान में वैश्विक परिप्रेक्ष्य (जीएएएफईएस)’ पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें उन्होंने सह-संयोजक कृषि एवं पर्यावरण के रूप में भाग लिया.
  • इसके अलावा, उन्होंने अब तक कई एफडीपी/प्रशिक्षण/कार्यशालाओं में भाग लिया है. 2010 में, उन्होंने सैम हिगिनबॉटम इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज, इलाहाबाद और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर द्वारा आयोजित कृषि अर्थशास्त्र और कृषि व्यवसाय प्रबंधन पर प्रशिक्षण में भाग लिया.
  • वहीं, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) नई दिल्ली द्वारा सुरक्षित फल उत्पादन के लिए उन्नत पौध संरक्षण उपकरणों के लिए आईसीएआर-एनआरसीएल में 10-19 अक्टूबर 2019 को एक कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें उन्होंने भाग लिया. 11-17 सितंबर, 2020 के दौरान एसकेयूएएसटी, कश्मीर द्वारा बागवानी फसलों का अजैविक तनाव प्रबंधन आयोजित किया गया. चुनौतीपूर्ण पर्यावरणीय परिस्थितियों में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया.
  • उन्होंने 21-30 अक्टूबर, 2020 तक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) नई दिल्ली द्वारा कृषि-मौसम विज्ञान दृष्टिकोण के माध्यम से जलवायु जोखिम मूल्यांकन और प्रबंधन पर आयोजित कार्यशाला में भी भाग लिया.
  • डॉ. मोइनुद्दीन ने 2014 में उत्तरांचल (पी.जी.) कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी एंड बायोमेडिकल साइंसेज, देहरादून, यूके द्वारा आयोजित ‘कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के आधार पर भारत के पहाड़ी सांख्यिकी में आजीविका सृजन’ पर राष्ट्रीय सेमिनार सहित कई महत्वपूर्ण सेमिनारों, सम्मेलनों में भाग लिया है.

डॉ. मोइनुद्दीन युवाओं को संदेश देते हैं कि समय की कीमत पहचानें और इसे बर्बाद करने से बचें, हमेशा अच्छी संगत में रहें, जो आपको प्रगति की ओर ले जाएगा, क्योंकि अगर आप समय की कद्र नहीं करेंगे, तो आप पीछे रह जायेंगे.

उनका कहना है कि तालीम अल्लाह की बहुत बड़ी नेमत है, जिसके लिए संघर्ष करना हर युवा का कर्तव्य है. शिक्षा ही एक ऐसी चीज है, जो इंसान को आगे बढ़ा सकती है. इसी शिक्षा के आधार पर मनुष्य शांतिपूर्ण समाज के निर्माण के लिए संघर्ष कर सकता है.

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उनका कहना है कि आज के दौर की त्रासदी यह है कि युवा सही और गलत में फर्क नहीं कर पा रहा है. वह नहीं जानता कि मैं क्या कर रहा हूं. और मुझे क्या करना चाहिये? जबकि हर व्यक्ति जानता है कि देश की प्रगति में युवाओं का बहुत महत्व है, लेकिन अगर उनमें भ्रष्टाचार है, तो उस देश का भला नहीं हो सकता और अगर युवा बिगड़ जाए, तो वह पूरे देश और समाज के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. उनका कहना है कि युवाओं को अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे शिक्षा में लगाना चाहिए और अपने समुदाय और देश की सेवा करनी चाहिए.

डॉ. मोइनुद्दीन के पिता हाजी मुनीर अहमद साहब मिर्जा गालिब इंटर कॉलेज जलालपुर में प्रधानाचार्य के पद पर रह चुके हैं. वर्तमान में वह सेवानिवृत्त जीवन जी रहे हैं. जब हमने उन्हें फोन किया, तो उन्होंने हमें डॉ. मोइनुद्दीन के बचपन के बारे में बताया कि उन्हें शुरू से ही शिक्षा में रुचि थी. दूसरे लड़कों की तरह उसने ज्यादा दोस्त नहीं बनाए और बाहर घूमने-फिरने और मौज-मस्ती करने में अपना समय बर्बाद नहीं किया. वह इन चीजों से बिल्कुल अलग थे. उन्होंने कभी भी शिक्षा के अलावा किसी और चीज के बारे में नहीं सोचा.

गौरवान्वित पिता वह बताते हैं कि उनकी शुरुआती पढ़ाई पांचवीं कक्षा तक मदरसे में हुई. इसके बाद उन्होंने जूनियर हाईस्कूल तक की पढ़ाई मिर्जा गालिब इंटर कॉलेज में की और मैट्रिक की परीक्षा जलालपुर शहर के एक कॉलेज से पास की. मैट्रिक के बाद एक मित्र ने मुझसे कहा कि ‘‘आपका बेटा बहुत बुद्धिमान है और पढ़ाई में बहुत ईमानदार है. उन्होंने मुझे कृषि अध्ययन के क्षेत्र में लगाने की सलाह दी. क्योंकि इलाके में विकास की काफी उम्मीद है. इसके बाद मैंने अपने बेटे से इस बारे में चर्चा की और वह भी सहमत हो गया. और अपनी कड़ी मेहनत से आज वह कृषि वैज्ञानिक हैं और देश की सेवा कर रहे हैं.’’

(लेखक लखनऊ स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं.)